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इस उम्र के बाद बच्चों को डांटना बंद कर देना चाहिए, जानें क्या है वजह

विशेषज्ञ कहते हैं कि एक उम्र के बाद, बच्चों को डांटना उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. आज हम जानेंगे कि किस उम्र के बाद अपने बच्चों को डांटना बंद कर देना चाहिए और क्यों?

विशेषज्ञ कहते हैं कि एक उम्र के बाद, बच्चों को डांटना उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. आज हम जानेंगे कि किस उम्र के बाद अपने बच्चों को डांटना बंद कर देना चाहिए और क्यों?

बच्चों की परवरिश करना एक ऐसी यात्रा है जिसमें माता-पिता हर दिन नई चुनौतियों का सामना करते हैं. इस यात्रा में, डांट-फटकार भी अनुशासन का एक साधन बन जाता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बच्चों को डांटने का प्रभाव उनकी उम्र के साथ बदल सकता है?

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विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को खासतौर पर 7 से 8 साल की उम्र के बाद डांटने की प्रक्रिया में बदलाव लाना चाहिए. इस उम्र के बाद, बच्चे अपने आसपास की चीजों को समझने लगते हैं और उनकी सोच में परिपक्वता आने लगती है. इसलिए, उन्हें डांटने की बजाय, उनसे संवाद करना और समझाना ज्यादा उचित होता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को खासतौर पर 7 से 8 साल की उम्र के बाद डांटने की प्रक्रिया में बदलाव लाना चाहिए. इस उम्र के बाद, बच्चे अपने आसपास की चीजों को समझने लगते हैं और उनकी सोच में परिपक्वता आने लगती है. इसलिए, उन्हें डांटने की बजाय, उनसे संवाद करना और समझाना ज्यादा उचित होता है.
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टीन एज, यानी किशोरावस्था, बच्चों के विकास का एक नाजुक दौर होता है. इस समय में, बच्चे खुद को और अपने आस-पास की दुनिया को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं. इसलिए, इस उम्र में उन्हें डांटना बंद कर देना चाहिए.
टीन एज, यानी किशोरावस्था, बच्चों के विकास का एक नाजुक दौर होता है. इस समय में, बच्चे खुद को और अपने आस-पास की दुनिया को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं. इसलिए, इस उम्र में उन्हें डांटना बंद कर देना चाहिए.
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इस दौरान, उन्हें प्यार और समर्थन की जरूरत होती है ताकि वे जिम्मेदारी के साथ अपने निर्णय ले सकें और अपनी पहचान को मजबूती से विकसित कर सकें.
इस दौरान, उन्हें प्यार और समर्थन की जरूरत होती है ताकि वे जिम्मेदारी के साथ अपने निर्णय ले सकें और अपनी पहचान को मजबूती से विकसित कर सकें.
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बच्चों में डांटने का असर केवल उनके व्यवहार पर ही नहीं पड़ता, बल्कि उनकी मनोवृत्ति और भावनाओं पर भी गहरा असर डालता है. जब बच्चों को बार-बार डांटा जाता है, तो इससे उनमें एक गहरी और लगातार डर की भावना विकसित हो सकती है.
बच्चों में डांटने का असर केवल उनके व्यवहार पर ही नहीं पड़ता, बल्कि उनकी मनोवृत्ति और भावनाओं पर भी गहरा असर डालता है. जब बच्चों को बार-बार डांटा जाता है, तो इससे उनमें एक गहरी और लगातार डर की भावना विकसित हो सकती है.
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यह डर उन्हें अपने माता-पिता या अन्य वयस्कों के सामने खुलकर अपनी बातें कहने से रोकता है. वे सोचने लगते हैं कि अगर वे कुछ गलत कहेंगे या किसी गलती का इज़हार करेंगे, तो उन्हें फिर से डांट पड़ेगी. इस तरह की डर की भावना उनके विकास के लिए हानिकारक है.
यह डर उन्हें अपने माता-पिता या अन्य वयस्कों के सामने खुलकर अपनी बातें कहने से रोकता है. वे सोचने लगते हैं कि अगर वे कुछ गलत कहेंगे या किसी गलती का इज़हार करेंगे, तो उन्हें फिर से डांट पड़ेगी. इस तरह की डर की भावना उनके विकास के लिए हानिकारक है.

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