Operation Dost: काश! हम और जिंदगियां बचा पाते...तुर्किए से प्यार, हग और हिंदी में 'थैंक्स' की कहानियां लेकर लौटी रेस्क्यू टीम
भारत से तुर्किए को रवाना होने वाली ऑपरेशन दोस्त टीम की अपनी कहानियां थी. मसलन ड्यूटी कॉल होने के चलते पैरामेडिक कॉन्स्टेबल सुषमा यादव (32) उन 5 महिला बचावकर्मियों में शामिल थीं, जिन्हें पहली बार किसी विदेशी आपदा से निपटने के अभियान में भेजा गया था. उन्होंने इसके लिए अपने 18 महीने के जुड़वा बच्चों को छोड़ा तो अधिकारी रातों-रात 140 से अधिक पासपोर्ट के लिए सैकड़ों दस्तावेजों तैयार कर रहे थे. वहीं तुर्किए पहुंचने पर इन बचावकर्मियों 10 दिनों तक नहाने में का मौका नहीं मिला. बावजूद इसके भूकंप प्रभावित तुर्किये में एनडीआरएफ का मिशन चुनौतियों संग जज्बातों, पेशेगत और निजी एहसासों से सराबोर रहा.
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View In Appमुश्किल भरे मिशन के बाद ये टीम भारत भले ही लौट आई हो, लेकिन इनके दिलों में अभी भी तुर्किए धड़क रहा है. इनके दिल का एक हिस्सा ये सोच रहा है कि क्या हम और लोगों की जान बचा सकते थे. वहीं दूसरी तरफ दिल का एक हिस्सा भूकंप से गमगीन लोगों से मिले प्यार और मोहब्बत से भरा हुआ है. इनमें से एक शख्स जो अपनी बीवी और 3 बच्चों की मौत से जूझते हुए भी डिप्टी कमांडेंट दीपक के कहीं भी तैनात होने पर उनके लिए शाकाहारी खाना लाना कभी नहीं भूला.
डिप्टी कमांडेंट दीपक ने कहा कि अहमद ने उनके लिए जो किया,उसने उनके दिल में अलग जगह बना ली. वह बताते हैं कि उसके पास जो कुछ भी शाकाहारी होता जैसे सेब या टमाटर उसे स्वादिष्ट बनाने में वो कई कसर नहीं छोड़ता. उसमें नमक या स्थानीय मसाले डालकर उनके लिए लाता.
भूकंपग्रस्त क्षेत्र में एनडीआरएफ की 152 सदस्यों की 3 टीमों और 6 डॉग स्कावॉड बहुत जल्दी पहुंचा, लेकिन वहां से वापस आना बेहद भावनात्मक कर देने वाला था. उन्होंने कहा कि उन्होंने उन लोगों के साथ एक रिश्ता कायम कर लिया था जिनकी उन्होंने उनके सबसे कमजोर वक्त में मदद की.
डिप्टी कमांडेंट दीपक ने कहा, उसने मुझे गले लगाया और मुझे बिरादर कहा. यह ऐसी चीज है जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा.तुर्किए के कई नागरिकों ने अपने 'हिंदुस्तानी' दोस्तों और 'बिरादरों' के लिए धन्यवाद और कृतज्ञता के आंसू बहाए, जो भारतीय बचावकर्ताओं की वर्दी में रक्षक के तौर पर उनकी मदद के लिए आए.भूकंप के तुरंत बाद 7 फरवरी को अपना ऑपरेशन शुरू किया था, जिसमें दो युवा लड़कियों को जिंदा बचाया गया था और पिछले हफ्ते भारत लौटने से पहले मलबे से 85 शव निकाले गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (20 फरवरी) को 7, लोक कल्याण मार्ग पर अपने सरकारी आवास पर उनका अभिनंदन किया.
एनडीआरएफ के महानिरीक्षक (आईजी) एन एस बुंदेला ने कहा, विदेश मंत्रालय के कांसुलर पासपोर्ट और वीजा (सीपीवी) विभाग ने हमारे बचावकर्मियों के लिए रातोंरात पासपोर्ट तैयार कर दिए. उन्होंने सैकड़ों दस्तावेजों को मिनटों में प्रोसेस किया क्योंकि भारत सरकार ने एनडीआरएफ को तुर्किए के लिए जाने का निर्देश दिया था. सेकेंड-इन-कमांड (ऑपरेशन) रैंक के अधिकारी राकेश रंजन ने कहा, तुर्किए ने जैसे ही हम वहां उतरे वहां पहुंचने पर हमारी टीमों को वीजा दिया और हमें नूरदागी (गजियांटेप प्रांत) और हाते में तैनात कर दिया गया.
दूसरे-कमांड-रैंक के अधिकारी वी एन पाराशर को तुर्किए के लोगों ने कृतज्ञता के प्रतीक के तौर पर पुलिस और सेना की वर्दी पर लगाए जाने वाले बैज से नवाजा. वहां के लोकल लोगों ने टीम के सदस्यों का 'एनडीआरएफ-इंडिया' और एनडीआरएफ का लोगो 'चेस्ट और आर्म्स बैज' 'भारत के दोस्तों' की याद के तौर पर अपने पास रख लिया. पराशर ने कहा कि उन्हें और अन्य लोगों को कई लोगों से व्हाट्सएप मैसेज मिले, जिन्होंने उन्हें 'धन्यवाद' लिखा और उन्हें भेजने से पहले इसे Google से हिंदी में अनुवाद किया. पराशर कहा ने कहा लोकल लोग हिंदी या अंग्रेजी नहीं जानते थे हमने जो देखा वह भारत के लिए मानवता और सम्मान की भाषा थी. हम चाहते हैं कि हम और लोगों की जान बचा सकते थे ... लेकिन हमें वहां जो प्यार मिला वह आसानी से हासिल नहीं किया जा सकता है.
सब-इंस्पेक्टर अग्रवाल ने कहा, एनडीआरएफ के कई बचावकर्मियों ने कहा कि कई लोगों ने उनसे भारतीय फिल्मों और शाहरुख खान, सलमान खान, दीपिका पादुकोण और कुछ अन्य अभिनेताओं के बारे में भावनात्मक रूप से बात की और यहां तक कि उनके साथ यह कहते हुए सेल्फी भी ली कि अगर आप उनसे मिलते हैं तो कहें कि तुर्किए के लोग उन्हें प्यार करते हैं. सब-इंस्पेक्टर बिंटू भोरिया ने बताया कि कैसे कोई भी बचावकर्मी तुर्की में 10 दिनों तक नहा नहीं पाया था. एक अन्य अधिकारी ने कहा कि एनडीआरएफ कर्मियों ने स्पंज बाथ किया और शौच और पेशाब करने के लिए खाइयां खोदीं.
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