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Chhattisgarh: मंदिरों के शहर शिवरीनारायण में माघ पूर्णिमा पर लगा मेला, भगवान राम ने यहीं चखे थे शबरी के जूठे बेर

शिवरीनारायण में माघ पूर्णिमा पर लगा मेला

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प्रेम, आस्था और विश्वास के प्रतीक माता शबरी की नगरी शिवरीनारायण में 16 फरवरी से माघी पूर्णिमा मेले का आयोजन किया जा रहा है. माघी पूर्णिमा से शुरू होने वाला मेला महाशिवरात्रि तक आयोजित किया जाएगा. भगवान नर नारायण के दर्शन के लिए श्रद्धालु शिवरीनारायण पहुंचने लगे है. श्रद्धालुओ में भगवान के प्रति आस्था और विश्वास के साथ प्रेम देखने को मिल रहा है.लोग 30 किलोमीटर दूर अपने गांव से अपने परिवार के साथ लेटकर शिवरीनारायण पहुंच रहे है. ये ईश्वर का ही चमत्कार है कि इतनी लंबी, कठिन यात्रा के बाद भी उनके शरीर में थकान नहीं दिख रही है. नर नारायण के दर्शन के लिए पहुंच रहे भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा है.
प्रेम, आस्था और विश्वास के प्रतीक माता शबरी की नगरी शिवरीनारायण में 16 फरवरी से माघी पूर्णिमा मेले का आयोजन किया जा रहा है. माघी पूर्णिमा से शुरू होने वाला मेला महाशिवरात्रि तक आयोजित किया जाएगा. भगवान नर नारायण के दर्शन के लिए श्रद्धालु शिवरीनारायण पहुंचने लगे है. श्रद्धालुओ में भगवान के प्रति आस्था और विश्वास के साथ प्रेम देखने को मिल रहा है.लोग 30 किलोमीटर दूर अपने गांव से अपने परिवार के साथ लेटकर शिवरीनारायण पहुंच रहे है. ये ईश्वर का ही चमत्कार है कि इतनी लंबी, कठिन यात्रा के बाद भी उनके शरीर में थकान नहीं दिख रही है. नर नारायण के दर्शन के लिए पहुंच रहे भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा है.
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छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल में प्रमुख स्थान रखने वाला टेंपल सिटी यानी शिवरीनारायण में 16 फरवरी से माघी पूर्णिमा के अवसर पर मेला की शुरुआत हो गई थी. माघी पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक आयोजित मेला में लाखो श्रद्धालु दर्शन करेंगे.
छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल में प्रमुख स्थान रखने वाला टेंपल सिटी यानी शिवरीनारायण में 16 फरवरी से माघी पूर्णिमा के अवसर पर मेला की शुरुआत हो गई थी. माघी पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक आयोजित मेला में लाखो श्रद्धालु दर्शन करेंगे.
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तेरस को मठ मंदिर के मठाधीश और राज्य गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष महंत राम सुंदर दास महाराज ने गादी पूजा कर देर रात भगवान शिवरीनारायण का दर्शन किया.
तेरस को मठ मंदिर के मठाधीश और राज्य गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष महंत राम सुंदर दास महाराज ने गादी पूजा कर देर रात भगवान शिवरीनारायण का दर्शन किया.
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इस मेले की सबसे खास बात यह है कि यहां श्रद्धालु जगन्नाथ प्रभु पर आस्था रखते हुए अपनी मनोकामना पूरी होने पर नारियल लेकर जमीन लेटकर मंदिर दर्शन करने पहुंचते हैं.
इस मेले की सबसे खास बात यह है कि यहां श्रद्धालु जगन्नाथ प्रभु पर आस्था रखते हुए अपनी मनोकामना पूरी होने पर नारियल लेकर जमीन लेटकर मंदिर दर्शन करने पहुंचते हैं.
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शिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ का एक नगर है, जो
शिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ का एक नगर है, जो "छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी" के नाम से विख्यात है, यह बिलासपुर से 64 किलोमीटर, राजधानी रायपुर से बलौदाबाजार से होकर 120 किलोमीटर, जांजगीर जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर, कोरबा जिला मुख्यालय से 110 किलोमीटर और रायगढ़ जिला मुख्यालय से सारंगढ़ होकर 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
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सौंदर्य और चतुर्भुजी विष्णु की मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है. हर युग में इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है.
सौंदर्य और चतुर्भुजी विष्णु की मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है. हर युग में इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है.
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भगवान श्रीराम और लक्ष्मण शबरी के जूठे बेर यहीं खाए थे और उन्हें मोक्ष प्रदान करके इस घनघोर दंडकारण्य वन में आर्य संस्कृति के बीज प्रस्फुटित किए थे.  शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए
भगवान श्रीराम और लक्ष्मण शबरी के जूठे बेर यहीं खाए थे और उन्हें मोक्ष प्रदान करके इस घनघोर दंडकारण्य वन में आर्य संस्कृति के बीज प्रस्फुटित किए थे. शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए "शबरी-नारायण" नगर बसा है. भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं.शायद यही वजह है कि इसे "गुप्त तीर्थधाम" कहा गया है.
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भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था. प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं. प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से जाने वाला यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द रहा है. यहां शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति रही है. छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है. इसे नारायण क्षेत्र या पुरूषोत्तम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यह क्षेत्र शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है.
भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था. प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं. प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से जाने वाला यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द रहा है. यहां शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति रही है. छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है. इसे नारायण क्षेत्र या पुरूषोत्तम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यह क्षेत्र शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है.
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छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से 45 किमी की दूरी पर मैकल पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य शिवनाथ, जोंक और महानदी के संगम पर स्थित शिवरीनारायण को तीर्थ नगरी प्रयाग जैसी मान्यता मिली है. यहाँ पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध शिवरीनारायण मंदिर है.  ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम को यहीं पर शबरी ने बेर खिलाये थे. अत: शबरी के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर मे इसका नाम शिवरीनारायण पड गया. यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना प्राचिन मंदिर भी है. पर्यटन की दृष्टी से यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां अत्यंत प्राचीन मन्दिर समूह हैं.
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से 45 किमी की दूरी पर मैकल पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य शिवनाथ, जोंक और महानदी के संगम पर स्थित शिवरीनारायण को तीर्थ नगरी प्रयाग जैसी मान्यता मिली है. यहाँ पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध शिवरीनारायण मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम को यहीं पर शबरी ने बेर खिलाये थे. अत: शबरी के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर मे इसका नाम शिवरीनारायण पड गया. यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना प्राचिन मंदिर भी है. पर्यटन की दृष्टी से यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां अत्यंत प्राचीन मन्दिर समूह हैं.

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