In Pics: नक्सलियों के मंसूबे को नाकाम कर रहे BDS के डॉग्स, कई घटनाओं में CRPF जवानों की बचाई जान
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में पिछले तीन दशकों से अर्धसैनिक बलों को नक्सल मोर्चे पर तैनात किया गया है. इनमें सबसे ज्यादा आंतरिक सुरक्षा में माहिर सीआरपीएफ (CRPF) के जवानों की बड़ी संख्या में तैनाती की गई है. वहीं जवानों के साथ सीआरपीएफ के विंग्स में शामिल BDS के डॉग्स टीम ने इस इलाके में 2 हजार किलो विस्फोटक बरामद कर नक्सलियों की बड़ी घटनाओं को नाकाम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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View In Appदेश के अलग-अलग इलाकों में तैनात CRPF के प्रशिक्षित डॉग्स ने लगभग 5 हजार किलोग्राम विस्फोटक बरामद किया. साथ ही कई सीआरपीएफ के जवानों की भी जान इन डॉग्स ने बचाई है. केवल बस्तर में ही 2 हजार किलोग्राम विस्फोटक अलग-अलग इलाकों से BDS की टीम को डॉग्स की मदद से खोज निकालने में सफलता हासिल हुई है.
इन प्रशिक्षित डॉग्स ने एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान कई बार नक्सलियों के मंसूबे पर पानी फेर दिया, जिससे नक्सलियों की बड़ी-बड़ी घटनाएं विफल साबित हुई है. बस्तर में तैनात सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट और BDS के प्रभारी महेंद्र कुमार हेगड़े ने बताया कि बस्तर संभाग के पूरे 7 जिलों में सीआरपीएफ के BDS की टीम के साथ 200 से अधिक प्रशिक्षित डॉग्स शामिल किए गए.
ये सभी डॉग्स जो बेंगलुरु में मौजूद सीआरपीएफ के ट्रेनिंग सेंटर से पूरी तरह से प्रशिक्षित होकर आए हैं. यह डॉग्स बस्तर में नक्सलियों द्वारा जमीन में छुपाए गए विस्फोटक को डिटेक्ट करने के साथ ही नक्सल ऑपरेशन के दौरान नक्सलियों पर छिपकर अटैक करने के साथ ही उनके वेपंस भी उठाकर लाने के लिए पूरी तरह से ट्रेंड है.
यही नहीं पिछले कुछ सालों से बस्तर में कई नक्सल ऑपरेशन के दौरान वेल ट्रेंड इन डॉग्स ने कई जवानों की जान भी बचाई है और इस दौरान कुछ घटनाओ में विस्फोट को डिटेक्ट करते हुए कुछ डॉग्स ने अपनी जान भी दे दी. BDS के प्रभारी ने बताया कि बस्तर में जर्मन शेफर्ड, लेब्रा डॉग, डॉबरमेंन के साथ ही मुख्य रूप से दो तरह के नस्ल के श्वान को नक्सल विरोधी अभियान में शामिल किया गया है जिसमें बेल्जियम शेफर्ड और डच शेफर्ड बड़ी संख्या में बस्तर और कश्मीर में तैनात हैं.
इन डॉग्स को हमले के पहले चेतावनी, आईईडी विस्फोटक का पता लगाने और राष्ट्र विरोधी तत्वों से निपटने के लिए पूरी तरह से ट्रेंड किया गया है. इन डॉग्स को मुख्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में भी तैनात किया जाता है. प्रभारी ने बताया कि आमतौर पर छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर जैसे उग्रवादी वामपंथी ग्रसित क्षेत्रों में इस बेल्जियम शेफर्ड और डच शेफर्ड को तैनात किया जाता है.
यह दोनों ही डॉग्स मौसम की स्थिति के प्रतिकूल होते हैं और इनके ड्यूटी का समय भी काफी लंबा होता है. दोनों ही श्वान नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों की आवश्यकता को पूरी कर सकते हैं. प्रभारी ने बताया कि इन डॉग्स को प्रशिक्षित करने के लिए बकायदा उनके जन्म के 30 दिन बाद ही हैंडलर को सौंप दिया जाता है और 2 महीने के प्रशिक्षण के बाद हैंडलर और डॉग को अलग स्तर का प्रशिक्षण देने के लिए ट्रेंड किया जाता है.
हर एक डॉग्स के लिए दो हैंडलर होते हैं ताकि एक की गैरमौजूदगी में दूसरा इसे संभाल सके. सीआरपीएफ में एक केनाइन के लिए भर्ती और इनके रिटायर्ड के प्रावधानों के बारे में बताते हुए प्रभारी महेंद्र हेगड़े ने कहा कि प्रशिक्षण पूरी होने के बाद डॉग के हैंडलर को ऐसे क्षेत्रों में तैनात किया जाता है जहां वह बेहतर तरीके से काम कर सके.
इन डॉग की रिटायरमेंट के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी हैं कि डॉग के 8 साल पूरे होने पर उसकी फिटनेस की जांच के लिए बोर्ड का गठन किया जाता है और यदि वह फिट पाया जाता है तो एक साल की अवधि के लिए उसका कार्य बढ़ाया जाता है. जिसके बाद उसके रिटायरमेंट के बाद भी उसके पालन-पोषण का पूरा दायित्व सीआरपीएफ उठाती है.
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