'देवरहा बाबा, विजयाराजे सिंधिया, अशोक सिंघल और...', निमंत्रण पत्र में राम मंदिर आंदोलन के इन चेहरों का है नाम
अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण में एक पुस्तिका मौजूद है. इस पुस्तिका में राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल रहे कुछ प्रमुख हस्तियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है. इनमें देवरहा बाबा, ठाकुर गुरुदत्त सिंह, गोपाल सिंह विशारद और राजमाता विजयराजे सिंधिया का नाम शामिल है.
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View In Appपुस्तिका 1528 से लेकर सन 1984 तक राम मंदिर आंदोलन में शामिल रहे लोगों को समर्पित है. इसकी शुरुआत में रामचरितमानस की चौपाई के साथ होती है.
निमंत्रण पत्र में सबसे पहले देवरहा बाबा का संक्षिप्त परिचय दिया गया है. इसमें लिखा है कि रामानुज परम्परा के वाहक, दिव्य और उच्च आध्यात्मिक शक्तियों से ओतप्रोत पूज्य देवरहा बाबा 1989 में प्रयाग महाकुम्भ में पधारे थे. इस दौरान उन्होंने घोषणा की थी कि विश्व हिन्दू परिषद् मेरी आत्मा है और राम जन्मभूमि आन्दोलन उनकी सहमति से चल रहा है.
इसके बाद महंत अभिरामदास का परिचय दिया गया है. इसमें कहा गया है कि अयोध्या हनुमान गढ़ी उज्जैनिया पट्टी के नागा श्रीमहंत बाबा अभिरामदास रामानन्दी सम्प्रदाय के युवा साधुओं में अग्रणी थे.
पुस्तिका में परमहंस रामचन्द्रदास के बारे में कहा गया है कि उनके ताला न खुलने पर आत्मदाह की घोषणा के बाद ही 1986 को राम मंदिर का ताला खोला गया.
फैजाबाद के जिलाधीश के के नायर केंद्र सरकार के शासन के मूर्तियां हटाये जाने के निर्देश के आगे भी नहीं झुके और मूर्ति हटाने से मना कर दिया. उन्होंने दफा 45 के अन्तर्गत जन्मस्थान को कुर्क करके, नियमित भोग-आरती का आदेश दिया और पुजारी भी नियुक्त किया.
फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरूदत्त सिंह ने 10 अक्टूबर 1950 में कलेक्टर को यह रिपोर्ट सौंपी थी कि तथाकथित मस्जिद को हिन्दू समाज श्रीराम जन्मभूमि मानता है और वहां मन्दिर बनाना चाहता है. उन्होंने बताया कि यह नजूल की जमीन है और इसे मन्दिर निर्माण के लिए देने में कोई रुकावट नहीं है.
अयोध्या निवासी गोपाल सिंह विशारद हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता थे. उन्होंने 16 जनवरी 1950 को व्यक्तिगत पूजा के अधिकार के लिए फैजाबाद जिला न्यायालय में प्रथम वाद प्रस्तुत किया था.
दाऊ दयाल खन्ना ने 1983 में मुजफ्फरनगर में हुए विराट हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा, काशी के तीनों स्थानों को हिन्दू समाज को, मन्दिर निर्माण के लिये प्राप्त करने की मांग का प्रस्ताव रखा था.
महंत अवैद्यनाथ को 1984 में देश के सभी संतो ने श्रीराम जन्मभूमि मुक्तियज्ञ समिति का अध्यक्ष बनाया. उनके नेतृत्व में श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति का आन्दोलन चला.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक ओंकार भावे को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का मंत्री मनोनीत किया गया था. उन्होंने इस आन्दोलन को गति प्रदान की.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवकीनन्दन अग्रवाल रिटायरमेंट के बाद विश्व हिन्दू परिषद् के साथ जुड़े. उन्होंने ही 1989 न्यायालय में 'राम सखा' बनकर वाद प्रस्तुत किया, जिसे न्यायालय ने स्वीकार किया.
स्वामी शिवरामाचार्य श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अधिष्ठाता और पहले अध्यक्ष थे. उनके ही नेतृत्व में 1989 में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर का शिलान्यास हुआ था.
स्वामी शांतानन्द सरस्वती श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति अभियान के शलाका पुरूष थे. वे स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के उत्तराधिकारी थे.
स्वामी विश्वेश तीर्थ पेजावर ने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन में दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व और नेतृत्व किया था. वह विश्वहिन्दू परिषद् के संस्थापकों में भी शामिल थे.
उद्योगपि विष्णुहरि डालमिया विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष थे और श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन में लगातार सक्रिय रहे. उन्होंने श्रीकृष्ण जन्म स्थान के चारों ओर भूमि खरीद कर मन्दिर का निर्माण कराया.
स्वामी वामदेव आंदोलन के लिए नई-नई कार्य योजना बनाते थे.वह अखिल भारतीय संत समिति के संस्थापक थे.
सत्यमित्रानन्द गिरी भारत माता के आराधक, नरसेवा-नारायण सेवा के उद्घोषक थे. उनका पूरा जीवन हिंदुत्व के नव जागरण को समर्पित रहा.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे सरसंघचालक मधुकर दत्तात्रेय देवरस देवरस श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में पर्दे के पीछे से सक्रिय रहे. उन्होंने आंदोलन में संघ की पूरी ताकत झोंक दी.
मोरोपंत नीलकंठ पिंगले श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के योजनाकार थे. उन्हीं के मार्गदर्शन में 1989-90 में देशभर के गांवों में शिलापूजन और शिलान्यास के समय, शिला पूजन के स्थानों पर अयोध्या की ओर मुख करके, पुष्पांजलि अर्पित करने का कार्यक्रम बना.
प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक थे. वह बाला साहब के उत्तराधिकारी थे.
आचार्य गिरिराज किशोर विश्व हिन्दू परिषद् के संयुक्त महामंत्री, महामंत्री और उपाध्यक्ष पद पर रहे. श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की सफलता के लिए उन्होंने तन-मन-धन न्यौछावर कर दिया.
ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया, विश्व हिन्दू परिषद् के साथ स्थापना काल से ही जुड़ी थीं. गौरक्षा आंदोलन से लेकर, श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन तक वह काफी सक्रिय रहीं.
अशोक सिंहल ने काशी हिन्दू विश्वविद्याल शिक्षा प्राप्त की. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने.बाद में उन्होंने विहिप की कमान संभाली और संगठन का कुशल नेतृत्व कर श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया.
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