Bastar News: लाख की खेती में पिछड़ रहे बस्तर को प्रशिक्षण के साथ मिलेगा लोन, उत्पादन में पहले स्थान पर लाने की तैयारी
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Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर (Bastar) में आदिवासी ग्रामीणों के मुख्य आय का स्त्रोत यहां मिलने वाली वनोपज है. यहां के वनोपज को तोड़ और इकट्ठा कर शासन को बेचकर इससे होने वाले आय से ही बस्तर के वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर ग्रामीणों के जीवन का गुजारा होता है. वहीं कोरोना काल की वजह से पिछले तीन सालों से देखा जा रहा है कि बस्तर में बहुतायत में पाए जाने वाली लाख उत्पादन को लेकर ग्रामीण ज्यादा रुचि नहीं ले रहें हैं.
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इस वजह से लाख उत्पादन में देश में पहले स्थान पर रहने वाला छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए बस्तर में लाख उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए झारखंड के रांची से आए वैज्ञानिकों ने एक बार फिर से बस्तर के ग्रामीणों को लाख उत्पादन के लिए प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया है. ताकि बस्तर के ग्रामीण ज्यादा से ज्यादा लाख उत्पादन कर अच्छी आय प्राप्त कर सकें.
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जानकारी के मुताबिक साल 2008 और 2009 में 7200 टन के साथ पूरे देश में लाख उत्पादन में छत्तीसगढ़ ने रिकॉर्ड कायम किया था. खास बात यह है कि पूरे देश में बस्तर से लाख उत्पादन और सप्लाई की बड़ी चेन बस्तर से संचालित हो रही थी. इसे बढ़ावा देने के लिए वन विभाग सक्रिय तौर पर काम कर रहा था. पिछले तीन सालों से उत्पादन क्षमता में तेजी से कमी आई. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में लाख उत्पादन को अब खेती का दर्जा मिल गया है और ऐसे में किसानों को प्रशिक्षित कर लाख उत्पादन के लिए विशेष तौर पर तैयार किया जा रहा है.
बस्तर संभाग के मुख्य वन संरक्षक मोहम्मद शाहिद ने बताया कि बस्तर वन मंडल के अंतर्गत दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और बस्तर जिले में लाख उत्पादन की पर्याप्त संभावनाएं हैं. यहां के जंगलों में मिलने वाले पलाश, कुसुम और बेर के पेड़ों में स्वाभाविक तौर पर लाख तैयार होता है. इसे और बेहतर तरीके से उपज के तौर पर तैयार करने और इसके संग्रहण और विक्रय चैन को डेवलप करने के लिए वन विभाग एक बार फिर से चारों जिलों के 100 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित कर रहा है, क्योंकि देखा जा रहा था कि पिछले कुछ सालों से किसान लाख उत्पादन में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे थे. इस वजह से इन्हें झारखंड के रांची से आए विशेष वैज्ञानिकों के द्वारा लाख उत्पादन की तकनीक को लेकर एक बार फिर से किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है.
वन विभाग के अधिकारी मोहम्मद शाहिद ने बताया कि लाख का प्रमुख उपयोग चपड़ा बनाने, रंजक निकालकर विद्युत उपकरणों और वाद्य यंत्रों के साथ-साथ महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली चूड़ियों के निर्माण में किया जाता है. साथ ही सीमेंट और स्याही बनाने में भी लाख का बहुतायात में इस्तेमाल होता है. पिछले कुछ सालों से पूरे देश में सप्लाई होने वाले लाख का 42% हिस्सा अकेले छत्तीसगढ़ राज्य सप्लाई करता है. लाख के जो कीट होते हैं वह काफी छोटे होते हैं और यह अपने शरीर से लाख का उत्पादन करते हैं. बस्तर में घने जंगलों में सामान्य रूप से लाख के कीट पाए जाते हैं पर इनसे लाख संग्रहण की प्रक्रिया श्रम साध्य होती है.
इस वजह से पिछले दो सालों से ग्रामीण इसमें रुचि नहीं ले रहे थे. वन अधिकारियों का कहना है कि पिछली बार के मुकाबले इस बार लाख का उत्पादन ज्यादा हो इसके लिए विशेष तौर पर किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. साथ ही उन्हें बैंकों से लोन भी दिलाया जाएगा. इससे भी वह लाख के बीज खरीदकर जंगलों में उसकी फसल तैयार कर सकें. गौरतलब है कि इससे पहले लाख उत्पादन और प्रसंस्करण के लिए महिला स्व सहायता समूह को स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित किया गया था. अब किसानों के मुकाबले महिलाएं भी लाख संग्रहण का काम इस सीजन में कर रही है.
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