Manoj Kumar Pandey: दुर्गम पहाड़ियां और चारों ओर दुश्मन, फिर भी घुसपैठियों को खदेड़ फेंका, कहानी कारगिल के परमवीर कैप्टन मनोज पांडे की
मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रूद्रा गांव में चंद पांडे और मोहिनी पांडे के घर हुआ था. वह अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई लखनऊ के सैनिक स्कूल में की थी. उन्होंने अपनी व्यक्तिगत डायरी में लिखा कि वह हमेशा से भारतीय सेना की वर्दी पहनने का सपना देखते थे. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), खड़कवासला में शामिल हो गए.
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View In Appग्रेजुएशन पूरा करने के बाद मनोज कुमार पांडे अपनी ट्रेनिंग के फाइनल फेज के लिए इंडियन मैलेट्री अकादमी (आईएमए) देहरादून में शामिल हुए, जिसके बाद उन्हें 11 गोरखा राइफल्स (1/11 जीआर) की पहली बटालियन में नियुक्त किया गया. यह बटालियन अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थी. मनोज कुमार पांडे खेलों के अलावा विशेष रूप से मुक्केबाजी और बॉडी बिल्डिंग में माहिर थे.
11 गोरखा राइफल्स (1/11 जीआर) वह बटालियन थी, जिसे कारगिल युद्ध शुरू होने पर सियाचीन ग्लेशियर में तैनात किया गया था. 1999 की गर्मी में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना की खाली की गई चौकियों पर चोरी-छिपे कब्जा कर लिया था. 3 मई 1999 को भारत को इस घुसपैठ का पता चला था. इसके बाद 25 मई को भारत सरकार के आदेश पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया, जिसमें इंडियन एयरफोर्स की भी अहम भूमिका थी. दो महीनों तक चले इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तानियों को अपने क्षेत्र से खदेड़कर भगा दिया.
खालूबार रिज लाइन वह क्षेत्र था, जहां पाकिस्तानियों ने घुसपैठ किया था. 1/11 जीआर को इस क्षेत्र को घुसपैठियों से साफ करने का जिम्मा सौंपा गया था. कैप्टन मनोज कुमार पांडे इस बटालियन के नंबर 5 प्लाटून कमांडर थे. उनकी पलटन का मिशन दुश्मनों के ठिकानों को खत्म करना था ताकि उनकी बटालियन खालूबार की ओर आसानी से बढ़ सके. 2 और 3 जुलाई 1999 की दरमियानी रात को कैप्टन मनोज कुमार खालूबार के रास्ते 19700 फीट की ऊंचाई पर स्थित पहलवान चौकी के लिए रवाना हुए.
कैप्टन मनोज कुमार की टीम जैसे ही हमला करने आगे बढ़ी, तभी पहाड़ी के दोनों ओर से दुश्मनों ने ऊंचाइयों का फायदा उठाकर गोलाबारी शुरू कर दी. दुश्मन की भारी गोलाबारी के बीच, कैप्टन मनोज कुमार पांडे बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए और अपनी पूरी बटालियन को एक सुरक्षित स्थान तक ले गए. मनोज कुमार पांडे निडरता से जय महाकाली, आयो गोरखाली के नारे के साथ आगे बढ़े और दुश्मन के दो बंकरों को साफ कर उस पर कब्जा कर लिया. तीसरे बंकर को दुश्मनों से साफ करने के दौरान गोलियों की बौछार उनके कंधे और पैरों पर लगी. निडर और अपनी गंभीर चोटों की परवाह किए बिना मनोज कुमार पांडे बहादुरी से दुश्मनों का सामना करते रहे, लेकिन आखिरकार जंग के मैदान में उनका शरीर जवाब दे गया और 24 साल की उम्र में वह शहीद हो गए.
कैप्टन मनोज की कमान के तहत सैनिकों ने छह बंकरों पर अपना नियंत्रण हासिल किया और 11 दुश्मनों को मार गिराया. इसके अलावा एक एयर डिफेंस गन सहित हथियारों और गोला-बारूद के एक जखीरे को भी अपने कब्जे में लिया. इस पूरे ऑपरेशन के दौरान कैप्टन मनोज कुमार पांडे के अलावा 1/11 जीआर के छह अन्य सैनिक भी शहीद हुए. 1/11 जीआर के अन्य शहीद बहादुरों में हवलदार झनक बहादुर राय, हवलदार बीबी दीवान, हवलदार गंगा राम राय, आरएफएन कर्ण बहादुर लिम्बू, आरएफएन कालू राम राय और आरएफएन अरुण कुमार राय शामिल थे. आखिरकार खालूबार पर कब्जा कर लिया गया और कैप्टन मनोज कुमार पांडे ने सर्वोच्च बलिदान से कारगिल युद्ध की दिशा बदल दी.
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