भारत, रूस और चीन मिलकर करने वाले है इस मिशन पर काम, दुनियाभर में चर्चा शुरू
क्या आपने कभी सोचा है कि चांद पर बिजली भी बन सकती है. आपने नहीं सोचा होगा..., लेकिन ऐसा सच में होने जा रहा है. इस सपने जैसी बात को रूस सच करने जा रहा है. साल 2035 तक रूस चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाने की प्लानिंग कर रहा है और उससे भी खास बात यह है कि भारत और चीन भी उसका साथ देंगे. यह पावर प्लांट चांद पर बनने वाले बेस को एनर्जी सप्लाई करेंगे.
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View In Appइस परियोजना पर रूस की सरकारी परमाणु निगम रोसाटोम काम कर रही है. इस पावर प्लांट से चांद पर आधा मेगावाट बिजली प्रोड्यूस होगी, जो चांद पर बने बेस को सप्लाई की जाएगी. रूस की सरकारी न्यूज एजेंसी तास के मुताबिक रोसाटोम प्रमुख लिखाचेव ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ इस परियोजना में चीन और रूस ने इंटरेस्ट दिखाया है.
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने कहा है कि चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने का काम जारी है और 2036 तक इस स्थापित भी किया जाएगा. मास्को का कहना है कि इस परियोजना में मनुष्य की प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होगी. आपको यह भी बता दें कि साल 2021 में रूस और चीन ने एक साथ अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन बनाने की भी घोषणा की थी.
रूस की इस पहल से साफ देखा जा सकता है कि भारत फिर से चंद्रमा को लक्ष्य बना रहा है. चंद्रयान-3 के सफल मिशन के बाद भारत की इस न्यूक्लियर पावर प्लांट को लेकर दिलचस्पी और बढ़ गई है. भारत भी 2035 तक अपना पहला भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन एस्टेब्लिश करने की प्लानिंग में लग गया है.
आर्टेमिस समझौते पर 2023 में भारत ने हस्ताक्षर किए थे और योजना है कि 2040 तक चांद पर मानव को भेजना है. ऐसे में लगाए गए यह प्लांट चांद पर भारत की ऊर्जा की जरूरत को पूरा करेंगे. मनीकॉन्ट्रोल के मुताबिक चांद पर अभियान के लिए न्यूक्लियर पावर बेहद जरूरी है. नासा और सोलर एनर्जी की सीमा के कारण चांद पर ठिकानों को बिजली देने के लिए आइटम रिएक्टरों का उपयोग करने पर विचार स्वागतयोग्य है.
नासा का कहना है कि, हालांकि ऊर्जा प्रणालियों की चंद्रमा पर लिमिट है, एटम रिएक्टर को स्थाई रूप से छाया वाले क्षेत्र (ऐसे क्षेत्र जहां पानी या बर्फ हो) में रखा जा सकता है या फिर चंद्र रातों के समय लगातार बिजली प्रोड्यूस की जा सकती है. चंद्रमा पर सोलर एनर्जी की निरंतर आपूर्ति संभव नहीं है.
विशेषज्ञों ने कहा है कि इस परियोजना से जुड़ी समस्याओं के बावजूद भी सुरक्षा एक चिंता का विषय बन गई है. उन्होंने कहा कि उन्हें भरोसा है कि चांद पर न्यूक्लियर फ्यूल पहुंचना सुरक्षित है और प्रक्षेपण में सफलता को ध्यान में रखते हुए विकिरण जोखिम बहुत कम है. उन्होंने कहा कि रिएक्टरों को किसी भी प्रकार की समस्या की स्थिति में एटॉमिक तरीके से बंद करने के लिए ही डिजाइन किया गया है.
वहीं भारत की बात करें तो भारत अपने कूटनीतिक कार्ड इस दौरान सावधानी से खेल रहा है. भारत में गगनयान मिशन के शुभांशु शुक्ला को नासा की ह्यूस्टन फैसिलिटी में भेजा. शुक्ला इसरो और नासा के बीच सहयोग एक्सियोम-4 मिशन के हिस्से के रूप में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जाएंगे.
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