ज्वालामुखी के फटने से कैसे ठंडी होती है धरती, तापमान गिरने को लेकर क्या कहता है विज्ञान
आपने सुना होगा कि ग्रीनहाउस गैसें धरती का तापमान बढ़ाती हैं. इसीलिए दुनिया के सभी देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की रोकथाम की दिशा में काम कर रहे हैं. अलग-अलग देश के लोग इस पर रिसर्च भी कर रहे हैं. वहीं ज्वालामुखी को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर बहुत ही ताकतवर ज्वालामुखी फटता है और लावा निकलता है. इससे पूरी धरती का तापमान कम होता है.
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View In Appलेकिन अब सवाल ये उठता है कि ज्वालामुखी विस्फोट में धधकता हुआ लावा निकलता है. आखिर इससे धरती ठंडी कैसे हो सकती है. वहीं अमूमन यही देखा गया है कि ज्वालामुखी के फटने पर आसपास का तापमान अचानक बहुत ज्यादा बढ़ जाता है.
लेकिन शोधकर्ताओं का दावा है कि जब दुनिया के सबसे ताकतवर ज्वालामुखी फटते हैं, तो धरती का तापमान बढ़ने के बजाय कम हो जाता है. दरअसल ज्वालामुखी में होने वाले धमाके वैज्ञानिकों को धरती के इतिहास में हुए कूलिंग पीरियड को समझाने में भी मदद करते हैं.
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की ग्लोबल क्लाइमेट चेंज रिपोर्ट के मुताबिक हर कुछ दशक में सबसे ताकतवर ज्वालामुखी विस्फोट में बड़ी मात्रा कण और गैस निकलती हैं. इतना ही नहीं ये गैस और कण सूरज की रोशनी को सीधे धरती तक आने में रुकावट पैदा करते हैं. यही रुकावट ग्लोबल कूलिंग पीरियड के हालात तैयार करती है.
जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली ज्वालामुखियों में विस्फोट होता है. उस समय ठंड का दौर 1 से 2 साल तक चलता है. ये इतना प्रभावी होता है कि पूरी दुनिया में इसका असर महसूस होता है. वहीं कुछ शोध का दावा है कि कभी-कभी ग्लोबल कूलिंग इतनी ज्यादा हो जाती है कि खतरा पैदा कर देती है.
नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज और न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के नए शोध में पिछले अध्ययनों पर रिपोर्ट्स में किए गए ऐसे दावे की जांच की गई है. अब तक शोधकर्ता सबसे शक्तिशाली ज्वालामुखी धमाकों के असर का सटीक अनुमान नहीं लगा पाए हैं.
लेकिन पूर्व में हुए अध्ययन के मुताबिक इससे धरती 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तक ठंडी हो जाती है. इसे वोल्केनिक विंटर भी कहा जाता है. नए अध्ययन में वोल्केनिक विंटर की आशंका बेहद कम आंकी गई है.
जीआईएसएस और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अध्ययन की जर्नल ऑफ क्लाइमेट में प्रकाशित रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने 74,000 साल पहले सुमात्रा के टोबा ज्वालामुखी विस्फोट जैसे जबरदस्त धमाके को कंप्यूटर मॉडलिंग के जरिये समझाने की कोशिश की है. इसमें पाया गया कि सबसे शक्तिशाली विस्फोट के बाद धरती के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की कमी नहीं आएगी.
बता दें कि वैज्ञानिक ज्वालामुखी विस्फोटों को उनके छोड़े जाने वाले मैग्मा के आधार पर बांटते हैं. जैसे जब कोई ज्वालामुखी 1,000 क्यूबिक किलोमीटर से ज्यादा मैग्मा छोड़ता है तो उसे सुपर विस्फोट कहते हैं. ये विस्फोट बेहद शक्तिशाली होने के साथ-साथ दुर्लभ होते हैं. वहीं सबसे हालिया सुपर-विस्फोट 22,000 साल से भी पहले न्यूजीलैंड में हुआ था. वहीं करीब 20 साल पहले व्योमिंग में भी सुपर विस्फोट हुआ था.
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