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बस्तरिया खानों के जायके की विदेशों में भी धूम, बारिश और ठंडक में बढ़ जाती हैं इन डिशेज की डिमांड

Tribal Cuisine in Bastar: बस्तर क्षेत्र आदिवासियों के रहन सहन, खान पान और संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक बस्तरिया लोकल खाने का जायका लेने पहुंचते हैं.

Tribal Cuisine in Bastar: बस्तर क्षेत्र आदिवासियों के रहन सहन, खान पान और संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक बस्तरिया लोकल खाने का जायका लेने पहुंचते हैं.

बस्तर के खानों के देशी विदेशी हैं दीवाने

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छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपने प्राकृतिक सुंदरता, यहां के आदिवासियों के रहन-सहन और खान-पान के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. बस्तर को कुदरत ने बेशुमार खूबसूरती से नवाजा है. घने जंगल यहां की वादियां औरवाटरफॉल सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपने प्राकृतिक सुंदरता, यहां के आदिवासियों के रहन-सहन और खान-पान के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. बस्तर को कुदरत ने बेशुमार खूबसूरती से नवाजा है. घने जंगल यहां की वादियां औरवाटरफॉल सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
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बस्तर के आदिवासियों के खानपान में काफी चीजें कॉमन होती हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी व्यंजन इसमें शामिल होते हैं जो बस्तर को अलग पहचान दिलाते हैं. इनमें चापड़ा चटनी, चींटी से बनी चटनी, गुलगुला भजिया और मांसाहारी में सूखी मछली और कड़कनाथ मुर्गा, शाकाहारी में कुम्हड़ा भाजी और देसी कोचई, आमट शामिल है.
बस्तर के आदिवासियों के खानपान में काफी चीजें कॉमन होती हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी व्यंजन इसमें शामिल होते हैं जो बस्तर को अलग पहचान दिलाते हैं. इनमें चापड़ा चटनी, चींटी से बनी चटनी, गुलगुला भजिया और मांसाहारी में सूखी मछली और कड़कनाथ मुर्गा, शाकाहारी में कुम्हड़ा भाजी और देसी कोचई, आमट शामिल है.
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बारिश और ठंड का मौसम में यहां के शहरी लोगों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदाय भी सेहत का खास ख्याल रखते हैं. इस दौरान यहां के लोग मांसाहारी खाना ज्यादा पसंद करते हैं, जिससे उनके शरीर में गर्मी बनी रहे. इसके लिए सबसे ज्यादा सूखी मछलियां, कड़कनाथ मुर्गा का सेवन करते हैं. शाकाहारी खाने में वनों में मिलने वाले कई तरह की भाजी, कांदा और बास्ता का सेवन किया जाता है.
बारिश और ठंड का मौसम में यहां के शहरी लोगों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदाय भी सेहत का खास ख्याल रखते हैं. इस दौरान यहां के लोग मांसाहारी खाना ज्यादा पसंद करते हैं, जिससे उनके शरीर में गर्मी बनी रहे. इसके लिए सबसे ज्यादा सूखी मछलियां, कड़कनाथ मुर्गा का सेवन करते हैं. शाकाहारी खाने में वनों में मिलने वाले कई तरह की भाजी, कांदा और बास्ता का सेवन किया जाता है.
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बस्तर में मिलने वाले वनोपज पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां के आदिवासियों के जरिये तैयार की जाने वाली लोकल व्यंजन के लाखों लोग दीवाने हैं. देश-दुनिया से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटकों की बस्तरिया व्यंजन पहली पसंद होती है. बस्तरिया डिशेज में हेल्दी फूड के साथ स्वादिष्ट व्यंजन शामिल होते हैं.
बस्तर में मिलने वाले वनोपज पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां के आदिवासियों के जरिये तैयार की जाने वाली लोकल व्यंजन के लाखों लोग दीवाने हैं. देश-दुनिया से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटकों की बस्तरिया व्यंजन पहली पसंद होती है. बस्तरिया डिशेज में हेल्दी फूड के साथ स्वादिष्ट व्यंजन शामिल होते हैं.
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बारिश और ठंड के मौसम में अगर बस्तर की खूबसूरत वादियों को देखने जा रहे हैं तो यहां के आदिवासियों की मशहूर डिश चापड़ा चटनी का सेवन जरुर करें. इस चटनी को खाने को लेकर कई वैज्ञानिक कारण भी है. आदिवासियों का मानना है कि वैसे तो चापड़ा चटनी 12 महीने खाया जाता है, लेकिन ठंड के मौसम में चापड़ा चटनी ग्रामीण अंचलों में हर घर में बनाई जाने वाली डिश है.
बारिश और ठंड के मौसम में अगर बस्तर की खूबसूरत वादियों को देखने जा रहे हैं तो यहां के आदिवासियों की मशहूर डिश चापड़ा चटनी का सेवन जरुर करें. इस चटनी को खाने को लेकर कई वैज्ञानिक कारण भी है. आदिवासियों का मानना है कि वैसे तो चापड़ा चटनी 12 महीने खाया जाता है, लेकिन ठंड के मौसम में चापड़ा चटनी ग्रामीण अंचलों में हर घर में बनाई जाने वाली डिश है.
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चापड़ा चटनी शरीर के लिए काफी लाभदायक होती है. चापड़ा चटनी के सेवन से शरीर ठंड के मौसम में भी पूरी तरह से चुस्त-दुरुस्त रहता है और शरीर में गर्मी पैदा करता है. यही वजह है कि घने जंगलों में कड़कड़ाती ठंड के बावजूद यहां के आदिवासी ग्रामीण इस ठंड को बरदाश्त करने की सहन शक्ति बरकरार रहती हैं. इसकी वजह चापड़ा चटनी का सेवन है.
चापड़ा चटनी शरीर के लिए काफी लाभदायक होती है. चापड़ा चटनी के सेवन से शरीर ठंड के मौसम में भी पूरी तरह से चुस्त-दुरुस्त रहता है और शरीर में गर्मी पैदा करता है. यही वजह है कि घने जंगलों में कड़कड़ाती ठंड के बावजूद यहां के आदिवासी ग्रामीण इस ठंड को बरदाश्त करने की सहन शक्ति बरकरार रहती हैं. इसकी वजह चापड़ा चटनी का सेवन है.
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इसके अलावा शाकाहारी में भी आदिवासी ठंड के मौसम में सबसे ज्यादा कुमड़ा भाजी का सेवन करते हैं. यह भी शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है. इसके अलावा मांसाहारी में बस्तर संभाग के अंदरूनी क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण जंगली कड़कनाथ मुर्गा बड़े चाव से खाते हैं.
इसके अलावा शाकाहारी में भी आदिवासी ठंड के मौसम में सबसे ज्यादा कुमड़ा भाजी का सेवन करते हैं. यह भी शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है. इसके अलावा मांसाहारी में बस्तर संभाग के अंदरूनी क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण जंगली कड़कनाथ मुर्गा बड़े चाव से खाते हैं.
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ग्रामीणों का मानना है कि कड़कनाथ जंगली मुर्गा बारिश और ठंड में शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है. बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक भी मांसाहार में कड़कनाथ मुर्गा खाना ही पसंद करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि कड़कनाथ मुर्गा इम्यूनिटी बढ़ाने में काफी लाभदायक है. यही वजह है कि सबसे ज्यादा बस्तर में कड़कनाथ मुर्गा पाया जाता है और बस्तर के लोग बड़े चाव से इसे खाते हैं और ऐसे मौसम में इसकी डिमांड बढ़ जाती है.
ग्रामीणों का मानना है कि कड़कनाथ जंगली मुर्गा बारिश और ठंड में शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है. बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक भी मांसाहार में कड़कनाथ मुर्गा खाना ही पसंद करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि कड़कनाथ मुर्गा इम्यूनिटी बढ़ाने में काफी लाभदायक है. यही वजह है कि सबसे ज्यादा बस्तर में कड़कनाथ मुर्गा पाया जाता है और बस्तर के लोग बड़े चाव से इसे खाते हैं और ऐसे मौसम में इसकी डिमांड बढ़ जाती है.

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