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Chhattisgarh के शिल्पकार ने बनाई PM Modi की सबसे छोटी मूर्ति, तस्वीरों में देखिए इस कलाकार की हैरान कर देने वाली प्रतिभा

भिलाई के शिल्पकार ने बनाई पीएम मोदी की सबसे छोटी मूर्ति

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दुर्ग:  स्टील प्लांट के चलते छोटे से शहर भिलाई की पहचान विश्व पटल पर है. लेकिन अब वह एक और चीज के लिए अपनी पहचान बना रहा है. वह है नैनो नहीं माइक्रो मूर्तियों के लिए. भिलाई के शिल्पकार अंकुश देवांगन ने एक से लेकर 10 इंच तक की नैनो मूर्तियों के लिए तो जाने ही जाते हैं वहीं उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब तक कि सबसे छोटी मूर्ति बनाई है. इतना ही नहीं उन्होंने 0.4 एमएम की माइक्रो गणेशा मूर्ति बनाकर अपना नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है. इससे उनकी और भिलाई शहर की चर्चा सबसे छोटी मूर्ति के लिए विश्वपटल पर हो रही है.
दुर्ग: स्टील प्लांट के चलते छोटे से शहर भिलाई की पहचान विश्व पटल पर है. लेकिन अब वह एक और चीज के लिए अपनी पहचान बना रहा है. वह है नैनो नहीं माइक्रो मूर्तियों के लिए. भिलाई के शिल्पकार अंकुश देवांगन ने एक से लेकर 10 इंच तक की नैनो मूर्तियों के लिए तो जाने ही जाते हैं वहीं उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब तक कि सबसे छोटी मूर्ति बनाई है. इतना ही नहीं उन्होंने 0.4 एमएम की माइक्रो गणेशा मूर्ति बनाकर अपना नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है. इससे उनकी और भिलाई शहर की चर्चा सबसे छोटी मूर्ति के लिए विश्वपटल पर हो रही है.
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अंकुश ने बताया वह छोटी मूर्तियों को बनाने के लिए आलपिन, निडिल और ब्लेड जैसी घरेलू चीजों का उपयोग करते हैं. इन्हीं की मदद से उन्हों अबतक सैकड़ों छोटी से छोटी मूर्तियों को बनाया है.
अंकुश ने बताया वह छोटी मूर्तियों को बनाने के लिए आलपिन, निडिल और ब्लेड जैसी घरेलू चीजों का उपयोग करते हैं. इन्हीं की मदद से उन्हों अबतक सैकड़ों छोटी से छोटी मूर्तियों को बनाया है.
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अंकुश देवांगन ने ABP NEWS से खास बातचीत में बताया कि बचपन से ही उन्हें चित्रकारी और मूर्तियां बनाने का शौक था. वह गणेश पूजा, दुर्गा पूजा से काफी आकर्षित रहते थे. इसलिए उन्होंने बचपन से ही उनकी प्रतिमा बनाना शुरू कर दिया था. बड़ी मूर्तियां बनाने में जब काफी ख्याति मिल गई. तो एक दिन अंकुश के मन सवाल आया कि क्या कोई छोटी मूर्तियां भी बनाता है. इसके बाद उन्होंने इंटरनेट पर इसके बारे में सर्च किया. वहां से उन्हें पता चला कि अफगानिस्तान और फ्रांस के मूर्तिकारों ने 1 इंच तक की छोटी मूर्तियां बनाई है. लेकिन उनके नाम कोई विश्व रिकार्ड नहीं है. वहीं से अंकुश ने ठान लिया  कि वह छोटी मूर्तियां बनाना शुरू करेंगे.
अंकुश देवांगन ने ABP NEWS से खास बातचीत में बताया कि बचपन से ही उन्हें चित्रकारी और मूर्तियां बनाने का शौक था. वह गणेश पूजा, दुर्गा पूजा से काफी आकर्षित रहते थे. इसलिए उन्होंने बचपन से ही उनकी प्रतिमा बनाना शुरू कर दिया था. बड़ी मूर्तियां बनाने में जब काफी ख्याति मिल गई. तो एक दिन अंकुश के मन सवाल आया कि क्या कोई छोटी मूर्तियां भी बनाता है. इसके बाद उन्होंने इंटरनेट पर इसके बारे में सर्च किया. वहां से उन्हें पता चला कि अफगानिस्तान और फ्रांस के मूर्तिकारों ने 1 इंच तक की छोटी मूर्तियां बनाई है. लेकिन उनके नाम कोई विश्व रिकार्ड नहीं है. वहीं से अंकुश ने ठान लिया कि वह छोटी मूर्तियां बनाना शुरू करेंगे.
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बता दें कि 0.4 एमएम का साइज इतना छोटा होता है कि वह साधारण आंखों से तो दूर पावर का चश्मा लगाकर भी नहीं देखा जा सकता है. अंकुश के सामने विश्व की सबसे छोटी मूर्ति बनाने की चुनौती भी थी. इसलिए वह घड़ी साज के पास गए. उन्होंने उससे पूछा कि क्या उनके लेंस से भी कोई अधिक पावर का लेंस आता है, जिससे हाफ एमएम की चीज पर कुछ लिखा जा सके. वहां उन्हें पता चला कि एक लेंस है जो विशेष रूप से आर्डर करने पर आता है. उस लेंस को अंकुश ने मंगवाया और उसी के सहारे से उस मूर्ति को तैयार किया.
बता दें कि 0.4 एमएम का साइज इतना छोटा होता है कि वह साधारण आंखों से तो दूर पावर का चश्मा लगाकर भी नहीं देखा जा सकता है. अंकुश के सामने विश्व की सबसे छोटी मूर्ति बनाने की चुनौती भी थी. इसलिए वह घड़ी साज के पास गए. उन्होंने उससे पूछा कि क्या उनके लेंस से भी कोई अधिक पावर का लेंस आता है, जिससे हाफ एमएम की चीज पर कुछ लिखा जा सके. वहां उन्हें पता चला कि एक लेंस है जो विशेष रूप से आर्डर करने पर आता है. उस लेंस को अंकुश ने मंगवाया और उसी के सहारे से उस मूर्ति को तैयार किया.
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छोटी प्रतिमा बनाने के दौरान ही अंकुश ने छोटी चित्रकारी करने का भी प्रयास करना चाहा. लेकिन उनकी यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह किसमें इस चित्रकारी को बनाएं. इसी दौरान उन्होंने कई जगह देखा कि कुछ लोग चावल में नाम लिखते हैं. इससे उन्होंने चावल में ताजमहल, पीसा की मीनार, स्टैचू ऑफ लिबर्टी, महापुरुषों और देबी देवतोओं के चित्र बनाने शुरू किए.
छोटी प्रतिमा बनाने के दौरान ही अंकुश ने छोटी चित्रकारी करने का भी प्रयास करना चाहा. लेकिन उनकी यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह किसमें इस चित्रकारी को बनाएं. इसी दौरान उन्होंने कई जगह देखा कि कुछ लोग चावल में नाम लिखते हैं. इससे उन्होंने चावल में ताजमहल, पीसा की मीनार, स्टैचू ऑफ लिबर्टी, महापुरुषों और देबी देवतोओं के चित्र बनाने शुरू किए.
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धीरे-धीरे उनकी कला में इतना निखार आया कि उन्होंने एक ही चावल में 7-8 देवी देवताओं के चित्र बना डाले.
धीरे-धीरे उनकी कला में इतना निखार आया कि उन्होंने एक ही चावल में 7-8 देवी देवताओं के चित्र बना डाले.
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इतना ही नही अंकुश ने बताया कि चावल के दाने में पेंटिंग करने के लिए दुनिया में अभी तक कोई ब्रश नहीं बना है. उन्होंने चावल के दाने में पेंटिंग करने के लिए गिलहरी के बाल का उपयोग किया. उसके बाद धीरे-धीरे वह पेटिंग ब्रश के एक से दो बाल का उपयोग करके पेंटिंग्स तैयार करने लगे.
इतना ही नही अंकुश ने बताया कि चावल के दाने में पेंटिंग करने के लिए दुनिया में अभी तक कोई ब्रश नहीं बना है. उन्होंने चावल के दाने में पेंटिंग करने के लिए गिलहरी के बाल का उपयोग किया. उसके बाद धीरे-धीरे वह पेटिंग ब्रश के एक से दो बाल का उपयोग करके पेंटिंग्स तैयार करने लगे.
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अंकुश भिलाई स्टील प्लांट के कर्मचारी हैं. काई साल पहले जब वह दल्लीराजहरा में रहते थे तो उन्होंने देखा कि वहां आयरनओर के बीच एक सफेद रंग साफ्ट स्टोन निकलता है. उस स्टोन को उन्होंने तरासा और एक इंच छोटी महात्मा गांधी की प्रतिमा बनाई. उस प्रतिमा को देखकर सभी लोगों ने उन्हें काफी सराहा. अंकुश का हौसला वहां से बढ़ा. इसके बाद उन्होंने उससे भी छोटी प्रतिमा बनाने का प्रयास किया. लगभग डेढ़ साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने 0.4 एमएम की गणेश प्रतिमा तैयार की. यह प्रतिमा बाल की मोटाई के बराबर है.
अंकुश भिलाई स्टील प्लांट के कर्मचारी हैं. काई साल पहले जब वह दल्लीराजहरा में रहते थे तो उन्होंने देखा कि वहां आयरनओर के बीच एक सफेद रंग साफ्ट स्टोन निकलता है. उस स्टोन को उन्होंने तरासा और एक इंच छोटी महात्मा गांधी की प्रतिमा बनाई. उस प्रतिमा को देखकर सभी लोगों ने उन्हें काफी सराहा. अंकुश का हौसला वहां से बढ़ा. इसके बाद उन्होंने उससे भी छोटी प्रतिमा बनाने का प्रयास किया. लगभग डेढ़ साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने 0.4 एमएम की गणेश प्रतिमा तैयार की. यह प्रतिमा बाल की मोटाई के बराबर है.

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