Deer:क्या है वो कस्तूरी जो हिरण के अंदर मौजूद,बाजार में ये बेशकीमती
कबीर दास का दोहा है “कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि। ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥ इसका अर्थ है कि हिरण की नाभि में कस्तूरी होता है, लेकिन हिरण उससे अनभिज्ञ होकर उसकी सुगंध के कारण कस्तूरी को पूरे जंगल में ढ़ूँढ़ता है. ऐसे ही भगवान हर किसी के अंदर वास करते हैं फिर भी हम उन्हें देख नहीं पाते हैं.
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View In Appबता दें कि ये हिरण की नाभि के पास एक थैली में होती है. ये दिखने में अंडाकार 3-7.5 सेंटीमीटर लंबी और 2.5-5 सेंटीमीटर चौड़ी होती है. इसकी महक हिरण को दीवाना बनाती रहती है और वो समझ ही नहीं पाता कि ये सुगंध कहां से आ रही है. हिरण इसकी सुंगध को मतवाला होकर सारे वन में ढूंढता रहता है.
वहीं कस्तूरी सिर्फ नर हिरण में ही पायी जाती है. ये मादा हिरण में नहीं मौजूद होती है. जब हिरण युवावस्था में होता है, तो ये ज्यादा मात्रा में होती है. एक हिरण से करीब 25 से 30 ग्राम कस्तूरी मिलती है. हालांकि इस चक्कर में हिरण का खूब शिकार भी किया जाता है. कस्तूरी मृग को 'हिमायलन मस्क डियर' के नाम से भी जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम 'मास्कस क्राइसोगौ' है.
वहीं कस्तूरी को दुनिया का बेहतरीन और बहुमूल्य सुगंधित पदार्थ माना जाता है. पुरानी समय में जुकाम, निमोनिया इसके सूंघने ठीक भर से ठीक हो जाता था. लेकिन इसको सूंघने से नाक से खून भी बहने लगता है. कस्तूरी का इस्तेमाल खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है. इसके अलावा सुगंध पदार्थ और परफ़्यूम बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है.
कस्तूरी नर कस्तूरी मृग के पीछे गुदा क्षेत्र में स्थित एक ग्रंथि से प्राप्त होती है. इसे प्राचीन काल से इत्र के लिए एक लोकप्रिय रासायनिक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. ये दुनिया भर के सबसे महंगे पशु उत्पादों में एक है. वैसे कस्तूरी का व्यापार अब दुनिया में अवैध हो चुका है.
जानकारी के मुताबिक 19वीं सदी के अंत तक प्राकृतिक कस्तूरी का इस्तेमाल इत्र में बड़े पैमाने पर किया जाता था. हालांकि अब इसे कृत्रिम तौर पर भी बनाया जाने लगा है. इसके इस्तेमाल से चीन में पारंपरिक दवाएं बनाई जाती हैं. कस्तूरी हिरण नेपाल, भारत, पाकिस्तान, तिब्बत, चीन, साइबेरिया, और मंगोलिया में पाये जाते हैं.
बता दें कि उत्तराखण्ड राज्य में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग प्रकृति के सुंदरतम जीवों में एक हैं. कस्तूरी का उपयोग औषधि के रूप में दमा, मिर्गी, निमोनिया आदि की दवाएं बनाने में होता है. कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी मदहोश कर देने वाली खुशबू के लिए प्रसिद्ध है.
कस्तूरी मृग दिखने में भूरे रंग के होते हैं. इस भूरी त्वचा पर रंगीन धब्बे होते हैं. इस मृग के सींग नहीं होते हैं. वहीं नर की बिना बालों वाली पूंछ भी होती है. इसके पिछले पैर अगले पैरों की तुलना में लम्बे होते हैं. इसके जबड़े में दो दांत पीछे की और झुके होते हैं. इन दांतों का उपयोग यह अपनी सुरक्षा और जड़ी-बूटी को खोदने में करता है.
ये जीव बहुत दूर तक की आवाज को सुन लेते हैं. इनके कानों की जबरदस्त श्रवणशक्ति इन्हें विश्व के सबसे चौकन्ने जीवों में एक बनाती है. वहीं इनके शरीर के रंग में बहुत विविधता पायी जाती है. पेट और कमर का निचला हिस्सा अमूमन सफ़ेद ही होता है. वहीं शरीरा का बाकी हिस्सा कत्थई भूरे रंग का होता है. शरीर का ऊपरी हिस्सा सुनहरा, हल्का पीला या नारंगी रंग का भी हुआ करता है. इन मृगों की कमर और पीठ पर रंगीन धब्बे होते हैं. इनके शरीर पर घने बाल रहते हैं. इन बालों का निचला आधा भाग सफेद होता है. सीधे और कठोर बाल छूने में बहुत मुलायम महसूस होते हैं.
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