Bilaspur News: 'अमरकंटक' आस्था का बड़ा केंद्र, प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर, देखें तस्वीर
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर संभाग से लगा अमरकंटक अपनी खूबसूरती के लिए देशभर में विख्यात है. अमरकंटक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां ऊंचे-ऊंचे पेड़, घने वन और दूर-दूर तक सिर्फ पर्वत ही दिखाई देते हैं. यहां सूर्य की किरणें जमीन तक नहीं पहुंचती. इसलिए अमरकंटक में वर्षभर पर्यटकों की भीड़ रहती है. अमरकंटक को नदियों का शहर कहा जाता है, क्योंकि यहां से लगभग पांच नदियों का उद्गम होता है. यहीं पर मां नर्मदा का उद्गम स्थल है.
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View In Appअमरकंटक समुद्र तल से 3600 फीट ऊंचाई पर मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है. अमरकंटक मैकल पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची श्रृंखला है. विध्यांचल, सतपुड़ा और मैकल पर्वतश्रेणियों की शुरुआत यहीं से होती है. अमरकंटक प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है. यहां के पहाड़ों में इतने ज्यादा घने हरे भरे पेड़ हैं, ऐसा लगता है मानों पहाड़ों ने हरियाली की चादर ओढ़ी हो. अमरकंटक ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए है. मान्यता है कि जगतगुरु शंकराचार्य ने यहीं पर नर्मदा के सम्मान में नर्मदाष्टक लिखा था.
अमरकंटक प्राकृतिक सुंदरता के साथ धार्मिक महत्व के लिए भी खास है. यहां सूर्य, लक्ष्मी, शिव, गणेश, विष्णु आदि देवी देवताओं के मंदिर हैं. ये सभी मंदिर एकदम शांत जगह पर है. जहां जाने के बाद ऐसा लगता है जैसे तापमान कम हो गया हो. यहां एक तरफ ऐतिहासिक मंदिर, नदियों का उद्गम स्थल है तो दूसरी ओर घने जंगल. यहां सोनमुंग नाम की एक जगह है जिसे सोनमुड़ा के नाम से जाना जाता है. सोनमूंग से ही सोन नदी का उद्गम होता है जो उत्तर की ओर बहती हुई गंगा नदी में मिल जाती है. सोन नदी को स्वर्ण नदी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें सोने के कण मिलते हैं.
सोनमूंग से एक किलोमीटर दूर पर माई की बगिया स्थित है. लोगों का मानना है बचपन में नर्मदा नदी यहां खेल खेला करती थी. माई की बगिया से लगभग तीन किलोमीटर दूर पर नर्मदा द्वारा बनाया गया पहला जलप्रपात है. जिसे कपिलधारा के नाम से जाना जाता है. यह जलप्रपात 100 फीट की ऊंचाई से गिरती है. कपिलधारा से कुछ दूरी पर दुग्धधारा जलप्रपात है. नर्मदा नदी का पानी एकदम दूध के समान सफेद हो जाता है इसलिए इसे दुग्धधारा के नाम से जाना जाता है. अमरकंटक को साधु संतों की आश्रय स्थल भी कहा जाता है. ये जगह कई ऋषियों की तपोस्थली रही है. जिनमें भृगु, जमदग्नि शामिल है.
इसके अलावा कबीर ने भी यहां कुछ समय व्यतीत किया है. जिसे आज कबीर चौरा के नाम से जाना जाता है. कबीर चौरा को कबीर चबूतरा भी कहा जाता है. इसके साथ ही अमरकंटक में शांति और अहिंसा के प्रतीक जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर की स्मृति में सर्वोदय जैन मंदिर बनाया गया है. यहां भगवान आदिनाथ की 24 फीट प्रतिमा 24 हजार किलोग्राम वजनी अष्टधातु से ढली 17 हजार किलोग्राम अष्टधातु की कमल आसनी पर विराजमान है. यहां कुल 41 हजार किलोग्राम अष्टधातु की भगवान महावीर की पूर्ण प्रतिमा स्थापित की गई है. निर्माण योजना के अनुसार मंदिर की ऊंचाई 151 फीट, चौड़ाई 125 फीट तथा लंबाई 490 फीट रखी है. जब मंदिर निर्माण की योजना बनी थी. तब इसकी अनुमानित लागत लगभग 60 करोड़ रुपए आंकी गई थी लेकिन बढ़ती हुई महंगाई में कई गुनी हो गई.
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