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Republic Day: छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा गांव, जहां से 70 से ज्यादा लोग कर रहे देश की सेवा, अधिकांश घरों से मिलेंगे जवान

(नेवारीखुर्द के युवा, फोटो- दिलीप कुमार)

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पूरा देश इस साल 73वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. आज के दिन देश की सेवा कर रहे जवानों को भी याद करेंगे और देश के लिए बलिदान देने वाले जवानों को भी. इसी कड़ी में बालोद जिले की एक ऐसे गांव की ओर ले चलेंगे जहां एक-दो नहीं बल्कि अधिकांश घरों से देश की सेवा करने वाले जवान मिलेंगे. 
पूरा देश इस साल 73वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. आज के दिन देश की सेवा कर रहे जवानों को भी याद करेंगे और देश के लिए बलिदान देने वाले जवानों को भी. इसी कड़ी में बालोद जिले की एक ऐसे गांव की ओर ले चलेंगे जहां एक-दो नहीं बल्कि अधिकांश घरों से देश की सेवा करने वाले जवान मिलेंगे. 
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बालोद जिला मुख्यालय से महज नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटी सी आबादी वाला गांव है नेवारीखुर्द. इस गांव को लोग सैनिक ग्राम के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उस गांव से लगभग 70 से 80 लोग देश की सेवा के लिए सैनिक बने. वर्तमान में 61 जवान बीएसएफ, एसटीएफ, कोबरा, पुलिस सहित आर्मी में अपनी सेवा दे रहे हैं.
बालोद जिला मुख्यालय से महज नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटी सी आबादी वाला गांव है नेवारीखुर्द. इस गांव को लोग सैनिक ग्राम के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उस गांव से लगभग 70 से 80 लोग देश की सेवा के लिए सैनिक बने. वर्तमान में 61 जवान बीएसएफ, एसटीएफ, कोबरा, पुलिस सहित आर्मी में अपनी सेवा दे रहे हैं.
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खास बात तो यह है कि जितने जवान इस गांव से देश की सेवा के लिए चयनित हुए हैं वह खुद से अभ्यास इस मुकाम तक पहुंचे हैं. शारीरिक अभ्यास के लिए हर रोज सुबह शाम 40 से 50 युवक नदी किनारे अभ्यास के लिए पहुंचते हैं और लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए समूह में बैठकर और इंटरनेट के माध्यम से जानकारी जुटाते हुए तैयारी करते हैं.
खास बात तो यह है कि जितने जवान इस गांव से देश की सेवा के लिए चयनित हुए हैं वह खुद से अभ्यास इस मुकाम तक पहुंचे हैं. शारीरिक अभ्यास के लिए हर रोज सुबह शाम 40 से 50 युवक नदी किनारे अभ्यास के लिए पहुंचते हैं और लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए समूह में बैठकर और इंटरनेट के माध्यम से जानकारी जुटाते हुए तैयारी करते हैं.
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शुरुआत में गांव के बाजू वाले स्कूल में पढ़ाने वाले गांव के ही एक व्यक्ति गांव के लोगों का समूह तैयार किया. और कबड्डी खो-खो जैसे खेल का अभ्यास करवाते रहें. परिणाम यह रहा कि गांव की कबड्डी टीम राष्ट्रीय स्तर में भी अपना परचम लहराई. इसे देखते हुए गांव के और भी युवा खेल के क्षेत्र में रूचि रखने लगे और पुत्र शिक्षक के साथ जुड़ने लगे. इसी बीच गांव के रामरतन उइके की नौकरी होमगार्ड में लगी. फिर एसएफ और सीएम सुरक्षा गार्ड के रूप में भी उन्होंने नौकरी की.
शुरुआत में गांव के बाजू वाले स्कूल में पढ़ाने वाले गांव के ही एक व्यक्ति गांव के लोगों का समूह तैयार किया. और कबड्डी खो-खो जैसे खेल का अभ्यास करवाते रहें. परिणाम यह रहा कि गांव की कबड्डी टीम राष्ट्रीय स्तर में भी अपना परचम लहराई. इसे देखते हुए गांव के और भी युवा खेल के क्षेत्र में रूचि रखने लगे और पुत्र शिक्षक के साथ जुड़ने लगे. इसी बीच गांव के रामरतन उइके की नौकरी होमगार्ड में लगी. फिर एसएफ और सीएम सुरक्षा गार्ड के रूप में भी उन्होंने नौकरी की.
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वहीं से ही शुरू हुआ युवाओं का देश प्रेम के प्रति जज्बा. जैसे ही राम रतन की नौकरी देश सेवा के लिए लगी. उसके बाद उन्होंने गांव के युवाओं को प्रेरणा देना शुरू किया. और देखते ही देखते आज कारवां 70 से 80 लोगों तक पहुंच गया. आज भले ही वह दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी यादें आज भी युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरणादायक है.
वहीं से ही शुरू हुआ युवाओं का देश प्रेम के प्रति जज्बा. जैसे ही राम रतन की नौकरी देश सेवा के लिए लगी. उसके बाद उन्होंने गांव के युवाओं को प्रेरणा देना शुरू किया. और देखते ही देखते आज कारवां 70 से 80 लोगों तक पहुंच गया. आज भले ही वह दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी यादें आज भी युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरणादायक है.
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छोटी सी बस्ती वाले गांव में ना केवल देश सेवा करने वाले जवान है बल्कि शुरुआत से ही यह गांव शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है. यही वजह है कि शुरुआत से ही देश की सेवा के लिए प्रयास करने वाले जवानों को भी पढ़ाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई. आज भी उन्ही 61 जवानों को देश की सेवा करते देख और कई युवा देश सेवा करने की तैयारी में जुटे हुए हैं. खास बात तो यह है कि जो युवा अभी सेना में जाने का अभ्यास कर रहे हैं वह खुद से ही मैदान तैयार किए हैं और तैयारी के लिए उपयोग में आने वाले संसाधन भी जुगाड़ से बनाए है. बस जरूरत है कि प्रशासन की नजर इन युवाओं पर पड़े ताकि इन्हें जरूरत पड़ने वाले सभी संसाधन मुहैया कराए जा सके जिससे और भी युवा प्रेरित हो. 
छोटी सी बस्ती वाले गांव में ना केवल देश सेवा करने वाले जवान है बल्कि शुरुआत से ही यह गांव शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है. यही वजह है कि शुरुआत से ही देश की सेवा के लिए प्रयास करने वाले जवानों को भी पढ़ाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई. आज भी उन्ही 61 जवानों को देश की सेवा करते देख और कई युवा देश सेवा करने की तैयारी में जुटे हुए हैं. खास बात तो यह है कि जो युवा अभी सेना में जाने का अभ्यास कर रहे हैं वह खुद से ही मैदान तैयार किए हैं और तैयारी के लिए उपयोग में आने वाले संसाधन भी जुगाड़ से बनाए है. बस जरूरत है कि प्रशासन की नजर इन युवाओं पर पड़े ताकि इन्हें जरूरत पड़ने वाले सभी संसाधन मुहैया कराए जा सके जिससे और भी युवा प्रेरित हो. 

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