Holi 2023: छत्तीसगढ़ के इन गांवों में 3 दिन पहले होली खेलने की परंपरा, 1 सप्ताह तक चलता है त्योहार
दशकों से चली आ रही परंपरा का पालन करते हुए सूरजपुर जिले के ग्राम मोहरसोप, महुली और कछवारी के ग्रामीणों ने सोमवार को जमकर होली खेली. ग्रामीणों की अनोखी होली में बड़ी संख्या में आसपास क्षेत्रों के लोग शामिल हुए. ग्रामीण रविवार से ही होली की मस्ती में डूबे हैं. गांव में आगामी एक सप्ताह तक रंग अबीर के साथ फाग का दौर चलता रहेगा. जिले के दूरस्थ अंचल विकासखण्ड ओड़गी के पांच गांवों में ग्रामीण होली के 3 से 5 दिन पूर्व रंगों का त्यौहार मनाते हैं.
Download ABP Live App and Watch All Latest Videos
View In Appदरअसल, लंबे समय तक महामारी सहित अन्य विपत्तियों का सामना करने के बाद ग्रामीणों ने वर्ष 1960 में 5 दिन पूर्व होली मनाने का निर्णय लिया था. मान्यता है कि पूर्वजों द्वारा शुरू की गई इस परंपरा से ग्रामीणों को सभी विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिल गई. इस बीच कई बार एक साथ होली मनाने की चर्चा है, लेकिन गांव के बैगा और बुजुर्ग तैयार नहीं हुए. वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार ग्राम मोहरसोप, महुली और कछवारी के ग्रामीण एक ही दिन होली मनाते हैं.
तीनों गांव के बैगा आपस में सलाह कर होलिका दहन और होली मनाने की तिथि निर्धारित करते हैं. कभी यह तिथि 3 दिन पहले की तो कभी 4 दिन और 5 दिन पहले निर्धारित की जाती है. बैगा द्वारा तिथि निर्धारित करने के बाद गांव के पुरोहित होलिका जलाने का समय निर्धारित करते हैं. रविवार को देर शाम ग्रामीणों ने अलग-अलग स्थानों पर होलिका जलाई. ग्रामीण शाम में लकड़ी, गोबर का कंडा, पूजा सामग्री और ढोल-मजीरा लेकर पहुंचे. बैगा की उपस्थिति में होलिका सजाने के बाद ग्रामीणों ने पूजा की और परंपरानुसार होलिका जलाई.
इस दौरान ग्रामीण देर रात फाग गाते रहे. अंत में होलिका की राख उड़ाकर ग्रामीणों ने क्षेत्रवासियों की अराध्य गढ़वतिया देवी की प्रार्थना कर अपने घर लौटे. सोमवार को ग्रामीण सुबह से ही होली के उत्साह में डूबे रहे. ग्रामीणों रंग गुलाल लगाकर एक-दूसरे के गले मिले. इस दौरान बच्चों और युवाओं ने भारी उत्साह के साथ होली खेली. ग्राम पंचायत कुदरगढ़ और बेदमी में भी पहले से ही होली मनाने की परंपरा है.
ग्राम कुदरगढ़ में इस बार 26 फरवरी को होली मनाई गई, जबकि बेदमी में मंगलवार को होलिका जलाई जाएगी और बुधवार को होली खेली जाएगी. ग्रामीण होलिका जलाने के बाद बारी-बारी से राख को उड़ाते हैं. इसके लिए ग्रामीण होलिका जलाने के बाद देर रात तक फाग गाते हैं. होलिका की राख ठंडी होने पर पहले बैगा फिर अन्य ग्रामीण बारी-बारी से होलिका की राख उड़ाते हैं.
मान्यता है कि होलिका की राख उड़ाने के बाद गांव में एक साल तक कोई विघ्न बाधा नहीं आती न ही किसी को गंभीर बीमारी होती है. ग्रामीणों का कहना है कि पहले ग्रामीण निर्धारित तिथि को ही होली मनाते थे. इस दौरान होलिका में स्वयं से आग लग जाती. ग्रामीणों ने गढ़वतिया देवी का प्रकोप मानकर पहले ही होली मनाने लगे.
होली के दिन ग्रामीण एक साथ ढोल-मजीरा के साथ पूरे गांव का भ्रमण करते हैं और घर-घर जाकर फाग गाते हैं. इस दौरान ग्रामीण जमकर गुलाल उड़ाते हैं और ग्रामीणों को घर में बने पकवान खिलाते हैं. इस अनोखी होली में बड़ी संख्या में आसपास के ग्रामीण शामिल होकर रंग-गुलाल से सराबोर होते है.
- - - - - - - - - Advertisement - - - - - - - - -