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Buddha Purnima पर दलाई लामा ने लोगों को दिया संदेश, देखें तस्वीरें

बुद्ध पूर्णिमा

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छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में हिल स्टेशन मैनपाट है. यहां पर 7 कैंप में कई तिब्बती परिवार निवास करते हैं. यहां की जलवायु, प्राकृतिक खूबसूरती और तिब्बतियों की बसाहट के कारण इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है. ऐसे में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ के शिमला में स्थापित 4 तिब्बत टेंपल में पूरे तिब्बती विधि विधान से पूजा-अर्चना की गई.
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में हिल स्टेशन मैनपाट है. यहां पर 7 कैंप में कई तिब्बती परिवार निवास करते हैं. यहां की जलवायु, प्राकृतिक खूबसूरती और तिब्बतियों की बसाहट के कारण इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है. ऐसे में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ के शिमला में स्थापित 4 तिब्बत टेंपल में पूरे तिब्बती विधि विधान से पूजा-अर्चना की गई.
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बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर तिब्बतियों के बीच खासा उत्साह भी नजर आया. इस मौके पर बुद्धिस्ट कम्युनिटी के लोगों को दलाई लामा ने संबोधित भी किया.
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर तिब्बतियों के बीच खासा उत्साह भी नजर आया. इस मौके पर बुद्धिस्ट कम्युनिटी के लोगों को दलाई लामा ने संबोधित भी किया.
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सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा की सुबह तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित धर्मस्थान (पैलेस) से मैनपाट में निवालकर बुद्धिस्ट कम्युनिटी के लोगों के साथ अन्य उपस्थित लोगों को वर्चुअल संबोधित किया. जिसके बाद तिब्बत समाज के लोगों ने परंपरा के मुताबिक दान पुण्य, मवेशियों को खाना खिलाने और जंगल में जाकर चींटी और कीड़े मकोड़ों को भोजन कराया.
सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा की सुबह तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित धर्मस्थान (पैलेस) से मैनपाट में निवालकर बुद्धिस्ट कम्युनिटी के लोगों के साथ अन्य उपस्थित लोगों को वर्चुअल संबोधित किया. जिसके बाद तिब्बत समाज के लोगों ने परंपरा के मुताबिक दान पुण्य, मवेशियों को खाना खिलाने और जंगल में जाकर चींटी और कीड़े मकोड़ों को भोजन कराया.
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तिब्बत मंदिरों को मोनेस्ट्री भी कहा जाता है. जहां गौतम बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की जाती है. छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मैनपाट में 7 कैंपो में से 4 में तिब्बत मंदिर हैं. इनमें टांगीनाथ इलाके के कैंप नंबर 6 में बना मंदिर इन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है. इस मंदिर की दीवारों में तिब्बतियों की कला संस्कृति की झलक देखने को मिल सकती है. मंदिर में तिब्बत कल्चर के साथ तिब्बत वास्तुकला की अद्भुत झलक देखने को मिलती है.
तिब्बत मंदिरों को मोनेस्ट्री भी कहा जाता है. जहां गौतम बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की जाती है. छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मैनपाट में 7 कैंपो में से 4 में तिब्बत मंदिर हैं. इनमें टांगीनाथ इलाके के कैंप नंबर 6 में बना मंदिर इन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है. इस मंदिर की दीवारों में तिब्बतियों की कला संस्कृति की झलक देखने को मिल सकती है. मंदिर में तिब्बत कल्चर के साथ तिब्बत वास्तुकला की अद्भुत झलक देखने को मिलती है.
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इस मंदिर में गौतम बुद्ध के सुनहरे रंग की प्रतिमा स्थापित की गई है. जिसकी ऊंचाई 20 फीट है. खास बात ये है कि इस प्रतिमा के निर्माण में अन्य निर्माण सामग्री के साथ इलाके में मिलने वाले बाक्साइट के पत्थर का चूरा भी मिक्स किया गया है और करीब 10 वर्ष पहले बने इस मंदिर की प्रतिमा का निर्माण का काम भूटान और नेपाल के मूर्तिकारों ने किया है. इसके अलावा तीन अन्य तिब्बती मंदिर है. जिसमें एक करीब 55 साल पुराना है.
इस मंदिर में गौतम बुद्ध के सुनहरे रंग की प्रतिमा स्थापित की गई है. जिसकी ऊंचाई 20 फीट है. खास बात ये है कि इस प्रतिमा के निर्माण में अन्य निर्माण सामग्री के साथ इलाके में मिलने वाले बाक्साइट के पत्थर का चूरा भी मिक्स किया गया है और करीब 10 वर्ष पहले बने इस मंदिर की प्रतिमा का निर्माण का काम भूटान और नेपाल के मूर्तिकारों ने किया है. इसके अलावा तीन अन्य तिब्बती मंदिर है. जिसमें एक करीब 55 साल पुराना है.
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चीन ने जब तिब्बत पर कब्जा कर लिया था तब काफी संख्या में तिब्बती परिवार भारत में शरण लेने पहुंच गए थे. इनमें से कुछ परिवार करीब 60 के दशक में तिब्बत जैसी वादियों वाले मैनपाट में बसाए गए थे. उस समय मैनपाट सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर था, तभी 1965 के आसपास मंदिर का निर्माण शुरू किया. किसी निर्माण के लिए बालू, ईंट, गिट्टी के लिए आज भी वहां के लोग तराई में बसे इलाकों या जिला मुख्यालय अम्बिकापुर पर डिपेंड हैं, तो उस वक्त मंदिर निर्माण में कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा.
चीन ने जब तिब्बत पर कब्जा कर लिया था तब काफी संख्या में तिब्बती परिवार भारत में शरण लेने पहुंच गए थे. इनमें से कुछ परिवार करीब 60 के दशक में तिब्बत जैसी वादियों वाले मैनपाट में बसाए गए थे. उस समय मैनपाट सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर था, तभी 1965 के आसपास मंदिर का निर्माण शुरू किया. किसी निर्माण के लिए बालू, ईंट, गिट्टी के लिए आज भी वहां के लोग तराई में बसे इलाकों या जिला मुख्यालय अम्बिकापुर पर डिपेंड हैं, तो उस वक्त मंदिर निर्माण में कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा.
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जानकार बताते हैं कि मैनपाट के इस सबसे पुराने मंदिर के निर्माण के लिए तिब्बतियों ने नींव में बाक्साइट पत्थर का उपयोग किया और फिर ऊपरी ढांचे के लिए किसी दूरस्थ स्थान पर ईंट बनाई साथ ही तराई के गांवों में बहने वाले बरसाती नाले से बालू लेकर आए. तब जाकर तिब्बत मंदिर का निर्माण हुआ. खास बात ये है कि तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा का ये सबसे पसंदीदा मोनेस्ट्री है. इसलिए वो जब भी मैनपाट आए, यहीं पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया.
जानकार बताते हैं कि मैनपाट के इस सबसे पुराने मंदिर के निर्माण के लिए तिब्बतियों ने नींव में बाक्साइट पत्थर का उपयोग किया और फिर ऊपरी ढांचे के लिए किसी दूरस्थ स्थान पर ईंट बनाई साथ ही तराई के गांवों में बहने वाले बरसाती नाले से बालू लेकर आए. तब जाकर तिब्बत मंदिर का निर्माण हुआ. खास बात ये है कि तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा का ये सबसे पसंदीदा मोनेस्ट्री है. इसलिए वो जब भी मैनपाट आए, यहीं पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया.

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