Draupadi Murmu: मंदिर में खुद झाड़ू लगाती हैं देश की राष्ट्रपति, डिप्रेशन से लड़ी लंबी लड़ाई
परिवार को खोना: जाहिर है इस आदिवासी महिला का अपने समाज से निकलकर देश की महामहिम बनने तक का सफर आसान नहीं रहा होगा. लेकिन संघर्ष की इस राह में उन्हें परिवार का साथ भी नहीं मिल सका. एक-एक कर द्रौपदी का लगभग पूरा परिवार समाप्त हो गया.
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View In Appजीवन का संघर्ष: कोई भी व्यक्ति अपने परिवार के लिए ही सबकुछ करता है. इसी में उसे खुशी भी मिलती है और इस परिवार से ही उसे ताकत भी मिलती है. या तो कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसने परिवार बढ़ाने के बारे में कभी सोचा ना हो, जैसे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. तब तो व्यक्ति एक अलग तरह के लक्ष्य को लेकर चल रहा होता है.
एक-एक कर छूटा पूरा परिवार: लेकिन जब कोई परिवार बढ़ाता है और अचानक उससे उसका पूरा परिवार हमेशा के लिए जुदा हो जाए तो यह पीड़ा बहुत बड़ी और गहरी होती है. ऐसा ही कुछ झेला है देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने. भरे-पूरे परिवार में से आज द्रौपदी के पास फैमिली के नाम पर एक बेटी है, जो एक बैंकर हैं.
हो गई डिप्रेशन का शिकार : द्रौपदी मुर्मू ने अपने दो युवा बेटों को खोया है और फिर पति भी दुनिया से चले गए. बड़े बेटे की मृत्यु एक एक्सिडेंट में हुई थी और उसके तीन साल बाद छोटा बेटा भी नहीं रहा. इस गम में द्रौपदी के पति बीमार रहने लगे और एक साल बाद ही वे भी दुनिया से चल बसे. इन सब बेहद विपरीत परिस्थियों के बीच द्रौपदी डिप्रेशन का शिकार हो गईं.
ऐसे आईं अवसाद से बाहर : द्रौपदी को अवसाद से बाहर लाने में उनकी आध्यात्मिकता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. द्रौपदी ने खुद को संभालने और जीवन की गाड़ी को हिम्मत से आगे बढ़ाने के लिए ध्यान और योग का सहारा लिया. अपनी आत्मशक्ति को केंद्रित किया और समाज सेवा के कार्यों में जुट गईं. ये मॉर्निंग वॉक के साथ अपने दिन की शुरुआत करती हैं.
शिवभक्त हैं द्रौपदी मुर्मू: महामहिम द्रौपदी मुर्मू शिव भक्त हैं और अक्सर भोले बाबा के मंदिर जाकर पूजा-पाठ करती हैं. खास बात यह है कि मंदिर में पूजा अर्चना से पहले द्रोपदी खुद ही मंदिर में झाड़ू लगाती हैं. ऐसी ही झलक तब देखने को मिली थी, जब एनडीए की ओर से द्रौपदी का नाम राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के रूप में घोषित किया गया.
द्रौपदी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: द्रौपदी मुर्मू का जन्म उड़ीसा के मयूरभंज जिले के आदिवासी परिवार में 20 जून 1958 को हुआ. इनके पिता गांव के मुखिया थे और उनका नाम बिरंची नारायण टुडू था. द्रौपदी ने भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय से स्नातक किया है.
द्रौपदी का राजनीतिक सफर: ये शुरू से ही राजनीति में नहीं थी बल्कि बतौर शिक्षिका इन्होंने अपने करियर की शुरुआत की. इसके बाद पहले नगर पार्षद, फिर विधायक और फिर राज्य सरकार में मंत्री बनी. द्रौपदी झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं. इस तरह कदम-दर-कदम हर चुनौती का सामना करते हुए द्रौपदी मुर्मू आज भारत की महामहिम बन गईं.
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