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Bastar Art: विश्वभर में प्रसिद्ध है बस्तर की ये आर्ट, विलुप्त होती इस पुरानी परंपरा को फिर से मिल रही पहचान, देखें तस्वीरें

(बस्तर का फेमस गोदना आर्ट, फोटो अशोक नायडू)

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छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी कला और संस्कृति के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता है, यहां की आदिवासी परंपरा, संस्कृति उनके रहन-सहन और स्वादिष्ट व्यंजन पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है, वही कला के क्षेत्र में भी यहां के आदिवासियों को कीर्तिमान हासिल है, खासकर अपनी वेशभूषा ,आभूषण और गोदना आर्ट को लेकर  यहां के आदिवासी देश विदेशों में भी सम्मानित हो चुके हैं, लेकिन आधुनिकता के इस युग में आदिवासियों की कुछ ऐसी परंपरा जो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे, लेकिन एक बार फिर से इन कला को पुनर्जीवित करने की कोशिश प्रशासन के द्वारा की जा रही है, और इन कला में से एक है गोदना आर्ट, दरअसल यहां की आदिवासी महिलाएं अपने शरीर में गोदना आर्ट करवाते हैं.
छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी कला और संस्कृति के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता है, यहां की आदिवासी परंपरा, संस्कृति उनके रहन-सहन और स्वादिष्ट व्यंजन पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है, वही कला के क्षेत्र में भी यहां के आदिवासियों को कीर्तिमान हासिल है, खासकर अपनी वेशभूषा ,आभूषण और गोदना आर्ट को लेकर  यहां के आदिवासी देश विदेशों में भी सम्मानित हो चुके हैं, लेकिन आधुनिकता के इस युग में आदिवासियों की कुछ ऐसी परंपरा जो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे, लेकिन एक बार फिर से इन कला को पुनर्जीवित करने की कोशिश प्रशासन के द्वारा की जा रही है, और इन कला में से एक है गोदना आर्ट, दरअसल यहां की आदिवासी महिलाएं अपने शरीर में गोदना आर्ट करवाते हैं.
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बस्तर के अंदरूनी गांव में हर महिलाओं  और पुरुषों में गोदना आर्ट सामान्य है,  इस आर्ट की वजह से बस्तर वासियों की एक अलग ही पहचान होती है ,खासकर इस गोदना आर्ट में बस्तर की आदिवासियों की संस्कृति झलकती है, यहां के आदिवासियों द्वारा सबसे अलग तरह के गोदना आर्ट किये जाने की वजह से देश और विदेशों से भी पर्यटक इस गोदना आर्ट को अपने शरीर पर बनवाते है, लेकिन धीरे-धीरे जितने पहले की ग्रामीण महिलाएं थी जो इस गोदना आर्ट से ताल्लुकात रखती थी उनकी मृत्यु होने के बाद यह आर्ट विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया था और अब फिर से  प्रशासन कुछ पुराने गोदना आर्ट के कलाकारों के माध्यम से नई पीढ़ियों को इसकी ट्रेनिंग दे रहा है. 
बस्तर के अंदरूनी गांव में हर महिलाओं  और पुरुषों में गोदना आर्ट सामान्य है,  इस आर्ट की वजह से बस्तर वासियों की एक अलग ही पहचान होती है ,खासकर इस गोदना आर्ट में बस्तर की आदिवासियों की संस्कृति झलकती है, यहां के आदिवासियों द्वारा सबसे अलग तरह के गोदना आर्ट किये जाने की वजह से देश और विदेशों से भी पर्यटक इस गोदना आर्ट को अपने शरीर पर बनवाते है, लेकिन धीरे-धीरे जितने पहले की ग्रामीण महिलाएं थी जो इस गोदना आर्ट से ताल्लुकात रखती थी उनकी मृत्यु होने के बाद यह आर्ट विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया था और अब फिर से  प्रशासन कुछ पुराने गोदना आर्ट के कलाकारों के माध्यम से नई पीढ़ियों को इसकी ट्रेनिंग दे रहा है. 
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इस ट्रेनिंग को लेने के बाद यहां के आदिवासी युवाओ और महिला समूह को गोदना आर्ट के माध्यम से रोजगार भी मिल रहा है. दरअसल जगदलपुर शहर में मौजूद बादल( बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एंड लिटरेचर)  संस्था के  माध्यम से बस्तर के आदिवासियों के विलुप्त होने वाली कला, संस्कृति को फिर से इस संस्था के माध्यम से पहचान दी जा रही है, और इसी के तहत ही गोदना आर्ट को पुनर्जीवित करने का प्रयास प्रशासन के द्वारा शुरू किया गया, इसके लिए मई से जुलाई 2022 में करीब 2 महीने तक पुराने गोदना आर्ट  के कलाकारों के द्वारा नई पीढ़ी के युवाओं और महिला स्व: सहायता समूह को प्रशिक्षण दिया गया, जिसके बाद बस्तर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में अलग से गोदना आर्ट के लिए स्टॉल  बनाए गए और यहां अब फिर से छत्तीसगढ़ के साथ ही अन्य राज्य और विदेशों से भी पहुंचने वाले पर्यटक अपने शरीर पर गोदना आर्ट (टैटू) बनवा रहे हैं. 
इस ट्रेनिंग को लेने के बाद यहां के आदिवासी युवाओ और महिला समूह को गोदना आर्ट के माध्यम से रोजगार भी मिल रहा है. दरअसल जगदलपुर शहर में मौजूद बादल( बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एंड लिटरेचर)  संस्था के  माध्यम से बस्तर के आदिवासियों के विलुप्त होने वाली कला, संस्कृति को फिर से इस संस्था के माध्यम से पहचान दी जा रही है, और इसी के तहत ही गोदना आर्ट को पुनर्जीवित करने का प्रयास प्रशासन के द्वारा शुरू किया गया, इसके लिए मई से जुलाई 2022 में करीब 2 महीने तक पुराने गोदना आर्ट  के कलाकारों के द्वारा नई पीढ़ी के युवाओं और महिला स्व: सहायता समूह को प्रशिक्षण दिया गया, जिसके बाद बस्तर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में अलग से गोदना आर्ट के लिए स्टॉल  बनाए गए और यहां अब फिर से छत्तीसगढ़ के साथ ही अन्य राज्य और विदेशों से भी पहुंचने वाले पर्यटक अपने शरीर पर गोदना आर्ट (टैटू) बनवा रहे हैं. 
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इसकी जमकर तारीफ भी कर रहे हैं, बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार का कहना है कि गोदना आर्ट को एक बार फिर से पहचान मिलने लगी है, कोशिश की जा रही है कि जिला प्रशासन के द्वारा हर कल्चरल प्रोग्राम में और इसके अलावा प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों के साथ कुछ खास जगहों पर  प्रशिक्षित युवाओं द्वारा गोदना आर्ट बनाया जा रहा है, और इससे उनको रोजगार भी मिल रहा है, नए साल में बस्तर के गोदना आर्ट को पर्यटको का अच्छा रिस्पांस भी मिला, और 300 से ज्यादा लोगों ने गोदना आर्ट टैटू बनवाया है, जिसमें विदेशी पर्यटक भी शामिल है.
इसकी जमकर तारीफ भी कर रहे हैं, बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार का कहना है कि गोदना आर्ट को एक बार फिर से पहचान मिलने लगी है, कोशिश की जा रही है कि जिला प्रशासन के द्वारा हर कल्चरल प्रोग्राम में और इसके अलावा प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों के साथ कुछ खास जगहों पर  प्रशिक्षित युवाओं द्वारा गोदना आर्ट बनाया जा रहा है, और इससे उनको रोजगार भी मिल रहा है, नए साल में बस्तर के गोदना आर्ट को पर्यटको का अच्छा रिस्पांस भी मिला, और 300 से ज्यादा लोगों ने गोदना आर्ट टैटू बनवाया है, जिसमें विदेशी पर्यटक भी शामिल है.
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वहीं बस्तर के आदिवासी कल्चरल के होमस्टे में भी गोदना आर्ट टैटू बनवाने के लिए महिला स्व सहायता समूह और कुछ प्रशिक्षित युवा मौजूद रहते हैं. कलेक्टर ने कहा कि आने वाले समय में पूरे बस्तर संभाग में इस आर्ट को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जाएगी.
वहीं बस्तर के आदिवासी कल्चरल के होमस्टे में भी गोदना आर्ट टैटू बनवाने के लिए महिला स्व सहायता समूह और कुछ प्रशिक्षित युवा मौजूद रहते हैं. कलेक्टर ने कहा कि आने वाले समय में पूरे बस्तर संभाग में इस आर्ट को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जाएगी.

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