ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूरी कहानी: कब, कैसे और क्यों?
ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुल 83 सौनिक मारे गए जिसमें तीन सेना के अधिकारी थे. इसके अलावा 248 घायल हुए. मरने वाले आतंकवादियों और अन्य की संख्या 492 रही.
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View In App5 जून, 1984 को शाम 7 बजे सेना की कार्यवाई शुरू हुई. रात भर दोनों तरफ से गोली बारी होती रही. 6 जून को सुबह 5 बज कर 20 मिनट पर ये तय किया गया कि अकालतख्त में छुपे आतंकियों को निकालने के लिए टैंकों को लगाना होगा. ऑपरेशन के दौरान बहुमूल्य दस्तावेजों और किताबों की लाईब्रेरी में आग लग गई. फायरिंग में चली कई गोलीयां हरमंदरसाहब की तरफ भी गई. अकालतख्त को भी भारी नुकसान हुआ. 6 जून को सुबह से शाम गोली चलती रही. देर रात जरनैल सिंह भिंडरावाले की लाश सेना को मिली. 7 जून की सुबह ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया.
इंदिरा गांधी ने आखिरकर 1 जून, 1984 को पंजाब को सेना के हवाले कर दिया. कोड वर्ड रखा गया 'ऑपरेशन ब्लू स्टार'. इस ऑपरेशन की अगुवाई मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार को सौंपी गई. सेना की 9वीं डिवीजन स्वर्ण मंदिर तरफ बढ़ चुकी थी. 3 जून को अमृतसर से पत्रकारों को बहार कर दिया गया. पाकिस्तान से लगती सीमा को सील कर दिया गया. मंदिर परिसर में रह रहे लोगों को बाहर आने को कहा गया. ये अपील बार-बार की गई. 5 जून को 7 बजे तक सिर्फ 129 लोग ही बाहर आए. लोगों ने बताया कि भिंडरावाले के लोग बाहर आने से रोक रहे हैं.
15 दिसंबर, 1983 को भिंडरावाले ने अपने हथियार बंद साथियों के साथ स्वर्ण मंदिर में अपना कब्जा जमा लिया. भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया. अकालतख्त का मतलब एक ऐसा सिंहासन जो अनंतकाल के लिए बना हो. यहीं से सिख धर्म के लिए हुक्मनामे जारी होते हैं. अकालतख्त के कब्जे का विरोध हुआ, लेकिन भिंडरावाले ने परवाह नहीं की. हिंसा और मार-काट का दौर चलता रहा. भिंडरावाले चाहते थे कि हिन्दू पंजाब छोड़ कर चले जाएं. ये सीधे-सीधे दिल्ली सरकार को चुनौती थी. उधर इंदिरा गांधी की मुश्किलें बढंती जा रही थीं. उन्हें भी किसी फैसले पर पहुंचना था.
इसी बीच 5 अक्टूबर, 1983 को सिख चरमपंथियों ने कपूरथला से जालंधर जा रही बस को रोक लिया. बस में सवार हिन्दू यात्रियों को चुन-चुन कर मार डाला गया. इस घटना के अगले दिन इंदिरा गांधी ने दरबारा सिंह की सरकार को हटा दिया. पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. सरकार के हटाने के बाद भी हालात बदले नहीं. पंजाब में हिंसा, मार-काट जारी रहा. मगर इंदिरा गांधी भिंडरावाले के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठा पा रही थीं.
इस घटना के बाद इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैल सिंह से स्वर्ण मंदिर के अंदर पुलिस भेजने की सलाह मांगी. लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इससे भिंडरावाले के हौसले बढ़ गए. पंजाब में हालात विस्फोटक होते जा रहे थे. अकाली भी मैदान में आ गए. दो महीनों में तीस हजार गिरफ्तारियां दीं. मांग थी अनंतपुर साहब के रिजॉलूशन को पास करो.
अब कट्टर सिखों का गुस्सा और बढ़ गया, जिसका फायदा भिंडरावाले ने उठाया. नरमपंथियों की आवाज कमजोर पड़ने लगी. भिंडरावाले के बढ़ते हुए प्रभाव ने अकालियों को अलग-थलग कर दिया. इसी बीच पंजाब के डीआईजी एएस अटवाल की हत्या स्वर्ण मंदिर के सीढ़ियों पर कर दी गई. एएस अटवाल की लाश घंटों स्वर्ण मंदिर के सीढियों पर पड़ी रही और किसी में हिम्मत नहीं हुई कि उनकी लाश को मंदिर की सीढ़ियों से हटा सके. एएस अटवाल के शव को हटाने के लिए मुख्यमंत्री दरबारा सिंह को जरनैल सिंह भिंडरावाले से मिन्नत करनी पड़ी.
भिंडरावाले पर राजनीति जारी थी कि पंजाब को अलग देश बनाने की मांग ने जोर पकड़ लिया. हिंसा और खून-खराबा बढ़ता जा रहा था. रिहाई के बाद भिंडरावाले भी तैश में थे. इसी बीच दिल्ली में एशियाड खेल का आयोजन 1982 के नवंबर और दिसंबर महीने में होने वाला था. जिसके विरोध में जरनैल सिंह भिंडरावाले ने विरोध प्रदर्शन का ऐलान कर दिया. अब सुरक्षा के नाम पर डेढ़ हजार लोग गिरफ्तार किए गए.
इस बीच 9 सितंबर 1981 को हथियार बन्द लोगों ने पंजाब केसरी के संपादक लाला जगत नारायण को गोली मार दी. इल्जाम जरनैल सिंह भिंडरावाले पर भी आया. लाला जगत नारायण की हत्या के बाद 15 सितंबर को अमृतसर के गुरूद्वारा गुरुदर्शन प्रकाश से भिंडरावाले को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन सबूतों के अभाव में जमानत मिल गई.
पंजाब में हार के बाद अकाली दल अपने पुराने मुद्दे पर चली गई. वो मुद्दा जिसे 1973 में अनंतपुर साहब रिजॉलूशन से जाना जाता है. जिसमें चंडीगढ़ और नदियों के पानी के बंटवारे पर एकतरफा मांगें की गईं. अकालियों और दरबारा सिंह सरकार में तनातनी चल रही थी कि पंजाब की राजनीति भाषा और धर्म की चुंगल में फंस गई. जनगणना का दौर था और लोगों से उनके धर्म और भाषा पूछी जाती थी. इस दौर में अखबार पंजाब केसरी ने हिंदी को लेकर मुहिम चला दी, जिससे माहौल और खराब हो गया. हिंदी की मुहिम से कट्टर सिख नाराज हो गए, जिनमें भिंडरावाले भी थे.
इंदिरा गांधी को 1980 के चुनाव में जबरदस्त जीत मिली. लोकसभा की 529 सीटों में से कांग्रेस को 351 सीटें मिलीं. ज्ञानी जैल सिंह को प्राधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गृह मंत्री बनाया. पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अकाली दल को पछाड़ा. पंजाब में दरबारा सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया.
अमृतसर में साल 1978 की अकाली और निरंकारियों के बीच झड़प में 13 अकाली मारे गए. इस झड़प के बाद 24 अप्रैल 1980 को निरंकारियों के प्रमुख बाबा गुरबचन सिंह की हत्या कर दी गई. नामजद ज्यादातर लोगों का ताल्लुक भिंडरावाले से था.
वरिष्ट पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'बियोंड द लाइन एन ऑटोबायोग्राफी' में लिखा कि संजय गांधी ने भिंडरावाले को पैसे देने की बात मानी है. हालांकि, उन्हें ये अंदाज़ा नहीं था कि भिंडरावाले आतंकवाद का रास्ता चुन लेगा.
जरनैल सिंह भिंडरावाले को साल 1977 में सिखों की धर्म प्रचार की प्रमुख शाखा, दमदमी टकसाल का जत्थेदार बनाया गया. भिंडरावाले बड़े चेहरा हो चले. अब उन्हें पंबाज की राजनीति में अकालियों को पछाड़ने के लिए मोहरा बनाया गया और ये काम ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी ने बखूबी किया. लेकिन भिंडरावाले मुसीबत बन गए.
इस उथल-पुथल की देन रहा ऑपरेशन ब्लू स्टार, जिसने भारतीय राजनीति की धारा बदल दी. आज उसी ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी है. आज के दिन ही जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत के साथ ऑपरेशन ब्लू स्टार का अंत हुआ. आइए जानते हैं कि कौन है भिंडरावाले और ऑपरेशन ब्लू स्टार ने कैसे देश की राजनीति की धारा बदल दी.
1977 के आम चुनाव में हार के साथ ही पंजाब सूबे में भी इंदिरा गांधी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा. पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली अकाली दल की सरकार सत्ता में आई. इस हार से निजात पाने के लिए कांग्रेस ने एक ऐसे शख्स का सहारा लिया जिसने सात साल के भीतर पंजाब के अलावा पूरे देश में उथल-पुथल मचा दी.
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