मुस्लिम बहुल कैसे बन गई हिंदुस्तान की सबसे छोटी UT लक्षद्वीप? समझिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप जाने के बाद से यह लगातार सुर्खियों में है. भारत के इस सबसे छोटे द्वीप के मुस्लिम बहुल होने के बावजूद भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बेहतर तालमेल को लेकर यह और अधिक चर्चा में है. मालदीव के मंत्रियों की बेतुकी बयानबाजी के बाद लोग यह जानना चाह रहे हैं कि आखिर मुस्लिम बहुल होने के बावजूद यह भारत का अभिन्न अंग कैसे बना.
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View In Appसांस्कृतिक और सामरिक दोनों नजरियों से लक्षद्वीप हमारे लिए बेहद खास है. अरब सागर में केरल के तट से यह लगभग 400 किमी दूर है. लंबे समय से यह भारतीय पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. सांस्कृतिक रूप से यह द्वीप बेमिसाल है.
वैसे तो इसके ज्यादातर निवासी मुस्लिम हैं, लेकिन लक्षद्वीप में प्रचलित इस्लाम भारत में कहीं और से अलग है. यहां रहने वाले लोग मलयाली, अरब, तमिल और कन्नडिगाओं के साथ समान रूप से जातीय, भाषाई और सांस्कृतिक रिश्ते साझा करते हैं. अरब और मालाबार तट के बीच यात्रा करने वाले अरब व्यापारियों और नाविकों के साथ नियमित संपर्क के जरिये द्वीप पर रहने वाले लोग लंबे समय में इस्लाम में परिवर्तित हुए. लक्षद्वीप में इस्लामी प्रभाव मालाबार के मप्पिला समुदाय के बजाय अरबों से आया.
इतिहासकारों के अनुसार, उत्तर भारत के उलट लक्षद्वीप, केरल, तमिलनाडु सहित हिंद महासागर में इस्लाम की शुरुआत में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा कम थी. इन क्षेत्रों में इस्लाम मुख्य रूप से व्यावसायिक बातचीत के जरिये आया. 16वीं शताब्दी में द्वीप कन्नूर के अरक्कल साम्राज्य के नियंत्रण में थे. यह केरल में शासन करने वाला एकमात्र मुस्लिम राजवंश था. राज्य का अक्सर यूरोपीय शक्तियों के साथ टकराव होता था. लक्षद्वीप पर नियंत्रण करना उसके लिए प्रतिष्ठा का सवाल था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुर्तगालियों ने द्वीप पर कब्जा करने के लिए भरपूर कोशिश की थी. 16वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने सैकड़ों स्थानीय लोगों का नरसंहार किया था. हालांकि, कोलाथिरी और अरक्कल जैसे शासकों के साथ उनकी संधि हो गई. इसके चलते कुछ हद तक इसे सुरक्षा मिली.
अरक्कल साम्राज्य को मालाबार में अपनी ज्यादातर भूमि सौंपने के लिए मजबूर किया गया था लेकिन, उसने 1908 तक लक्षद्वीप का एक हिस्सा अपने पास कायम रखा. ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में क्राउन को ट्रिब्यूट के बदले में उसे यह हिस्सा मिला था.
सच तो यह है कि लक्षद्वीप पर किसी एक सांस्कृतिक प्रभाव का प्रभुत्व नहीं है. यही कारण है कि इसकी तीन मुख्य भाषाएं हैं मलयालम, जजारी और महल. लक्षद्वीप के लोग मप्पिलाओं की तुलना में अरबी के मिश्रण वाली मलयालम बोलते हैं. वे मलयाली लिपि की जगह अरबी में मलयालम लिखते हैं. पीएम मोदी ने लक्षद्वीप जाकर कहा था कि आकार में भले यह छोटा है लेकिन, इसका दिल बड़ा है.
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