कुछ ऐसा है मोसाद के बदला लेने का इतिहास, टूथपेस्ट में जहर मिलाकर दुश्मन को उतारा था मौत के घाट; क्यों इजरायल है इतना ताकतवर?
हमास के इस्माइल हानिया की हत्या के बाद दुनिया को यह खबर लग गई है की बड़ी जंग होने वाली है. हानिया की कत्ल के बाद मिडल ईस्ट में तनाव बढ़ गया है. ईरान ने कसम खा ली है कि वह इजराइल से बदला लेकर रहेगा.
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View In Appमोसाद इजराइल की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी मानी जाती है. उसके लिए किसी भी मिशन को अंजाम देना मिनटों का खेल है. न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि हमास ने ही इस्माइल हानिया का कत्ल किया है.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ईरान की राजधानी तेहरान में मोसाद ने एक गेस्ट हाउस में विस्फोटकों को ऑपरेट के लिए ईरानी सिक्योरिटी एजेंट को काम पर रखा था. यही वह गेस्ट हाउस है जहां पर इस्माइल हानिया रुका हुआ था.
अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाना मोसाद के लिए कोई बड़ी बात नहीं है. बहुत ही खुफिया तरीके से वह अपने दुश्मनों को ठिकाने लगा चुका है. कभी रॉकेट दाग कर. कभी जहर देकर. मोसाद का यह इतिहास रहा है.
इस्माइल हानिया तो हाल फिलहाल की घटना है. ठीक है ऐसा ही ऑपरेशन मोसाद ने पहले भी कंडक्ट किया है. मोसाद ने 1978 में पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन के वादी हद्दाद को भी हानिया की तरह मौत के घाट उतारा था.
इसराइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष में हद्दाद एक खास शख्स था. हद्दाद में 1976 में एयर फ्रांस के एक प्लेन को हाईजैक करने की साजिश रची थी. यह साजिश एंतेबे ऑपरेशन के तहत की गई थी.एंतेबे कांड का बदला लेने के लिए मोसाद ने एजेंट सैडनेस नाम के एजेंट को यह मिशन सौंपा था, जिसकी पहुंच वादी हद्दाद के घर और ऑफिस तक थी. यही वह एजेंट है जिसने 10 जनवरी 1978 के दिन हद्दाद के टूथपेस्ट में जहर मिलाया था.
हद्दाद जब-जब ब्रश करता जहर धीरे-धीरे उसके मुंह के अंदर जाता और असर दिखाता. धीरे-धीरे यह जहर जानलेवा बन गया. हद्दाद की हालत बिगड़ी हमेशा पेट में दर्द रहता था. ना खाता था ना पीता था. उसका वजन भी 25 पाउंड से ज्यादा कम हो चुका था. शरीर में हेपेटाइटिस निकाला. इन सभी लक्षणों ने जहर दिए जाने के शक को और गहरा कर दिया.
इसके बाद फिलिस्तीन मुक्ति संगठन ने जर्मनी की खुफिया एजेंसी स्टासी से मदद मांगी. हद्दाद को एयरलिफ्ट करके बर्लिन पहुंचाया गया. एक खुफिया अस्पताल में रखा गया, लेकिन उसकी बीमारी का कारण नहीं पता चल सका.
लंबा इलाज चला, डॉक्टर ने बेहोश रखा, अस्पताल में भर्ती रखा और कई दिनों तक कोशिश करते रहे, लेकिन उसे बचा नहीं पाए आखिर 29 मार्च 1978 में हद्दाद की मौत हो गई. पोस्टमार्टम में पता चला की वादी हद्दाद की मौत ब्रेन हेमरेज और पेनमिलोपैथी के कारण शरीर में पैदा हुए निमोनिया से हुई, लेकिन वह यह नहीं पता लगा पाए कि आखिर शहर किसने दिया. तीन दशक लग गए इस सच को सामने आने में.
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