'मैं इस हिस्से को नहीं पढूंगा...किस मामले में CJI चंद्रचूड़ ने सुना दी खरी-खरी
इस मामले के याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुई वकील दिशा वाडेकर ने कहा, 'हम अदालत में तीन बातों को रखना चाहते हैं. पहला जेल में जेल मैनुअल में भेदभाव करने वाले प्रावधान हैं, जाति के आधार पर काम का बंटवारा किया जाता है, तीसरा अधिसूचित जनजातियों के खिलाफ भेदभाव करने वाले प्रावधान हैं. '
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View In Appउन्होंने कहा, 'जेल के मैनुअल में अपर्याप्त प्रावधान हैं. जेल में भेदभाव पूर्व व्यवहार किया जाता है. इसको लेकर हमनें सबूत भी दिए हैं.'
इस पर उत्तर प्रदेश सरकार की और से पेश हुए वकीन ने कहा, 'राज्य की जेलों में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता है और कैदी की फिजिकल और मेंटल फिटनेस के आधार पर काम का बंटवारा किया जाता है.'
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दिए गए जवाब को पढ़ते सीजेआई ने कहा, 'मेहतर वर्ग से आप का क्या अर्थ है. क्या आप ये कहना चाहते हैं कि वो इस काम के आदी हो गए हैं.'
सीजेआई ने इसको लेकर कहा,' जेल में जो कोई कैदी है...' मैं इस हिस्से को नहीं पढ़ना चाहता हूं. इस मामले में हम जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण की भूमिका तय करेंगे.
भारत की जेलों में जाति आधारित अलगाव और श्रम कानूनों को लेकर वेब पोर्टल द वायर ने एक रिपोर्ट छापी थी.
इसके बाद द वायर की रिपोर्टर सुकन्या शांता ने अदालत में जनहित याचिका दायर की थी.
जनवरी में इस मामले में सुनवाई के दौरान SC ने 11 राज्यों, केंद्रीय गृह मंत्रालय और वेल्लोर में स्थित जेल और सुधार प्रशासन अकादमी को भी नोटिस जारी किया था. SC ने इन सभी से नोटिस जारी कर चार हफ्ते में उनका जवाब मांगा था.
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