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Aurangzeb Tomb: 14 रुपए में बनी थी औरंगजेब की कब्र, मुगल शासक ने वसीयत में लिखी थी आखिरी इच्छा

Aurangzeb Tomb: औरंगजेब की आखिरी इच्छा के हिसाब से ही उसे दफनाया गया था. कब्र के आसपास के हिस्से को सफेद चादर से ढका गया है, जबकि कब्र की मिट्टी पर एक पौधा दिखता है.

Aurangzeb Tomb: औरंगजेब की आखिरी इच्छा के हिसाब से ही उसे दफनाया गया था. कब्र के आसपास के हिस्से को सफेद चादर से ढका गया है, जबकि कब्र की मिट्टी पर एक पौधा दिखता है.

मुगलों ने भारत पर 300 साल से ज्यादा राज किया. उनकी सत्ता का केंद्र दिल्ली और आगरा ही रहा, हुमायूं, अकबर और शाहजहां ने अपने लिए भव्य मकबरे बनाए, लेकिन औरंगजेब की कब्र पर खर्च आया था सिर्फ 14 रुपए 12 आने का. अब सवाल ये कि औरंगजेब हिंदुस्तान का मुगल शासक था. दिल्ली के तख्त ओ ताज पर बैठा करता था तो फिर उसकी कब्र महाराष्ट्र में क्यों है. औरंगजेब के कब्र की पूरी कहानी यहां समझते हैं.

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दिल्ली से दक्षिण की तरफ 1 हजार 153 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र का संभाजीनगर जिला. इस जिले के खुल्दाबाद में औरंगजेब की कब्र मौजूद है. दिल्ली की जिस सत्ता के लिए औरंगजेब ने पिता शाहजहां को कैद किया, भाई दाराशिकोह को निर्ममता से मौत के घाट उतारा, उस औरंगजेब को आखिरी वक्त में दिल्ली देखने को भी नसीब नहीं हुई और इसकी पटकथा खुद औरंगजेब ने लिखी, पहले उसे समझिए.
दिल्ली से दक्षिण की तरफ 1 हजार 153 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र का संभाजीनगर जिला. इस जिले के खुल्दाबाद में औरंगजेब की कब्र मौजूद है. दिल्ली की जिस सत्ता के लिए औरंगजेब ने पिता शाहजहां को कैद किया, भाई दाराशिकोह को निर्ममता से मौत के घाट उतारा, उस औरंगजेब को आखिरी वक्त में दिल्ली देखने को भी नसीब नहीं हुई और इसकी पटकथा खुद औरंगजेब ने लिखी, पहले उसे समझिए.
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साल 1658 में औरंगजेब छठा मुगल शासक बना, उसने खुद को आलमगीर नाम दिया, जिसका अर्थ है दुनिया को जीतने वाला, लेकिन दुनिया जीतने के ख्वाब संजोने वाले औरंगजेब के सपनों को छत्रपति शिवाजी महाराज कई बार तोड़ चुके थे.
साल 1658 में औरंगजेब छठा मुगल शासक बना, उसने खुद को आलमगीर नाम दिया, जिसका अर्थ है दुनिया को जीतने वाला, लेकिन दुनिया जीतने के ख्वाब संजोने वाले औरंगजेब के सपनों को छत्रपति शिवाजी महाराज कई बार तोड़ चुके थे.
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साल 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत हुई तो औरंगजेब के मिशन दक्षिण को भी पंख लग गए. इससे पहले शाहजहां के शासन के दौरान 1636 से 1644 तक औरंगजेब दौलताबाद का सूबेदार था. तब उसने अपना मुख्यालय औरंगाबाद को बना लिया था, जिसे तब फतेहनगर कहा जाता था.
साल 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत हुई तो औरंगजेब के मिशन दक्षिण को भी पंख लग गए. इससे पहले शाहजहां के शासन के दौरान 1636 से 1644 तक औरंगजेब दौलताबाद का सूबेदार था. तब उसने अपना मुख्यालय औरंगाबाद को बना लिया था, जिसे तब फतेहनगर कहा जाता था.
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3 मार्च, 1707 को 88 साल की उम्र में महाराष्ट्र के अहमदनगर में औरंगजेब की मौत हुई. कहा जाता है कि क्रूरता के काले अध्याय लिख चुका औरंगजेब अंतिम दौर में सूफी संतों के प्रभाव में आया था, उसकी इच्छा खुल्दाबाद में सूफी संत जैनुद्दीन शिराजी के दरगाह के पास दफन होने की थी, अहमदनगर से सवा सौ किलोमीटर दूर औरंगजेब के शव को खुल्दाबाद में दफनाया गया.
3 मार्च, 1707 को 88 साल की उम्र में महाराष्ट्र के अहमदनगर में औरंगजेब की मौत हुई. कहा जाता है कि क्रूरता के काले अध्याय लिख चुका औरंगजेब अंतिम दौर में सूफी संतों के प्रभाव में आया था, उसकी इच्छा खुल्दाबाद में सूफी संत जैनुद्दीन शिराजी के दरगाह के पास दफन होने की थी, अहमदनगर से सवा सौ किलोमीटर दूर औरंगजेब के शव को खुल्दाबाद में दफनाया गया.
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औरंगजेब की आखिरी इच्छा के हिसाब से ही उसे दफनाया गया था. कब्र के आसपास के हिस्से को सफेद चादर से ढका गया है, जबकि कब्र की मिट्टी पर एक पौधा दिखता है. बताया जाता है कि ये सब औरंगजेब की इच्छा के हिसाब से ही हुआ, क्योंकि वो नहीं चाहता था कि उसे पेड़ की छांव भी मिले. मरने से पहले औरंगजेब ने अपनी वसीयत लिखी थी, जिसमें उसने कहा था कि मेरी मौत पर कोई दिखावा न किया जाए. ना ही कोई समारोह आयोजित हो.
औरंगजेब की आखिरी इच्छा के हिसाब से ही उसे दफनाया गया था. कब्र के आसपास के हिस्से को सफेद चादर से ढका गया है, जबकि कब्र की मिट्टी पर एक पौधा दिखता है. बताया जाता है कि ये सब औरंगजेब की इच्छा के हिसाब से ही हुआ, क्योंकि वो नहीं चाहता था कि उसे पेड़ की छांव भी मिले. मरने से पहले औरंगजेब ने अपनी वसीयत लिखी थी, जिसमें उसने कहा था कि मेरी मौत पर कोई दिखावा न किया जाए. ना ही कोई समारोह आयोजित हो.
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हाल के दिनों में औरंगजेब की इस कब्र पर दो बड़े नेताओं ने फूल चढ़ाये हैं. छोटे ओवैसी और प्रकाश आंबेडकर कुछ साल पहले यहां गये थे. फिलहाल धमकी की वजह से औरंगजेब की इस कब्र की सुरक्षा बढ़ी हुई है.
हाल के दिनों में औरंगजेब की इस कब्र पर दो बड़े नेताओं ने फूल चढ़ाये हैं. छोटे ओवैसी और प्रकाश आंबेडकर कुछ साल पहले यहां गये थे. फिलहाल धमकी की वजह से औरंगजेब की इस कब्र की सुरक्षा बढ़ी हुई है.
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इतिहासकार बताते हैं कि साल 1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन यहां आए तो उन्होंने इस साधारण से कब्र को देखकर सवाल उठाया और फिर संगमरमर के पत्थर लगवाए.
इतिहासकार बताते हैं कि साल 1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन यहां आए तो उन्होंने इस साधारण से कब्र को देखकर सवाल उठाया और फिर संगमरमर के पत्थर लगवाए.

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