गोलान हाइट्स में 12 बच्चों की मौत का बदला लेने की कसम खा रहे नेतन्याहू, पर ये लोग तो खुद को इजरायली मानते ही नहीं; क्यों?
इजरायल और हमास के बीच जंग में हद से ज्यादा नुकसान हुआ. वित्तीय नुकसान तो दूसरी बात है, लेकिन लोगों ने अपनों को खोया है. इजराइल के गोलन हाइट्स में हुए रॉकेट हमले में 12 मासूम बच्चों की मौत हो गई. इसके बाद अब इजरायल शांत बैठने वाला तो बिल्कुल भी नहीं है.
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View In Appबदला लेने के मूड में बैठे इजराइल ने हिजबुल्ला को इसका जिम्मेदार ठहराया है. जबकि हिजबुल्ला ने इस हमले से साफ इनकार कर दिया है. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू बच्चों की मौत का बदला लेने की कसम खा रहे हैं, लेकिन असलियत तो यह है कि इन बच्चों के घर वाले खुद को इजरायली मानते ही नहीं है.
गोलन हाइट्स पर इजरायल का कंट्रोल है. यहां के एक मैदान में कुछ बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे तभी अचानक रॉकेट से हमला हुआ और इस मैदान में बच्चों की लाशें बिछ गई. इजरायल और लेबनान के हिजबुल्ला के बीच लड़ाई शुरू होने के बाद का यह सबसे घातक हमला माना जा रहा है, जिससे जंग शुरू होने की आशंका पैदा हो गई है.
सवाल यह है कि गोलन हाइट्स के लोग खुद को इजरायली क्यों नहीं मानते हैं. बता दें कि गोल्डन हाइट्स इजराइल, सीरिया और लेबनान के बॉर्डर पर बसा एक छोटा सा इलाका है. 1967 से पहले गोलन हाइट्स सीरिया में हुआ करता था. 1967 में इजरायल और सीरिया के बीच 6 दिवसीय युद्ध हुआ, जिसमें इजरायल ने गोलन हाइट्स को सीरिया से छीन लिया था और इस पर कब्जा कर लिया और 1981 में इस जगह को इजराइल में मिला लिया.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो करीब 20 हजार ड्रूज अरब समुदाय के लोग गोलन हाइट्स में रहते हैं. इंटरनेशनल कानून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अंतर्गत गोलन हाइट्स को कब्जा किया हुआ माना जाता है. यहां पर लगभग 25 हजार के आसपास यहूदी भी रहते हैं.
यहां रहने वाले ज्यादातर लोग अपने आप को सीरिया का मानते हैं और उन्होंने इजरायल द्वारा दी गई नागरिकता को भी ठुकरा दिया है. जानकारी के मुताबिक मारे गए 12 बच्चों में से किसी के पास भी इजरायल की नागरिकता का कोई प्रमाण नहीं है.
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