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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
क्या कुंभ में नहीं लगेगी मुसलमानों की दुकान? शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने क्या जवाब दिया
अविमुक्तेश्वरामनंद ने मुसलमानों के महाकुंभ में शामिल होने को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि अगर मुसलमान गंगा-यमुना में स्नान करने या वहां पूजा-अर्चना करने को पाप से मुक्ति या पुण्य की प्राप्ति का कारण मानते हैं तो उन्हें ये घोषणा करनी चाहिए कि वे भी हिंदू धर्म के विश्वासों को मानते हैं और अगर वे ऐसा नहीं मानते तो उनका महाकुंभ में शामिल होना ठीक नहीं है.
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View In Appअविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि हिंदू धर्म में पवित्रता के लिए कड़े नियम होते हैं और महाकुंभ का आयोजन उसी विश्वास के तहत होता है. उन्होंने कहा कि यह आयोजन केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए है जिनका विश्वास गंगा-यमुना में स्नान करके पापों का शमन और पुण्य की प्राप्ति में है.
अविमुक्तेश्वरामनंद ने 'रमखुदैया' पर भी सवाल उठाया. आचार्य ने कहा कि हिंदू और मुस्लिम धर्मों का मिश्रण गलत है. उन्होंने यह भी पूछा कि यदि हिंदू 'राम-राम' में विश्वास करते हैं और मुसलमान 'खुदा' में तो इसे एक करने की कोशिश क्यों की जा रही है?
उन्होंने आगे कहा कि यदि मुसलमानों का धार्मिक दृष्टिकोण महाकुंभ के उद्देश्य से मेल नहीं खाता तो उन्हें इसमें भाग लेने की आवश्यकता नहीं है. हिंदू धर्म में पवित्रता का पालन बहुत गंभीरता से किया जाता है. उनके अनुसार धार्मिक रूप से किसी भी पवित्र वस्तु का उपयोग जैसे कि भोजन या जल तब तक सही नहीं माना जाता जब तक वह पूरी तरह से शुद्ध न हों.
अविमुक्तेश्वरामनंद ने कहा कि हर समुदाय को अपनी परंपराओं और विश्वासों का पालन करने का अधिकार है. उन्होंने ये स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी धर्म के खिलाफ नहीं है बल्कि वह अपने धर्म की पवित्रता बनाए रखना चाहते हैं.
संत ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो का भी जिक्र किया जिसमें धार्मिक अनुशासन का उल्लंघन किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसे वीडियो समाज में गलत संदेश भेजते हैं और इससे धार्मिक विश्वासों में भ्रम फैलता है. बयान विशेष रूप से उन वीडियो के संदर्भ में दिया गया है, जिनमें मुस्लिम समुदाय के लोग खाने-पीने की वस्तुओं को अपवित्र कर रहे हैं.
हालांकि अविमुक्तेश्वरामनंद ने मुस्लिम समुदाय को महाकुंभ में शामिल होने से रोका, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई विरोधाभास नहीं है। उनका कहना है कि दोनों समुदायों के बीच भाईचारे और सम्मान का आदान-प्रदान होना चाहिए, लेकिन पवित्रता के नियमों के तहत प्रत्येक धर्म को अपनी परंपराओं और विश्वासों का पालन करना चाहिए.
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