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जानिए, बीजेपी की सुनामी में मोदी के लिए जीत के मायने

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गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश इन पांच राज्यों में से सबसे ज्यादा 403 विधानसभा सीटें उत्तर प्रदेश में है. उत्तर प्रदेश से लोकसभा की 80 सीटें आती है. यूपी में 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी ने 73 सीटें जीती थी. यूपी में बीजेपी की इस शानदार जीत ने केंद्र में उसकी मजबूत सरकार बनाने में अहम रोल निभाया था लेकिन राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है और इसीलिए मोदी सरकार को अपनी नीतियां लागू करने में मश्किलों का सामना करना पड़ा है. जाहिर है राज्यसभा में बहुमत के लिए बीजेपी को ज्यादा राज्यसभा सांसदों की जरुरत है. क्योंकि राज्य के विधायक ही राज्यसभा सांसदों का चुनाव करते हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश का ये विधानसभा चुनाव बीजेपी ही नहीं खुद पीएम मोदी के लिए भी बेहद अहम बन गया था. विधानसभा चुनाव के इस महासंग्राम में विजय और पराजय की कहानी लिखी जा चुकी है, नतीजे वोटिंग मशीन से निकल कर अब आपके सामने खड़े हैं. मोदी मैजिक के आगे साइकिल पंचर हो चुकी है तो वहीं हाथी छूमंतर. लेकिन अब आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि इस चुनावी महामथंन से विकास का अमृत निकलेगा या फिर जनता के हिस्से में आएगी एक और विषैली आस.
गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश इन पांच राज्यों में से सबसे ज्यादा 403 विधानसभा सीटें उत्तर प्रदेश में है. उत्तर प्रदेश से लोकसभा की 80 सीटें आती है. यूपी में 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी ने 73 सीटें जीती थी. यूपी में बीजेपी की इस शानदार जीत ने केंद्र में उसकी मजबूत सरकार बनाने में अहम रोल निभाया था लेकिन राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है और इसीलिए मोदी सरकार को अपनी नीतियां लागू करने में मश्किलों का सामना करना पड़ा है. जाहिर है राज्यसभा में बहुमत के लिए बीजेपी को ज्यादा राज्यसभा सांसदों की जरुरत है. क्योंकि राज्य के विधायक ही राज्यसभा सांसदों का चुनाव करते हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश का ये विधानसभा चुनाव बीजेपी ही नहीं खुद पीएम मोदी के लिए भी बेहद अहम बन गया था. विधानसभा चुनाव के इस महासंग्राम में विजय और पराजय की कहानी लिखी जा चुकी है, नतीजे वोटिंग मशीन से निकल कर अब आपके सामने खड़े हैं. मोदी मैजिक के आगे साइकिल पंचर हो चुकी है तो वहीं हाथी छूमंतर. लेकिन अब आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि इस चुनावी महामथंन से विकास का अमृत निकलेगा या फिर जनता के हिस्से में आएगी एक और विषैली आस.
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उत्तरप्रदेश के चुनाव में जहां समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन का चेहरा अखिलेश यादव हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी से मायावती मुख्यमंत्री पद की दावेदार. लेकिन बीजेपी ने मुख्यमंत्री का अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. यूपी के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ही बीजेपी का चेहरा रहे और इसीलिए बिहार और दिल्ली के बाद ये चुनाव मोदी के लिए दूसरी बड़ी अग्नि परीक्षा बन गए थे. पांच राज्यों के इन चुनावों में नोटबंदी का मुद्दा भी छाया रहा. मोदी सरकार ने एक तरफ नोटबंदी को लेकर तरह-तरह की पांबदियां लगाई तो वहीं दूसरी तरफ छूट और डिस्काउंट की बरसात भी कराई गई. ऐसे में अहम सवाल ये भी था कि यूपी चुनाव में पीएम मोदी के लिए नोटबंदी बड़ा दांव बनेगी या फिर बन जाएगी उनके गले की फांस. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी सूबों की लड़ाई में बिहार, बंगाल और दिल्ली की जंग हार चुके हैं और इसीलिए उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर के ये चुनाव उनके लिए बेहद खास हो गए थे. लेकिन यूपी का ये चुनाव एक और मायने में भी प्रधानमंत्री मोदी के लिए बेहद अहम है.
उत्तरप्रदेश के चुनाव में जहां समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन का चेहरा अखिलेश यादव हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी से मायावती मुख्यमंत्री पद की दावेदार. लेकिन बीजेपी ने मुख्यमंत्री का अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. यूपी के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ही बीजेपी का चेहरा रहे और इसीलिए बिहार और दिल्ली के बाद ये चुनाव मोदी के लिए दूसरी बड़ी अग्नि परीक्षा बन गए थे. पांच राज्यों के इन चुनावों में नोटबंदी का मुद्दा भी छाया रहा. मोदी सरकार ने एक तरफ नोटबंदी को लेकर तरह-तरह की पांबदियां लगाई तो वहीं दूसरी तरफ छूट और डिस्काउंट की बरसात भी कराई गई. ऐसे में अहम सवाल ये भी था कि यूपी चुनाव में पीएम मोदी के लिए नोटबंदी बड़ा दांव बनेगी या फिर बन जाएगी उनके गले की फांस. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी सूबों की लड़ाई में बिहार, बंगाल और दिल्ली की जंग हार चुके हैं और इसीलिए उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर के ये चुनाव उनके लिए बेहद खास हो गए थे. लेकिन यूपी का ये चुनाव एक और मायने में भी प्रधानमंत्री मोदी के लिए बेहद अहम है.
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उत्तर प्रदेश का चुनाव अपने आखिरी दौर में पहुंच कर बेहद रोमांचक हो गया था. सातवें यानी आखिरी चरण के मतदान से पहले वाराणसी में राजनीतिक दलों के बीच जबरदस्त घमासान मचा. सातवें चरण में यूपी की जिन 40 सीटों के लिए मतदान होना था उसमें वाराणसी की आठ सीटें भी शामिल थी. वाराणसी, पीएम मोदी का चुनाव क्षेत्र भी है और यही वजह है कि बनारस की इस जंग को जीतने के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कई मंत्रियों के साथ वाराणसी में ही तीन दिनों तक डेरा डाल दिया था. पीएम मोदी और बीजेपी के लिए जहां वाराणसी की सीटें जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था वहीं मायावती और अखिलेश-राहुल की जोड़ी भी प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र की ज्यादा सीटें जीत कर ये संदेश देना चाहते थे कि अब मोदी की वह धमक नहीं रही है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी की आठ में से आठों सीटें जीतकर अपना ये किला भी बचा ले गए.
उत्तर प्रदेश का चुनाव अपने आखिरी दौर में पहुंच कर बेहद रोमांचक हो गया था. सातवें यानी आखिरी चरण के मतदान से पहले वाराणसी में राजनीतिक दलों के बीच जबरदस्त घमासान मचा. सातवें चरण में यूपी की जिन 40 सीटों के लिए मतदान होना था उसमें वाराणसी की आठ सीटें भी शामिल थी. वाराणसी, पीएम मोदी का चुनाव क्षेत्र भी है और यही वजह है कि बनारस की इस जंग को जीतने के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कई मंत्रियों के साथ वाराणसी में ही तीन दिनों तक डेरा डाल दिया था. पीएम मोदी और बीजेपी के लिए जहां वाराणसी की सीटें जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था वहीं मायावती और अखिलेश-राहुल की जोड़ी भी प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र की ज्यादा सीटें जीत कर ये संदेश देना चाहते थे कि अब मोदी की वह धमक नहीं रही है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी की आठ में से आठों सीटें जीतकर अपना ये किला भी बचा ले गए.
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2014 के आम चुनाव से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद करते रहे है. ऐसे में यहां अहम सवाल ये भी है कि क्या देश वाकई कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ बढ़ रहा है. यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद तस्वीर बिल्कुल साफ है. जहां देश के करीब 58 फीसदी हिस्से पर बीजेपी और उसकी गठबंधन की सरकार है वहीं हिमाचल, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, कर्नाटक और पंजाब कांग्रेस के खाते में हैं यानी देश के करीब साढ़े आठ फीसदी हिस्से पर ही कांग्रेस का कब्जा रह गया है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मात देने के लिए विरोधियों ने एक जबरदस्त चक्रव्यूह तैयार किया था. यही वजह है कि कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से गठबंधन होने के बाद भी जहां राहुल गांधी मायावती की तारीफ करते नजर आए वहीं अपने पूरे प्रचार अभियान के दौरान अखिलेश यादव भी मायावती पर निशाना साधने से परहेज करते रहे. यूपी के इस सत्ता संग्राम में एक तरफ जहां सारे विरोधी थे तो वहीं दूसरी तरफ सिर्फ मोदी.
2014 के आम चुनाव से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद करते रहे है. ऐसे में यहां अहम सवाल ये भी है कि क्या देश वाकई कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ बढ़ रहा है. यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद तस्वीर बिल्कुल साफ है. जहां देश के करीब 58 फीसदी हिस्से पर बीजेपी और उसकी गठबंधन की सरकार है वहीं हिमाचल, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, कर्नाटक और पंजाब कांग्रेस के खाते में हैं यानी देश के करीब साढ़े आठ फीसदी हिस्से पर ही कांग्रेस का कब्जा रह गया है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मात देने के लिए विरोधियों ने एक जबरदस्त चक्रव्यूह तैयार किया था. यही वजह है कि कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से गठबंधन होने के बाद भी जहां राहुल गांधी मायावती की तारीफ करते नजर आए वहीं अपने पूरे प्रचार अभियान के दौरान अखिलेश यादव भी मायावती पर निशाना साधने से परहेज करते रहे. यूपी के इस सत्ता संग्राम में एक तरफ जहां सारे विरोधी थे तो वहीं दूसरी तरफ सिर्फ मोदी.
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पांच राज्यों के इन चुनावों में नोटबंदी का मुद्दा भी छाया रहा. विरोधी दल नोटबंदी को लेकर लगातार पीएम नरेंद्र मोदी को घेरते रहे. लेकिन मोदी ने भी नोटबंदी को लेकर विरोधियों पर जबरदस्त पलटवार किया. चुनावी रैलियों में पीएम मोदी ने चुन-चुन कर विरोधियों के एक-एक इल्जाम का जोरदार जवाब भी दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने करारे भाषणों के लिए जाने जाते हैं. संसद से लेकर सड़क तक उन्होंने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि तीखे भाषण देने का उनका हथियार कुंद नहीं पड़ा है. लेकिन अहम सवाल ये है कि यूपी में बीजेपी की जीत क्या मोदी को 2019 में एक बार फिर देश की सत्ता का ताज दिला पाएगी. पांच राज्यों के चुनाव नतीजे मोदी लहर को बयान कर रहे हैं. लेकिन ये चुनाव नतीजे इसलिए भी अहम हैं क्योंकि करीब ढाई साल बाद देश में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं और इन विधानसभा चुनावों को मोदी सरकार के नोटबंदी पर जनमत संग्रह के तौर पर भी देखा जा रहा था. ऐसे में अगर बीजेपी ये चुनाव हारती तो 2019 के आम चुनाव से पहले वो मुश्किलों में घिर जाती. लेकिन इस चुनावी जीत ने बीजेपी का हौसला बुलंद कर दिया है. अब जरा ये भी समझ लीजिए की यूपी का किला जीतने के बाद देश के नक्शे पर कितने हिस्से में बीजेपी और उसकी गठबंधन की सरकार बन गई है. उत्तर प्रदेश (16.5%), महाराष्ट्र (9.3%), मध्य प्रदेश(6 %), राजस्थान(5.7%), गुजरात(5%),  झारखंड (2.7%),  असम(2.58%), छत्तीसगढ़(2.1%), हरियाणा(2.1%), उत्तराखंड(0.83%), और गोवा(0.1%), यानी देश की कुल आबादी के करीब तिरेपन फीसद हिस्से पर (52.71%) बीजेपी का कब्जा हो चुका है. बीजेपी की सरकार वाले इन राज्यों के अलावा आंध्रप्रदेश (4.08%), जम्मू कश्मीर (1.06%), अरुणाचल (0.11%) में भी बीजेपी गठबंधन की सरकारें हैं जहां कुल आबादी के करीब 5 फीसदी लोग रहते हैं. इस तरह पूरे देश के नक्शे पर गौर करें तो अब देश की कुल आबादी के करीब 58 फीसदी हिस्से पर बीजेपी और गठबंधन का राज हो जाएगा. जो कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से पहले करीब तैंतालीस फीसदी था.
पांच राज्यों के इन चुनावों में नोटबंदी का मुद्दा भी छाया रहा. विरोधी दल नोटबंदी को लेकर लगातार पीएम नरेंद्र मोदी को घेरते रहे. लेकिन मोदी ने भी नोटबंदी को लेकर विरोधियों पर जबरदस्त पलटवार किया. चुनावी रैलियों में पीएम मोदी ने चुन-चुन कर विरोधियों के एक-एक इल्जाम का जोरदार जवाब भी दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने करारे भाषणों के लिए जाने जाते हैं. संसद से लेकर सड़क तक उन्होंने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि तीखे भाषण देने का उनका हथियार कुंद नहीं पड़ा है. लेकिन अहम सवाल ये है कि यूपी में बीजेपी की जीत क्या मोदी को 2019 में एक बार फिर देश की सत्ता का ताज दिला पाएगी. पांच राज्यों के चुनाव नतीजे मोदी लहर को बयान कर रहे हैं. लेकिन ये चुनाव नतीजे इसलिए भी अहम हैं क्योंकि करीब ढाई साल बाद देश में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं और इन विधानसभा चुनावों को मोदी सरकार के नोटबंदी पर जनमत संग्रह के तौर पर भी देखा जा रहा था. ऐसे में अगर बीजेपी ये चुनाव हारती तो 2019 के आम चुनाव से पहले वो मुश्किलों में घिर जाती. लेकिन इस चुनावी जीत ने बीजेपी का हौसला बुलंद कर दिया है. अब जरा ये भी समझ लीजिए की यूपी का किला जीतने के बाद देश के नक्शे पर कितने हिस्से में बीजेपी और उसकी गठबंधन की सरकार बन गई है. उत्तर प्रदेश (16.5%), महाराष्ट्र (9.3%), मध्य प्रदेश(6 %), राजस्थान(5.7%), गुजरात(5%), झारखंड (2.7%), असम(2.58%), छत्तीसगढ़(2.1%), हरियाणा(2.1%), उत्तराखंड(0.83%), और गोवा(0.1%), यानी देश की कुल आबादी के करीब तिरेपन फीसद हिस्से पर (52.71%) बीजेपी का कब्जा हो चुका है. बीजेपी की सरकार वाले इन राज्यों के अलावा आंध्रप्रदेश (4.08%), जम्मू कश्मीर (1.06%), अरुणाचल (0.11%) में भी बीजेपी गठबंधन की सरकारें हैं जहां कुल आबादी के करीब 5 फीसदी लोग रहते हैं. इस तरह पूरे देश के नक्शे पर गौर करें तो अब देश की कुल आबादी के करीब 58 फीसदी हिस्से पर बीजेपी और गठबंधन का राज हो जाएगा. जो कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से पहले करीब तैंतालीस फीसदी था.
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देश के पांच अहम राज्यों यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों को 2019 के आम चुनाव से पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की लोकप्रियता के टेस्ट के तौर पर भी देखा जा रहा है. लेकिन सबसे ज्यादा नजरें यूपी के चुनावी नतीजे पर टिकी थीं. क्योंकि यूपी की राजनीति में बीजेपी 15 साल तक सत्ता से बाहर रही है और अपने इसी सूखे को खत्म करने के लिए उसने पीएम मोदी पर अपना सबसे बड़ा दांव लगाया था. 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने 29.3 फीसदी वोट शेयर के साथ सूबे की 224 सीटें जीत ली थी. कांग्रेस को यूपी में 11.7 फीसदी वोटों के साथ 28 सीटें मिली थी और बीजेपी का उत्तर प्रदेश में 15 फीसदी वोट शेयर था और उसने 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी. यूपी के इस मौजूदा आकंडों से जाहिर है कि यहां बीजेपी के लिए राह आसान नहीं थी. हांलाकि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार बीजेपी को यहां लोकसभा की 80 में से 71 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी को 43 फीसदी वोट मिले थे. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 81 फीसदी विधानसभा क्षेत्रों यानी 328 सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी. यूपी के हालिया चुनावी इतिहास में किसी भी पार्टी को इतनी बड़ी जीत नहीं हासिल हुई थी. ऐसा आखिरी बार 1977 में तब हुआ था जब जनता पार्टी ने 80 फीसदी विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी.  लेकिन विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के लिए मुकाबला आसान नहीं था क्योंकि चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के हाथ ने समाजवादी पार्टी की साइकिल का हैंडिल थाम लिया है. यूपी में इस संयुक्त चुनौती का अहसास खुद प्रधानमंत्री मोदी को भी बखूबी था और इसीलिए उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस+एसपी गठबंधन पर जबरदस्त प्रहार किया.
देश के पांच अहम राज्यों यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों को 2019 के आम चुनाव से पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की लोकप्रियता के टेस्ट के तौर पर भी देखा जा रहा है. लेकिन सबसे ज्यादा नजरें यूपी के चुनावी नतीजे पर टिकी थीं. क्योंकि यूपी की राजनीति में बीजेपी 15 साल तक सत्ता से बाहर रही है और अपने इसी सूखे को खत्म करने के लिए उसने पीएम मोदी पर अपना सबसे बड़ा दांव लगाया था. 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने 29.3 फीसदी वोट शेयर के साथ सूबे की 224 सीटें जीत ली थी. कांग्रेस को यूपी में 11.7 फीसदी वोटों के साथ 28 सीटें मिली थी और बीजेपी का उत्तर प्रदेश में 15 फीसदी वोट शेयर था और उसने 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी. यूपी के इस मौजूदा आकंडों से जाहिर है कि यहां बीजेपी के लिए राह आसान नहीं थी. हांलाकि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार बीजेपी को यहां लोकसभा की 80 में से 71 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी को 43 फीसदी वोट मिले थे. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 81 फीसदी विधानसभा क्षेत्रों यानी 328 सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी. यूपी के हालिया चुनावी इतिहास में किसी भी पार्टी को इतनी बड़ी जीत नहीं हासिल हुई थी. ऐसा आखिरी बार 1977 में तब हुआ था जब जनता पार्टी ने 80 फीसदी विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी. लेकिन विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के लिए मुकाबला आसान नहीं था क्योंकि चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के हाथ ने समाजवादी पार्टी की साइकिल का हैंडिल थाम लिया है. यूपी में इस संयुक्त चुनौती का अहसास खुद प्रधानमंत्री मोदी को भी बखूबी था और इसीलिए उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस+एसपी गठबंधन पर जबरदस्त प्रहार किया.
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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत ने यहां का माहौल अचानक गर्मा दिया है. दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है. 2014 में इसी राजनीतिक कहावत पर अमल करके बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी को चुनाव मैदान में उतारा था और अब यूपी विधानसभा चुनाव की इस जीत ने बीजेपी की जीत को दोगुना बना दिया है. होली के रंग में घुलता मोदी की जीत का ये रंग उत्तर प्रदेश की राजनीति में आगे क्या रंग दिखाएंगा इस पर अब पूरे देश की निगाहें टिक गई हैं. क्योंकि यूपी की इस जीत के साथ ही पीएम मोदी पूरी तरह बन गए हैं बनारसी बाबू. साथ ही एक बात और है कि यूपी मे जीत की होली से क्या 2019 के लिए मोदी को मिल गया है दिल्ली का मंत्र.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत ने यहां का माहौल अचानक गर्मा दिया है. दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है. 2014 में इसी राजनीतिक कहावत पर अमल करके बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी को चुनाव मैदान में उतारा था और अब यूपी विधानसभा चुनाव की इस जीत ने बीजेपी की जीत को दोगुना बना दिया है. होली के रंग में घुलता मोदी की जीत का ये रंग उत्तर प्रदेश की राजनीति में आगे क्या रंग दिखाएंगा इस पर अब पूरे देश की निगाहें टिक गई हैं. क्योंकि यूपी की इस जीत के साथ ही पीएम मोदी पूरी तरह बन गए हैं बनारसी बाबू. साथ ही एक बात और है कि यूपी मे जीत की होली से क्या 2019 के लिए मोदी को मिल गया है दिल्ली का मंत्र.
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हर चुनाव राजनीति को एक नया संदेश देकर जाता है. बिहार और दिल्ली के चुनाव नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी अश्वमेध पर लगाम लगा दी थी. वहीं पश्चिम बंगाल और बिहार के चुनाव में बीजेपी की हार से पार्टी में बेचैनी फैल गई थी लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत ने 2019 के लिए उसका मनोबल बढ़ा दिया है. चुनावी जंग के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश का सबसे अहम राज्य है. बीस करोड़ की आबादी वाला उत्तर प्रदेश जनसंख्या के नजरिए से भी भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश है. अगर उत्तर प्रदेश कोई अलग देश होता तो आबादी के मामले में वो चीन, भारत, अमेरिका और इंडोनेशिया के बाद पांचवां बड़ा देश होता. यही वजह है कि देश की चुनावी राजनीति में उत्तर प्रदेश की सबसे अहम भूमिका होती है. इस सूबे से 80 सांसद चुन कर लोकसभा में पहुंचते हैं. इसीलिए ऐसा माना जाता रहा है कि जो राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश की चुनावी जंग जीत लेता है वही देश पर राज करता है. उत्तर प्रदेश से ही भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु से लेकर देश के कई प्रधानमंत्री चुने गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात से हैं, लेकिन उन्होंने भी 2014 के आम चुनाव में संसद की राह बनारस यानी उत्तर प्रदेश से ही चुनी है. बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसमें से उत्तर प्रदेश से ही उसके 71 सांसद चुने गए थे. इस बार उत्तर प्रदेश में बीजेपी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस+समाजवादी पार्टी गठबंधन के बीच त्रिकोणीय मुकबला था लेकिन मोदी मैजिक के आगे जहां साइकिल पंचर हो गई वहीं हाथी हो गया छूमंतर.
हर चुनाव राजनीति को एक नया संदेश देकर जाता है. बिहार और दिल्ली के चुनाव नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी अश्वमेध पर लगाम लगा दी थी. वहीं पश्चिम बंगाल और बिहार के चुनाव में बीजेपी की हार से पार्टी में बेचैनी फैल गई थी लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत ने 2019 के लिए उसका मनोबल बढ़ा दिया है. चुनावी जंग के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश का सबसे अहम राज्य है. बीस करोड़ की आबादी वाला उत्तर प्रदेश जनसंख्या के नजरिए से भी भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश है. अगर उत्तर प्रदेश कोई अलग देश होता तो आबादी के मामले में वो चीन, भारत, अमेरिका और इंडोनेशिया के बाद पांचवां बड़ा देश होता. यही वजह है कि देश की चुनावी राजनीति में उत्तर प्रदेश की सबसे अहम भूमिका होती है. इस सूबे से 80 सांसद चुन कर लोकसभा में पहुंचते हैं. इसीलिए ऐसा माना जाता रहा है कि जो राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश की चुनावी जंग जीत लेता है वही देश पर राज करता है. उत्तर प्रदेश से ही भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु से लेकर देश के कई प्रधानमंत्री चुने गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात से हैं, लेकिन उन्होंने भी 2014 के आम चुनाव में संसद की राह बनारस यानी उत्तर प्रदेश से ही चुनी है. बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसमें से उत्तर प्रदेश से ही उसके 71 सांसद चुने गए थे. इस बार उत्तर प्रदेश में बीजेपी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस+समाजवादी पार्टी गठबंधन के बीच त्रिकोणीय मुकबला था लेकिन मोदी मैजिक के आगे जहां साइकिल पंचर हो गई वहीं हाथी हो गया छूमंतर.
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इन चुनावों में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे तो वहीं दूसरी तरफ देश के तमाम विरोधी दल उनके खिलाफ कदमताल कर रहे थे. दरअसल चार राज्यों समेत उत्तर प्रदेश का ये चुनाव इसलिए भी अहम माना जा रहा था क्योंकि इसे पीएम मोदी के उठाए गए अहम कदमों का टेस्ट भी माना जा रहा था. जाहिर है पांच राज्यों के ये चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक अग्निपरीक्षा बन गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपना आधा कार्यकाल यानी ढाई साल से ज्यादा का सफर तय कर चुकी है. मोदी ने साल 2016 में अपने फैसलों से दुनिया के सामने अपनी सरकार की मजबूत छवि पेश की है. पाकिस्तान की जमीन पर सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर देश में नोटबंदी लागू करने तक पीएम मोदी ने पिछले साल कई अहम और चौकानें वाले फैसले किए है और उनके इन फैसलों पर अब यूपी की जनता ने अपनी मुहर भी लगा दी है.
इन चुनावों में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे तो वहीं दूसरी तरफ देश के तमाम विरोधी दल उनके खिलाफ कदमताल कर रहे थे. दरअसल चार राज्यों समेत उत्तर प्रदेश का ये चुनाव इसलिए भी अहम माना जा रहा था क्योंकि इसे पीएम मोदी के उठाए गए अहम कदमों का टेस्ट भी माना जा रहा था. जाहिर है पांच राज्यों के ये चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक अग्निपरीक्षा बन गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपना आधा कार्यकाल यानी ढाई साल से ज्यादा का सफर तय कर चुकी है. मोदी ने साल 2016 में अपने फैसलों से दुनिया के सामने अपनी सरकार की मजबूत छवि पेश की है. पाकिस्तान की जमीन पर सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर देश में नोटबंदी लागू करने तक पीएम मोदी ने पिछले साल कई अहम और चौकानें वाले फैसले किए है और उनके इन फैसलों पर अब यूपी की जनता ने अपनी मुहर भी लगा दी है.

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