Daanveer: ये हैं हिंदू धर्म के महान दानवीर, किसी ने शीश तो किसी ने पूरा राज्य ही कर दिया दान
राजा हरिश्चंद्र- दानवीर राजाओं में राजा हरिश्चंद्र का नाम सबसे पहले लिया जाता है. आज भी दान-कर्म को लेकर राजा हरिश्चंद्र का ही उदाहरण दिया जाता है और इनकी कहानियां सुनाई जाती है. राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में ऋषिमुनि को अपना पूरा राजपाट देते हुए देखा. अगले दिन ऋषि राजभवन आए और राजा को स्वप्न का स्मरण कराया तो उन्होंने अपना राज्य ऋषिमुनि को दान दे दिया.
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View In Appराजा शिबि- उनीशर के राजा शिबी भी दयालु और परोपकारी थे. एक बार राजा शिबी की परोपकारिता की परीक्षा लेने के लिए इंद्र बाज और अग्नि कबूतर बन गए. यज्ञ के दौरान कबूतर राजा की गोद में जा बैठा. तब इंद्र रूपी बाज वहां आकर कहते हैं कि, यह कबूतर मेरा भोजन है. इधर कबूतर राजा से प्राण रक्षा की गुहार लगाने लगा. राजा ने बाज से कहा कि इसे छोड़ दो. बाज ने कहा इस कबूतर के बराबर अपना मांस काटकर दो, तभी इसे छोड़ूंगा. राजा ने तराजू मंगवाया और एक तरफ कबूतर को रखकर दूसरे में अपने शरीर का मांस काटकर रख दिया, लेकिन पलड़ा हिला भी नहीं. राजा खुद ही तराजू में बैठ गया और बाज से कहा कि मुझे खा लो. तब इंद्र और अग्नि अपने असली स्वरूप में वापस आ गए और शिबि को आशीर्वाद दिया.
कर्ण- कर्ण को आदर्श दानवीर माना गया है. इंद्र ने विप्र के वेश में कर्ण ने कवच और कुंडल का दान मांगा, जिसमें कर्ण के प्राण बसते थे. लेकिन कर्ण में एक क्षण गवाएं बिना अपने कवच और कुंडल दे दिए. हालांकि बाद में इंद्र को कवच कुंडल के बदले कर्ण को अमोघ अस्त्र देना पड़ा.
प्रह्लाद- प्रह्लाद दानी स्वभाव का था. वह प्रतिदिन प्रात: दान करता था. एक बार प्रह्लाद से भिक्षुक रूपी इंद्र ने जब उससे शील (शील) मांगा तो प्रह्लाद ने तुरंत अपना शील तक दान कर दिया.
दैत्यराज बलि - दैत्यराज बलि ने कठोर तपस्या से यश और राज्य की प्राप्ति की. असुर कुल में जन्म होने के बावजूद भी उन्हें बड़ा दानवीर माना जाता है. एक बार भगवान वामन ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले पग में पृथ्वी, दूसरे पग में पूरा स्वर्ग और तीसरे पग में जब कुछ नहीं बचा तो राजा ने अपना शीश आगे कर स्वंय को ही भगवान को दान कर दिया.
राजा रघु- राजा रघु के नाम पर ही रघुवंश की रचना हुई. एक बार उन्होंने ब्राह्मणों और गरीबों में अपना सबकुछ दान कर दिया. जब महर्षि ऋषि विश्वामित्र ने राजा रघु से 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी तो उन्होंने कुबेर के साथ युद्ध करके इसे प्राप्त किया और फिर महर्षि विश्वामित्र को दान दिया.
महाराज नृग- इक्ष्वाकु पुत्र महाराज नृग दान के लिए प्रसिद्ध थे. कहा जाता है कि वे प्रतिदिन हजार गायों का दान करते थे. दान करने से पहले वे गायों के सीगों को स्वर्ण और खुरों को रजत से मढ़ते थे. गाय के साथ वे बछड़ा भी दान करते थे.
महर्षि दधीचि- महर्षि दधीचि परोपकारी और दयालु थे. जब भी आत्मदान की बात आती है तो, महर्षि दधीचि का नाम जरूर लिया जाता है. उन्होंने असुरों के संहार के लिए अपनी अस्तियां तक दान में दे दी थी.
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