In Photos: क्यों खास है यह 600 साल पुराना रियासतकालीन बस्तर का होलिका दहन, देखें तस्वीरें
इसमें बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव और हजारों ग्रामीण इकट्ठे हुए जिसके बाद होलिका दहन की रस्म निभाई गई. दरअसल बस्तर में होलिका दहन की कहानी 600 साल पुरानी है. रियासत काल से ही जगदलपुर शहर से लगे माड़पाल गांव में सबसे बड़े होलिका दहन की रस्म निभाई जाती है, और जिसके बाद पूरे संभाग में होलिका दहन होती है.
Download ABP Live App and Watch All Latest Videos
View In Appखास बात यह है कि बस्तर की होलिका दहन की कहानी भक्त प्रह्लाद से नहीं बल्कि बस्तर की देवी देवताओं से जुड़ी हुई हैं, आइए जानते हैं कि बस्तर में निभाई जाने वाली होलिका दहन की परंपरा देश के अन्य जगहों से सबसे अलग क्यों है.
दरअसल बस्तर के रियासत कालीन होली में दंतेवाड़ा की फागुन मंडई मेला, माड़पाल गांव की होली और जगदलपुर की जोड़ा होली की परंपरा आज भी 600 सालों से निभाई जा रही है,खास बात यह है कि बस्तर की होली में भक्त प्रहलाद और होलिका गौण हो जाते हैं. इनकी जगह पर कृष्ण के रूप में विष्णु नारायण और विष्णु के कलयुग के अवतार कलकी के साथ दंतेश्वरी माता, मावली माता और स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर होलिका दहन कर 600 साल पुरानी परंपरा के साथ रंगों का पर्व होली मनाया जाता है.
दरअसल बस्तर संभाग में सबसे पहले होलिका दहन दंतेवाड़ा के फागुन मंडई मेले में जलाया जाता है यहा लकड़ी और कंडा से नही बल्कि बस्तर में पाई जाने वाली ताड़ पेड़ के पत्तो से होलिका दहन किया जाता है जिसके बाद होली के दिन इसकी राख से होली खेलने की परंपरा है. दंतेवाड़ा में सबसे पहले होलिका दहन के बाद बस्तर जिले के माड़पाल गांव में दूसरी होली जलाई जाती है, जिसमें बस्तर राज परिवार के सदस्य के साथ हजारों की संख्या में ग्रामीण मौजूद रहते हैं.
इतिहासकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि बस्तर के तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे और 1408 ई में महाराजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के सेवक के रूप में रथपति की उपाधि का सौभाग्य प्राप्त कर बस्तर लौटते वक्त फागुन पूर्णिमा के दिन उनका काफिला माड़पाल गांव पहुंचा था.
तब उन्हें इस दिन के महत्व का एहसास हुआ कि फागुन पूर्णिमा है और आज के दिन भगवान जगन्नाथ धाम पुरी में हर्षोल्लास के साथ राधा कृष्ण जमकर होली खेलते हैं तो राजा ने माड़पाल में होली जलाकर उत्सव मनाने का निर्णय लिया और तब से माड़पाल में होलिका दहन की परंपरा 600सालो से निभाई जाती है, आज भी माड़पाल होलिका दहन में राज परिवार के सदस्य भाग लेते हैं. इसके बाद संभाग के अलग-अलग जगहों में होलिका दहन की रस्म निभाई जाती है.
खास बात यह है कि बस्तर की होली भक्त प्रह्लाद से नहीं बल्कि देवी-देवताओं से जुड़ी हुई है. माड़पाल गांव की होलिका दहन के बाद बस्तर संभाग में होलिका दहन किए जाने की परंपरा आज भी जारी है.
माड़पाल में होली जलने के बाद उस होली की आग को 20 कि. मी दूर जगदलपुर शहर के मावली मंदिर के सामने जलाए जाने वाली जोड़ा होलिका दहन के लिए लाई जाती है. जगदलपुर में जोड़ा होलिका दहन के बाद ही बस्तर संभाग के अन्य जगहों पर होलिका दहन किया जाता है.
शहर के मावली मंदिर के सामने जलाए जाने वाली जोड़ी होली का दहन का अपना अलग ही महत्व है, क्योंकि एक मावली माता को और दूसरी होली को जगन्नाथ भगवान को समर्पित किया जाता है. देर रात भी इस रस्म को बखूबी निभाया गया और धूमधाम से मावली माता और दंतेश्वरी माता के डोली का विधि विधान से पूजा-अर्चना कर मंदिर परिसर में भ्रमण कराकर होलिका का दहन किया गया.
इस दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे. इस रस्म के बाद शहर के प्रमुख लोग दूसरे दिन राजा से मुलाकात करने राजमहल जाते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं और धूमधाम से होली का पर्व मनाते हैं.
- - - - - - - - - Advertisement - - - - - - - - -