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Bastar: इस पेड़ की उम्र करीब 600 साल, भगवान श्री राम के नाम से जाना जाता है वृक्ष, जानें खासियत

(भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के नाम से मशहूर सागौन के पेड़)

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छत्तीसगढ़ का बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है. घने जंगल, यहां के वाटरफॉल और नैसर्गिक गुफाएं पूरे देश और विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं. बस्तर में ही भारत का सबसे प्राचीन सागौन का पेड़ है. इस पेड़ की उम्र लगभग 600 साल है. इस पेड़ को भगवान श्री राम का नाम दिया गया है.
छत्तीसगढ़ का बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है. घने जंगल, यहां के वाटरफॉल और नैसर्गिक गुफाएं पूरे देश और विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं. बस्तर में ही भारत का सबसे प्राचीन सागौन का पेड़ है. इस पेड़ की उम्र लगभग 600 साल है. इस पेड़ को भगवान श्री राम का नाम दिया गया है.
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इस पेड़ के अगल बगल में तीन और सागौन के पुराने पेड़ हैं, जिन्हें लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के नाम से जाना जाता है. इन विशालकाय पेड़ों को देखना अपने आप में रोमांच का अनुभव कराता है. दरअसल इन पेड़ों की वास्तविकता आयु की गणना के हिसाब से देखा जाए तो यह अयोध्या में श्रीराम लल्ला के जन्म स्थान निर्माण के पहले से अस्तित्व में है.
इस पेड़ के अगल बगल में तीन और सागौन के पुराने पेड़ हैं, जिन्हें लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के नाम से जाना जाता है. इन विशालकाय पेड़ों को देखना अपने आप में रोमांच का अनुभव कराता है. दरअसल इन पेड़ों की वास्तविकता आयु की गणना के हिसाब से देखा जाए तो यह अयोध्या में श्रीराम लल्ला के जन्म स्थान निर्माण के पहले से अस्तित्व में है.
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छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर है तिरिया वन ग्राम. यहां से माचकोट का घना जंगल शुरू हो जाता है. यहां कच्चे रास्ते और पहाड़ी नाला पार करके 12 किलोमीटर जंगल के भीतर जाना होता है. इसके बाद वह जगह आती है जहां कटीली तार से इन विशालकाय सागौन के पेड़ों को संरक्षित किया गया है. यह पूरा क्षेत्र विरान और मानव दखलअंदाजी से कोसों दूर है. हालांकि इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की बात हमेशा से कही जा रही है लेकिन अब तक देश-दुनिया से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक इससे अंजान हैं.
छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर है तिरिया वन ग्राम. यहां से माचकोट का घना जंगल शुरू हो जाता है. यहां कच्चे रास्ते और पहाड़ी नाला पार करके 12 किलोमीटर जंगल के भीतर जाना होता है. इसके बाद वह जगह आती है जहां कटीली तार से इन विशालकाय सागौन के पेड़ों को संरक्षित किया गया है. यह पूरा क्षेत्र विरान और मानव दखलअंदाजी से कोसों दूर है. हालांकि इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की बात हमेशा से कही जा रही है लेकिन अब तक देश-दुनिया से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक इससे अंजान हैं.
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माचकोट एरिया के फॉरेस्ट रेंजर संजय रावतिया ने बताया कि इस घने जंगल एरिया में इस रेंज के सबसे विशालकाय सागौन टिक के पेड़ों को वन विभाग ने राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का नाम दिया हुआ है. खास बात यह है कि सिर्फ 20 मीटर के दायरे में यह चारों पेड़ एक सीधी कतार में खड़े हुए हैं. इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो त्रेतायुग के यह चारों भाई एक साथ खड़े हैं. इसमें सबसे ऊंचे सागौन का पेड़ जिसकी ऊंचाई 389 मीटर और तने की गोलाई 352 सेंटीमीटर मापी गई है.
माचकोट एरिया के फॉरेस्ट रेंजर संजय रावतिया ने बताया कि इस घने जंगल एरिया में इस रेंज के सबसे विशालकाय सागौन टिक के पेड़ों को वन विभाग ने राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का नाम दिया हुआ है. खास बात यह है कि सिर्फ 20 मीटर के दायरे में यह चारों पेड़ एक सीधी कतार में खड़े हुए हैं. इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो त्रेतायुग के यह चारों भाई एक साथ खड़े हैं. इसमें सबसे ऊंचे सागौन का पेड़ जिसकी ऊंचाई 389 मीटर और तने की गोलाई 352 सेंटीमीटर मापी गई है.
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स्थानीय ग्रामीण और जानकार बृजलाल विश्वकर्मा बताते हैं कि भगवान राम का इस दंडकारण्य से गहरा संबंध रहा है. इसलिए इन पेड़ों की उम्र के आधार पर नामकरण राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न किया गया है. ऐसी भी मान्यता है कि कुछ ग्रामीण बरसों पहले सागौन के इस पुराने पेड़ों को काटने पहुंचे थे लेकिन जैसे ही कुल्हाड़ी चली इन पेड़ों से इंसानी आवाजें आई जिसे सुनकर ग्रामीण डर गए तब से इन्हें देव पेड़ मानकर ग्रामीण इन पेड़ों की पूजा करते हैं.
स्थानीय ग्रामीण और जानकार बृजलाल विश्वकर्मा बताते हैं कि भगवान राम का इस दंडकारण्य से गहरा संबंध रहा है. इसलिए इन पेड़ों की उम्र के आधार पर नामकरण राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न किया गया है. ऐसी भी मान्यता है कि कुछ ग्रामीण बरसों पहले सागौन के इस पुराने पेड़ों को काटने पहुंचे थे लेकिन जैसे ही कुल्हाड़ी चली इन पेड़ों से इंसानी आवाजें आई जिसे सुनकर ग्रामीण डर गए तब से इन्हें देव पेड़ मानकर ग्रामीण इन पेड़ों की पूजा करते हैं.

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