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हेडफोन या ईयरफोन लगाने वाले सावधान ! इससे ज्यादा किया इस्तेमाल तो हो सकते हैं बहरे
कानों के लिए ईयरफोन या हेडफोन बेहद खतरनाक हैं. इनका ज्यादा इस्तेमाल बहरा भी बना सकता है. इसलिए इनका इस्तेमाल बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए.

हेडफोन कितनी देर लगाएं
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आजकल ईयरफोन और हेडफोन का इस्तेमाल काफी तेजी से हो रहा है. घर में हो या ऑफिस में गाने सुनने, फिल्में देखने या किसी से बात करने में लोग इनका खूब यूज कर सकते हैं. कुछ लोग तो कई-कई घंटों तक कान में ईयरफोन या हेडफोन लगाए रहते हैं, जबकि कुछ लोग एक्सरसाइज या वॉक करते समय इनका इस्तेमाल करते हैं.
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ट्रेवलिंग के दौरान भी इनका उपयोग हो रहा है तो सोते समय भी कान में ये डिवाइस लगी रहती है. अगर इनमें से कोई भी आदत आपको भी है तो तुरंत अलर्ट हो जाएं, क्योंकि इससे आपके कान तो खराब होंगे ही, कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं.
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इतना ही नहीं यह आदत बहरा (Earphones Side Effects) भी बना सकती है. ऐसे में आइए जानते हैं ईयरफोन या हेडफोन लगाने के क्या-क्या साइड इफेक्ट्स हैं...
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अगर कोई दिन में 8-9 घंटे तक हेडफोन या ईयरफोन लगाए रखता है तो इसका असर सेहत पर कुछ ही दिनों में दिखने लगता है. अगर लंबे समय तक ऐसा करते हैं तो कानों में ऑक्सीजन कम पहुंचता है और परेशानी बढ़ सकती है. इससे कम सुनाई देने की समस्या हो सकता है.
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ईयरफोन या हेडफोन से तेज आवाज सीधे कानों में जाती है, जिससे कोशिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है. चूंकि कान के भीतर का हिस्सा काफी नाजुक होता है और कोशिकाएं पतली होती हैं, जो दिमाग तक जाती हैं. ऐसे में कान के अंदर से आवाज दिमाग तक पहुंच सकती हैं और कोशिकाएं प्रभावित हो सकती हैं.
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ज्यादा देर तक ईयरफोन या हेडफोन लगाए रहने और तेज म्यूजिक सुनने से कान के पर्दे तक फट सकते हैं. एक्सपर्ट्स के अनुसार, 85 डेसिबल से ज्यादा आवाज करीब 2 घंटे से ज्यादा समय तक सुनने से कानों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. 105-110 डेसिबल आवाज 5 मिनट में ही कानों को डैमेज करने की क्षमता रखती है
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ईयरफोन या हेडफोन का इस्तेमाल करते हैं तो उसे बीच-बीच में निकालते रहें, ताकि हवा-ऑक्सीजन कानों तक पहुंचती रहे. इंफेक्शन से बचने के लिए ईयरफोन या हेडफोन के रबड़ को समय-समय पर साफ करते रहें या नए सेट बदलते रहें. हेडफोन या ईयरफोन में 60 से 70 डेसिबल तक ही गाने सुनें. रात में सोते समय ईयरफोन बिल्कुल भी न लगाएं.
Published at : 28 Feb 2024 02:58 PM (IST)
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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक
Opinion