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Gandhi Jayanti 2024: बापू के निधन पर भी जिन्ना ने किया था 'हिंदू-मुस्लिम', पाकिस्तानी संसद में कही थी यह बात
Gandhiji Death Anniversary: बापू के निधन जहां कई लोगों के लिए दुख की बात थी, वहीं उनके निधन पर जिन्ना हिंदू-मुस्लिम कर रहे थे. उस समय देश में दुख के माहौल में क्या हो रहा था चलिए जानते हैं.

महात्मा गांधी, जिन्हें बापू के नाम से भी जाना जाता है, का निधन 30 जनवरी 1948 को हुआ था. उनके निधन ने पूरे देश में शोक की लहर फैला दी थी. गांधी जी की विचारधारा ने न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में सत्य और अहिंसा के लिए एक नई दिशा प्रदान की, लेकिन बापू के निधन पर जिन्ना के शब्दों बापू के निधन के समय भी शोक की जगह हिंदू-मुस्लिम का भाव था. जिसने राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मचा दी थी. यह घटना आज भी चर्चा का विषय है,
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महात्मा गांधी के निधन के बाद, जिन्ना ने पाकिस्तान की संसद में एक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया था. उन्होंने कहा, “श्री गांधी के जीवन पर हुए सबसे जघन्य हमले के बारे में जानकर मुझे बहुत सदमा लगा है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई. हमारे राजनीतिक मतभेद चाहे जो भी हों, वो हिंदू समुदाय द्वारा पैदा किए गए सबसे महान व्यक्तियों में से एक थे, और एक ऐसे हिंदू नेता थे, जिन्होंने हिंदू समुदाय का सार्वभौमिक विश्वास और सम्मान अर्जित किया था. मैं अपना गहरा दुख व्यक्त करना चाहता हूं और हिंदुस्तान और पाकिस्तान की स्वतंत्रता के जन्म के तुरंत बाद इस जरूरी और ऐतिहासिक मोड़ पर महान हिंदू समुदाय और उनके परिवार के साथ उनके शोक में ईमानदारी से सहानुभूति व्यक्त करता हूं. भारत के प्रभुत्व का नुकसान अपूरणीय है, और इस समय ऐसे महान व्यक्ति के निधन से पैदा हुए शून्य को भरना बहुत मुश्किल होगा.”
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जिन्ना का यह वक्तव्य कई दृष्टिकोण से जरुरी था. पहली बात, यह उनके और गांधी जी के बीच ideological मतभेदों को बताता है. जबकि गांधी जी ने हमेशा एकता और सहिष्णुता का संदेश दिया, वहीं जिन्ना ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक पहचान को प्राथमिकता दी.
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गांधी जी ने हमेशा कहा है कि "आंख के बदले आंख का सिद्धांत केवल पूरी दुनिया को अंधा करेगा.” इसी तरह, आज जब हम जिन्ना के दृष्टिकोण और गांधी जी के विचारों की तुलना करते हैं, तो यह साफ होता है कि एकता और सहिष्णुता ही हमें आगे बढ़ने का रास्ता दे सकती है.
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भारत के विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंध थे. ऐसे में जिन्ना के लिए भारत के राष्ट्रपिता के निधन पर हिंदू-मुस्लिम का नारा लगाना राजनीतिक रूप से अनुचित और अविवेकी लगा था.
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महात्मा गांधी के निधन पर जिन्ना की टिप्पणी केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह आज के समय में भी जरुरी है. आज जब हम हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि यह केवल एक धार्मिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर भी सवाल खड़े करता है.
Published at : 01 Oct 2024 08:58 PM (IST)
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नयन कुमार झाराजनीतिक विश्लेषक
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