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Lord Ganesha: गणेश भगवान को क्यों लगाना पड़ा था गजमुख? जानें ये पौराणिक कथा
Gajmukh Ki Kahani: हिंदू धर्म में गणेश भगवान को सर्वप्रथम पूजनीय माना जाता है. पुराणों में गणपति के जन्म से लेकर उनके शारीरिक बनावट के संबंध में कई कथाएं हैं. आइए जानते हैं उनके सिर से जुड़ी कहानी.

जानिए गणेश जी को हाथी का सिर कैसे मिला
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हिंदू देवी- देवताओं में गणपति का विशेष महत्व है. किसी भी शुभ काम की शुरुआत से पहले गणेश भगवान की आराधना की जाती है. पुराणों में गणपति के जन्म से लेकर उनके शारीरिक बनावट के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं.
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गणेश भगवान का मुंह हाथी का है इसलिए उन्हें गजमुख भी कहा जाता है. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों गणेश जी को हाथी का सिर मिला. शिवजी तो जंगल में निवास करते थे और वो किसी भी जानवर का सिर उन्हें लगा सकते थे फिर भी उन्होंने हाथी का मुख ही गणपति को क्यों लगाया. आइए जानते हैं इस कहानी के बारे में.
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गणेश जी का सिर हाथी का है. उनके इस सिर के पीछे एक असुर की कहानी है. गज और असुर के संयोग से एक असुर का जन्म हुआ. इस असुर का मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा.
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कूर्मपुराण के अनुसार गजासुर शिवजी का बड़ा भक्त था और दिन-रात उनकी आराधना में लीन रहता था. उसकी भक्ति से भोले भंडारी प्रसन्न हो गए और उससे इच्छानुसार वरदान मांगने को कहा.
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गजासुर ने वरदान में शिव को ही मांग लिया. गजासुर ने कहा कि प्रभु यदि आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो कैलाश छोड़कर मेरे पेट में ही निवास करें. शिव जी बहुत भोले थे इसलिए वो गजासुर की ये बात मान गए और उसके पेट में समा गए.
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जब माता पार्वती ने शंकर भगवान को खोजना शुरू किया लेकिन वह कहीं नहीं मिले. उन्होंने विष्णुजी का स्मरण कर शिवजी का पता लगाने को कहा. इसके बाद विष्णु जी ने एक योजना बनाई. अपनी लीला से विष्णु भगवान सितारवादक बने, ब्रह्मा जी को तबला वादक और नंदी को नाचने वाला बैल बनाया. तीनों ने मिलकर गजासुक के महल में नाच किया.
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बांसुरी की धुन पर नंदी के अद्भुत नृत्य से गजासुर बहुत प्रसन्न हो गया और उसने वरदान में कुछ भी मांगने को कहा. मौका मिलते ही नंदी ने भोलेनाथ गजासुर से उन्हें अपने पेट से निकालकर वापस करने को कहा. गजासुर समझ गया कि ये कोई आम लोग नहीं बल्कि साक्षात प्रभु के अवतार हैं. अपने वचन का मान रखते हुए उसने भगवान शिव को वापस कर दिया.
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वचन पूरा करने पर विष्णु भगवान गजासुर से प्रसन्न हुए और उसे मनचाहा वर मांगने को कहा. तब गजासुर ने कहा की वो चाहता है सभी उसके गजमुख को याद रखें और हमेशा सब इसकी पूजा करें. भगवान ने तथास्तु कहा और उसकी ये इच्छा पूरी की. उन्होंने कहा कि समय आने पर तुम्हें ऐसा ही सम्मान मिलेगा.
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जब भगवान शिव ने पार्वती के बनाये पुत्र की गर्दन को अलग किया तो श्रीहरि गजासुर के शीश को ही काट कर लाए और गणपति के धड़ से जोड़कर उन्हें जीवित किया था. इस तरह वह शिवजी के प्रिय पुत्र के रूप में प्रथम आराध्य हो गया.
Published at : 09 Dec 2022 03:42 PM (IST)
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नयन कुमार झाराजनीतिक विश्लेषक
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