भगत सिंह को आतंकी बताने पर पाकिस्तानियों ने अपने ही रिटायर्ड सैन्य अधिकारी को याद दिलाया इतिहास, बोले- जिन्ना की स्पीच याद है या भूल गए...
पाकिस्तान में लाहौर के शादमान चौक का नाम स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के नाम पर रखने की सिफारिश को रद्द कर दिया गया है. प्रस्तावित योजना को रिटायर्ड पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी तारिक माजिद की ओर से प्रस्तुत रिपोर्ट पर रद्द किया गया है. तारिक माजिद ने अपनी रिपोर्ट में भगत सिंह को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की है और उन्हें आतंकी बताया है. अब इसे लेकर बवाल मच गया है और पाकिस्तानियों ने तारिक मजीद को देश के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की वो स्पीच याद दिलाई है, जिसमें उन्होंने भगत सिंह की तारीफ की थी.
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View In Appन्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार लाहौर के गैर-लाभकारी फाउंडेशन 'भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान' ने लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसके जवाब में लाहौर महानगर निगम ने पिछले शुक्रवार को कहा कि तारिक माजिद की ओर से प्रस्तुत एक रिपोर्ट के आलोक में योजना को रद्द किया गया.
लाहौर नगर निगम ने बताया कि शादमान चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने के लिए सरकार ने एक समिति बनाई थी, जिसमें तारिक माजिद भी शामिल थे. तारिक माजिद ने कहा, 'भगत सिंह एक क्रांतिकारी नहीं बल्कि एक अपराधी थे, आज के संदर्भ में वह एक आतंकवादी थे, उन्होंने एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या की थी और इस अपराध के लिए उन्हें दो साथियों के साथ फांसी की सजा दी गई थी.'
उनकी इस टिप्पणी पर मंगलवार (12 नवंबर, 2024) को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए के फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज रशीद कुरैशी ने कहा कि तारिक माजिद को क्रांतिकारी भगत सिंह को अपराधी और आतंकवादी कहने से पहले सेंट्रल असेंबली में क्रांतिकारी भगत सिंह की प्रशंसा करने वाले पाकिस्तान के संस्थापक एम ए जिन्ना के भाषण को याद करना चाहिए.
इम्तियाज रशीद कुरैशी ने कहा, 'जिन्ना ने न सिर्फ भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानी व्यक्तित्व की प्रशंसा की, बल्कि सबसे मजबूत इरादे के साथ उनके समर्थन में भी खड़े रहे और ब्रिटिश कानून-व्यवस्था और सिद्धांतों पर सवाल उठाए.' उन्होंने भगत सिंह को लेकर सरकारी रिपोर्ट को हास्यास्पद और इतिहास के साथ छेड़छाड़ करार दिया, जिसमें इस्लामी दृष्टिकोण को विकृत तरीके से प्रस्तुत किया गया है.
इम्तियाज रशीद कुरैशी ने कहा, 'भगत सिंह पाकिस्तान की धरती पर जन्मे एक क्रांतिकारी लाल थे और हम राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अपने देश के इतिहास को नष्ट नहीं होने दे सकते.' भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 93 साल पहले 23 मार्च, 1931 की लाहौर की जेल में फांसी दे दी गई थी. बाद में इस जेल को हटाकर शादमान चौराहा बना दिया गया था.
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