In photos: यहां गिरा था मां सति का दांत, इसलिए कहलाया दंतेश्वरी शक्तिपीठ, दुनिया के 52 शक्तिपीठों में प्रसिद्ध है इस देवी का मंदिर
बड़ी संख्या में बस्तर संभाग के साथ पड़ोसी राज्य ओड़िशा और तेलंगाना से भी श्रद्धालु मां दंतेश्वरी देवी के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. दरअसल दंतेश्वरी देवी बस्तर की आराध्य देवी है और दंतेश्वरी माता से लोगों की काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. यही वजह है कि सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओ ने मंदिर में मनोकामना दीप जलाया है.
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View In Appवहीं अब आगामी 9 दिनों तक नवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु की भीड़ मंदिर में देवी के दर्शन के लिए पहुंचेगी. इधर टेंपल कमेटी ने भी श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया है.अगले 9 दिनों तक मंदिर में विशेष पूजा पाठ की जाएगी.
दरअसल बुधवार से पूरे देश में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है, और देवी मंदिरों में मनोकामना ज्योत की स्थापना के साथ ही देवी दर्शन का दौर भी शुरू हो चुका है.
छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में दंतेवाड़ा जिले में स्थित दंतेश्वरी मंदिर है. जिसे देश का 12वां शक्तिपीठ माना जाता है. इस ऐतिहासिक मंदिर के निर्माण को लेकर कई कहानियां और किवदंतियां भी जुड़ी हुई है.
मंदिर के प्रधान पुजारी बताते हैं कि दंतेवाड़ा के शक्तिपीठ को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां माता सति के दांत गिरे थे. इसी वजह से इस इलाके का नाम दंतेवाड़ा पड़ा. वहीं माता के स्वरूप को भी दंतेश्वरी माई के नाम से ही जाना जाता है, दंतेवाड़ा में स्थित पुरातात्विक अवशेष मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में चालुक्यवंश के राजाओं ने करवाया था.
इस मंदिर की वास्तुकला में दक्षिण भारतीय शैली झलकती है. दंतेश्वरी देवी के प्रतिमा की खास बात यह है कि 6 भुजाओं वाली काले रंग की मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है, 6 भुजाओं में देवी ने दाएं हाथ में शंख खडक, त्रिशूल और बाएं हाथ में घंटी, पद्ध और राक्षस का धढ़ लिया हुआ है.
मंदिर में बाकायदा देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं. यह मंदिर सनसनी और डंकिनी नदी के संगम पर स्थित है, इन दोनों नदी की खासियत है कि मंदिर परिसर में ही इन दोनों नदी का संगम होता है ,एक नदी का पानी सफेद तो दूसरा नदी का पानी लाल होता है, इस नदी को भी दो देवियों के नाम से रखा गया है इसलिए दंतेवाड़ा आने से पहले श्रद्धालु जरूर शंखनी और डंकनी नदी के संगम में स्नान करते हैं.
उसके बाद देवी दर्शन करते हैं. यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि नदी तट पर 8 भैरव भाइयों का आवास है, इसलिए इस स्थान को तांत्रिकों की भी साधना स्थल माना जाता है, मान्यता है कि आज भी इस जगह पर गुप्त रूप से बहुत से तांत्रिक जंगलों की गुफाओं में तंत्र विद्या से साधना में लीन है, मंदिर परिसर में नलयुग से लेकर छिंदक नागवंशी की कई मूर्तियां आसपास बिखरी हुई है.
माता दंतेश्वरी को बस्तर राजपरिवार अपनी कुलदेवी भी मानता है लेकिन वह पूरे बस्तर संभाग के वासियों की रक्षक है और यही वजह है कि चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि पर हजारों की संख्या में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर में देवी दर्शन के लिए इकट्ठा होती है.
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