यही नहीं हर विधायक अपना वोट प्राथमिकता के हिसाब से देता है. मतलब अगर 12 उम्मीदवार मैदान में हैं तो हर विधायक को बताना होगा कि उसकी पहली पसंद कौन है दूसरी पसंद कौन और इसी तरह सभी 12 उम्मीदवारों के लिए अपनी प्राथमिकता बतानी होगी.
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ये वोट या तो किसी दूसरी पार्टी के बचे हुए पहली प्राथमिकता के वोट होंगे, वो भी नहीं हुआ तो फिर उस उम्मीदवार के लिए दूसरी प्राथमिकता वाले वोटों को जोड़ा जाएगा.
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इस तरह से जिस उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता के 34 वोट मिल गए वो जीत जाता है और जिसे नहीं मिलते उसके लिए चुनाव होता है. इसीलिए जैसे यूपी में कांग्रेस के 29 विधायक हैं और उसे अपने उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने के लिए 5 और विधायकों के वोट चाहिए.
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इसे समझने के लिए उत्तर प्रदेश का उदाहरण लेते हैं. उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधायक हैं और यहां से 11 राज्सयभा सदस्यों का चुनाव होना है तो हर सदस्य को कितने विधायकों का वोट चाहिए ये तय करके लिए कुल विधायकों की संख्या को 11 सीटों में 1 जोड़कर विभाजित किया जाता है यानी 403 बटा 12 यानी 33 और फिर इसमें 1 जोड़ दिया जाता है यानी 34. मतलब ये हुआ कि यूपी से किसी भी सदस्य को राज्यसभा पहुंचने के लिए कम से कम 34 वोटों की जरूरत होगी.
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इसीलिए राज्यसभा के सदस्यों के चुनाव के लिए राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य वोट डालते हैं. लेकिन राज्यसभा के चुनाव की प्रक्रिया बाकी सभी चुनावों से काफी अलग होती है.
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कल यानी 23 मार्च को देश के 16 राज्यों की 58 राज्यसभा सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं. राज्यसभा में हर 2 साल में एक तिहाई सदस्यों का कार्य़काल खत्म होता है इसलिए उतनी सीटों के लिए चुनाव होते हैं. इस बार राज्यसभा की 58 सीटों के लिए 15 राज्यों से सदस्य चुने जा रहे हैं. राज्यसभा में किस राज्य से कितने सदस्य होंगे इसका फैसला राज्य की जनसंख्या के हिसाब से होता है
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यही वजह है कि जहां चुनाव की नौबत आती है वहां इतना जोड़-तोड़ होता है और निर्दलीय उम्मीदवार भी दोनों तरफ़ के एक्सट्रा वोटों से क़िस्मत आज़मा लेते हैं.