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सिर्फ नशे के लिए नहीं होता भांग का उपयोग, इन चीजों को बनाने में बहुत उपयोगी

देशभर में होली का त्योहार बहुत धूम-धाम से मनाया गया है. होली के दौरान बहुत सारे घरों में भांग पीने का प्रचलन भी होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भांग का उपयोग सिर्फ नशे के लिए नहीं होता है.

देशभर में होली का त्योहार बहुत धूम-धाम से मनाया गया है. होली के दौरान बहुत सारे घरों में भांग पीने का प्रचलन भी होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भांग का उपयोग सिर्फ नशे के लिए नहीं होता है.

भांग का उपयोग सिर्फ नशे में नहीं किया जाता है. इससे बहुत सारे प्रोडक्ट भी बनते हैं. जानिए किन-किन चीजों में होता है इसका उपयोग.

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दरअसल भांग का इस्तेमाल बहुत सारे प्रोडक्ट बनाने में भी किया जाता है. बता दें कि भांग वार्निस इंडस्ट्री की जान है. भांग के बीज के तेल का उपयोग वार्निश उद्योगों में अलसी के तेल के विकल्प के रूप में किया जाता है. इसके अलावा साबुन के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
दरअसल भांग का इस्तेमाल बहुत सारे प्रोडक्ट बनाने में भी किया जाता है. बता दें कि भांग वार्निस इंडस्ट्री की जान है. भांग के बीज के तेल का उपयोग वार्निश उद्योगों में अलसी के तेल के विकल्प के रूप में किया जाता है. इसके अलावा साबुन के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
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बता दें कि साबुन को मुलायम बनाने के लिए भांग में कई तरह के औषधीय गुण भी होते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कृषि में स्वदेशी तकनीकी ज्ञान की अपनी सूची में भांग के विभिन्न उपयोगों को बाकायदा डॉक्यूमेंट किया है.
बता दें कि साबुन को मुलायम बनाने के लिए भांग में कई तरह के औषधीय गुण भी होते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कृषि में स्वदेशी तकनीकी ज्ञान की अपनी सूची में भांग के विभिन्न उपयोगों को बाकायदा डॉक्यूमेंट किया है.
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जानकारी के मुताबिक भांग का पौधा 4 से 10 फीट लंबा हो सकता है. यह मुख्य रूप से गंगा के मैदानी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में पाया जाता है. भांग को तेलुगु में गंजाई, तमिल में गांजा और कन्नड़ में बंगी कहा जाता है. इसका पौधा बंजर भूमि पर भी बड़े आराम से उगता है. भांग के पौधे से मुख्य तौर पर तीन उत्पाद बनते हैं. जिसमें फाइबर, तेल और नशीले पदार्थ शामिल हैं.
जानकारी के मुताबिक भांग का पौधा 4 से 10 फीट लंबा हो सकता है. यह मुख्य रूप से गंगा के मैदानी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में पाया जाता है. भांग को तेलुगु में गंजाई, तमिल में गांजा और कन्नड़ में बंगी कहा जाता है. इसका पौधा बंजर भूमि पर भी बड़े आराम से उगता है. भांग के पौधे से मुख्य तौर पर तीन उत्पाद बनते हैं. जिसमें फाइबर, तेल और नशीले पदार्थ शामिल हैं.
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इसके अलावा भांग की राख का इस्तेमाल जानवरों को होने वाली कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है. आईसीएआर के मुताबिक जानवरों में हेमेटोमा बीमारी में भांग की राख कारगर है. बता दें कि इस बीमारी में खून के थक्के जम जाते हैं. इसलिए यह उनकी त्वचा पर लगाया जाता है. उत्तराखंड के कुमाऊं रीजन में यह इलाज काफी लोकप्रिय है. आईसीएआर के मुताबिक कभी-कभी मवेशी कांपने लगते हैं, विशेषकर दुधारू मवेशी इसमें भी भांग लाभदायक है.
इसके अलावा भांग की राख का इस्तेमाल जानवरों को होने वाली कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है. आईसीएआर के मुताबिक जानवरों में हेमेटोमा बीमारी में भांग की राख कारगर है. बता दें कि इस बीमारी में खून के थक्के जम जाते हैं. इसलिए यह उनकी त्वचा पर लगाया जाता है. उत्तराखंड के कुमाऊं रीजन में यह इलाज काफी लोकप्रिय है. आईसीएआर के मुताबिक कभी-कभी मवेशी कांपने लगते हैं, विशेषकर दुधारू मवेशी इसमें भी भांग लाभदायक है.
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बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के छोटा/बड़ा भंगाल और मंडी जिले के करसोग में भांग की खेती की जाती है. भांग से फाइबर और बीज के लिए राज्य भांग की नियंत्रित खेती की अनुमति देता है. वहीं पकने के बाद कटी हुई फसल को सूखने के लिए अलग रख दिया जाता है. सूखने के बाद बीजों को इकट्ठा कर लिया जाता है और तने तथा शाखाओं से रेशे अलग कर लिए जाते हैं. इसका रेशा जूट से भी अधिक मजबूत होता है और इसका उपयोग रस्सियां बनाने में किया जाता है.
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के छोटा/बड़ा भंगाल और मंडी जिले के करसोग में भांग की खेती की जाती है. भांग से फाइबर और बीज के लिए राज्य भांग की नियंत्रित खेती की अनुमति देता है. वहीं पकने के बाद कटी हुई फसल को सूखने के लिए अलग रख दिया जाता है. सूखने के बाद बीजों को इकट्ठा कर लिया जाता है और तने तथा शाखाओं से रेशे अलग कर लिए जाते हैं. इसका रेशा जूट से भी अधिक मजबूत होता है और इसका उपयोग रस्सियां बनाने में किया जाता है.
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आईसीएआर के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले के सोलकी क्षेत्र के किसानों द्वारा धान की नर्सरी में थ्रेडवर्म को नियंत्रित करने के लिए भांग के पौधों का उपयोग किया जाता है. वहीं भांग का इस्तेमाल मधुमक्खी के काटने के इलाज के रूप में भी होता है. भांग की पत्तियों को गर्म करके पीसकर पेस्ट बनाया जाता है. फिर इसे ततैया या मधु मक्खी के काटने से हुई सूजन वाली जगह पर लगाया जाता है. इसके बाद कपड़े से लपेट दिया जाता है. बता दें कि यह जलन और दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है. हिमाचल प्रदेश में यह बहुत लोकप्रिय है.
आईसीएआर के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले के सोलकी क्षेत्र के किसानों द्वारा धान की नर्सरी में थ्रेडवर्म को नियंत्रित करने के लिए भांग के पौधों का उपयोग किया जाता है. वहीं भांग का इस्तेमाल मधुमक्खी के काटने के इलाज के रूप में भी होता है. भांग की पत्तियों को गर्म करके पीसकर पेस्ट बनाया जाता है. फिर इसे ततैया या मधु मक्खी के काटने से हुई सूजन वाली जगह पर लगाया जाता है. इसके बाद कपड़े से लपेट दिया जाता है. बता दें कि यह जलन और दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है. हिमाचल प्रदेश में यह बहुत लोकप्रिय है.

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