सच्चाई का सेंसेक्स: कोरोना काल पर रतन टाटा के ट्वीट का झूठ
सोशल मीडिया पर ऋषि कपूर के अंतिम संस्कार के वक्त की कुछ तस्वीरे वायरल हैं. इस तस्वीरों के जरिए अभिनेत्री आलिया भट्ट की कड़ी निंदा की जा रही है. कुछ तस्वीरें शेयर कर लोग सवाल उठा रहे हैं कि आलिया भट्ट ऋषि कपूर के अंतिम संस्कार के समय रिकॉर्डिंग कर रही थी. तस्वीर पर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. जबकि सच कुछ और ही है. तस्वीर में देखकर ऐसा लग रहा है जैसे आलिया भट्ट फोटों खींच रही हैं या वीडियो बना रही हैं. अपनी इस तस्वीर पर आलिया ट्रोल होने लगीं. बिना कुछ सोचे समझे यूजर्स आलिया पर निशाना साधने लगे. दरअसल ऋषि कपूर की बेटी रिधिमा दिल्ली में थी जब उनकों उनके पिता के गुज़रने की खबर मिली. लॉकडाउन के चलते वो किसी तरह सरकार से इजाजत लेकर दिल्ली से मुंबई की ओर निकली. जाहिर है दिल्ली से मुंबई सड़क से जाने में घंटों का वक्त बीत गया. इस सब के चलते रिद्धिमा कपूर अपने पिता के अंतिम दर्शन में शामिल नहीं हो सकीं थी. इसलिए आलिया भट्ट मोबाइल के जरिए ऋषि कपूर के बेटी रिद्धिमा कपूर को उनके पिता के अंतिम दर्शन करा रहीं थी. पड़ताल में ऋषि कपूर के अंतिम संस्कार के वक्त आलिया भट्ट वीडियो नहीं बना रहीं थीं बल्कि लाइव वीडियो के जरिए ऋषि कपूर की बेटी को उनके पिता के अंतिम दर्शन करवा रही थीं. इसलिए ऋषि कपूर के अंतिम संस्कार में आलिया पर लगे आरोप झूठे साबित हुए हैं.
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View In Appसोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है. वीडियो में एक व्यक्ति भाषण दे रहा है. दावा है कि ये अपने भाषण से लोगों को भड़का रहा है. कोरोना का डर दिखा रहा है. इस वायरल वीडियो की पड़ताल की गई. वीडियो में दिख रहा युवक रज्जाक है, कानपुर के ग्वालटोली इलाके का रहने वाला है, ग्वालटोली पुलिस ने युवक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. पड़ताल में हमें एक और वीडियो मिला. पड़ताल के वीडियो में सफेद शर्ट पैंट में वही व्यक्ति दिखा जो वायरल वीडियो में था. लेकिन पड़ताल में मिले वीडियो की खास बात ये थी कि ये वीडियो भाषण दे रहे व्यक्ति की गिरफ्तारी का वीडियो था. पुलिस ने व्यक्ति पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर हवालात में बंद कर दिया है. पड़ताल में वायरल वीडियो कानपुर के होने का दावा सच साबित हुआ.
सोशल मीडिया पर देश के बड़े उद्योगपति रतन टाटा के नाम से एक बेहद झूठा संदेश वायरल हो रहा है. झूठे संदेश में दावा है कि रतन टाटा ने लोगों से फायदे और नुकसान की चिंता न करते हुए दो हजार बीस को सिर्फ जीवित रहने का साल कहा है. रतन टाटा के नाम पर वायरल खास संदेश पर पड़ताल की गई जिसके बाद सब सच का सच और झूठ का झूठ हो गया. वायरल मैसेज में सबसे ऊपर लाल रंग से रतन टाटा का संदेश लिखा है. इस संदेश में दावा किया गया है कि व्यवसायिक पेशेवरों के लिए टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा ने लघु संदेश जारी किया है. अपने लघु संदेश में रतन टाटा ने कहा है कि व्यापार की दुनिया के मेरे प्रिय दोस्त, 2020 बस जीवित रहने का साल है. इस साल आप लाभ और हानि के बारे में चिंता मत करें. सपने और योजनाओं के बारे में भी बात ना करें. इस साल अपने आप को जीवित रखना सबसे महत्वपूर्ण है. जीवित रहना एक लाभ बनाने जैसा ही है. पड़ताल में रतन टाटा का ट्वीटर एकाउंट चेक किया, पता चला रतन टाटा ने खुद इस झूठे संदेश का खंडन करने वाला एक ट्वीट किया था. ये खबर गलत है मैंने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया. मेरी फोटो लगाने से फेक न्यूज सच नहीं हो जायेगी. रतन टाटा के स्पष्टीकरण के आधार पर सोशल मीडिया में उनके नाम से वायरल संदेश झूठा साबित हुआ है.
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है. लोग इस वीडियो को पुलिस का एक नया चेहरा बताकर शेयर कर रहे हैं. दावा है कि प्रवासी मजदूरों को लाने गए पुलिस के एक जवान ने सभी मजदूरों को 500-500 रुपए बांटे. वायरल वीडियो को लेकर पड़ताल की गई. वीडियो में दिख रहा है कि लोग उतरते जाते हैं और पुलिस का जवान पैसे बांटता जाता है. सोशल मीडिया में वायरल इस वीडियो में दावा है कि पुलिस के जवान ने मजदूरों को 500 रुपए के नोट बांटे. 30 मजदूरों में जवान ने 15 हजार रुपए बांटे. वायरल वीडियो मध्य प्रदेश के रतलाम की है. वीडियो में दिखने वाला पुलिस का जवान घनश्याम दडिंग है. बताया जा रहा है कि पुलिस का जवान रतलाम पुलिस लाइन में तैनात है. राजस्थान बॉर्डर पर प्रवासी मजदूरों को लाने की ड्यूटी थी. इसी दौरान जवान ने मजदूरों को पैसे बांटे. मामले के बारे में एमपी पुलिस में तैनात घनश्याम दडिंग से बात की गई तो उसने बताया कि वो टीम के साथ जिला पुलिस लाइन से नयागांव के लिए नीमच के पास मजदूरों को लेने गए थे. सुबह के वक्त मजदूरों को लेकर आ रहा था. उनसे बातचीत हुई तो लगा इनको पैसे की सख्त जरूरत है. मैंने सोच भी रखा था कि महीने की सैलरी दान करनी है. ये मौका भी सही था. मैंने उसी टाइम उनको माननखेड़ा गांव में 500-500 रुपए बांट दिए. वो थोड़े परेशान भी थे, बस में 30 मजदूर थे. हर मजदूर को पांच-पांच सौ रुपए दिए. हमारी पड़ताल में एमपी पुलिस में तैनात घनश्याम दडिंग के बयान के बाद 30 मजदूरों को पांच-पांच सौ रुपए बांटने का दावा सच साबित हुआ है.
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