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Durg: 20 सालों से 'झोपड़ी' में चल रहा छत्तीसगढ़ का ये बैंक, आसानी से मिल जाता है लोन

Bank: छत्तीसगढ़ का एक बैंक बीस वर्षों से झोपड़ी में संचालित हो रहा है. हैरानी की बात है कि बैंक का सालाना टर्नओवर 28 करोड रुपए है. बैंक की शुरुआत 1998 में 35 लोगों के समूह ने मिलकर की थी.

Bank: छत्तीसगढ़ का एक बैंक बीस वर्षों से झोपड़ी में संचालित हो रहा है. हैरानी की बात है कि बैंक का सालाना टर्नओवर 28 करोड रुपए है. बैंक की शुरुआत 1998 में 35 लोगों के समूह ने मिलकर की थी.

(छत्तीसगढ़ का झोपड़ी बैंक बना चुका लोन लेनेवालों को अमीर)

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भारत डिजिटल इंडिया की ओर कदम रख रहा है. लगभग हर काम अब डिजिटल हो रहा है. डिजिटल इंडिया के जमाने में लोग अब हाईटेक तरीके से काम कर रहे हैं. बैंक भी डिजिटल के दौर से बहुत आगे निकल चुके हैं. घर बैठे आपके फोन या लैपटॉप में सारी सुविधाएं उपलब्ध है. छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला में एक बैंक का कामकाज 20 वर्षों से झोपड़ी में चल रहा है. हैरानी की बात है कि बैंक का सालाना टर्नओवर 28 करोड रुपए हैं.
भारत डिजिटल इंडिया की ओर कदम रख रहा है. लगभग हर काम अब डिजिटल हो रहा है. डिजिटल इंडिया के जमाने में लोग अब हाईटेक तरीके से काम कर रहे हैं. बैंक भी डिजिटल के दौर से बहुत आगे निकल चुके हैं. घर बैठे आपके फोन या लैपटॉप में सारी सुविधाएं उपलब्ध है. छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला में एक बैंक का कामकाज 20 वर्षों से झोपड़ी में चल रहा है. हैरानी की बात है कि बैंक का सालाना टर्नओवर 28 करोड रुपए हैं.
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झोपड़ी में बैंक पुराना बस स्टैंड के पास मौजूद है. सामान्य तौर पर देखने से बैंक का पता नहीं चलेगा. एक झोपड़ी पर बैंक का बोर्ड देखने से पता चलेगा. आपको बता दें कि बैंक लगातार 20 वर्षों से झोपड़ी में संचालित हो रहा है. बैंक की शुरुआत 1998 में हुई थी. 35 लोगों के समूह ने मिलकर बैंक का गठन किया था. आपस में चंदा इकट्ठा कर लगभग साढ़े सत्रह हजार से लेनदन की प्रक्रिया शुरू की गई थी. ताज्जुब की बात है आज भी बैंक झोपड़ी में ही चल रहा है.
झोपड़ी में बैंक पुराना बस स्टैंड के पास मौजूद है. सामान्य तौर पर देखने से बैंक का पता नहीं चलेगा. एक झोपड़ी पर बैंक का बोर्ड देखने से पता चलेगा. आपको बता दें कि बैंक लगातार 20 वर्षों से झोपड़ी में संचालित हो रहा है. बैंक की शुरुआत 1998 में हुई थी. 35 लोगों के समूह ने मिलकर बैंक का गठन किया था. आपस में चंदा इकट्ठा कर लगभग साढ़े सत्रह हजार से लेनदन की प्रक्रिया शुरू की गई थी. ताज्जुब की बात है आज भी बैंक झोपड़ी में ही चल रहा है.
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फर्क सिर्फ टर्नओवर में आया है. अब बैंक का सालाना टर्नओवर 28 करोड़ रुपये हो गया है. झोपड़ी बैंक बहुत ही कम ब्याज पर रेहड़ी पटरी वालों को लोन उपलब्ध कराता है. मात्र एड्रेस प्रूफ और इस बैंक के खाताधारक की गारंटी से लोन मिल जाता है. बैंककर्मी खुद प्रतिदिन लोगों के पास जाकर पैसा वसूलते हैं. पुराने ढर्रे पर चल रहा बैंक लोगों को स्वावलम्बन की सीख देता है. बैंक में अब तक तीन हजार दो सौ लोगों ने खाता खोल रखा है.
फर्क सिर्फ टर्नओवर में आया है. अब बैंक का सालाना टर्नओवर 28 करोड़ रुपये हो गया है. झोपड़ी बैंक बहुत ही कम ब्याज पर रेहड़ी पटरी वालों को लोन उपलब्ध कराता है. मात्र एड्रेस प्रूफ और इस बैंक के खाताधारक की गारंटी से लोन मिल जाता है. बैंककर्मी खुद प्रतिदिन लोगों के पास जाकर पैसा वसूलते हैं. पुराने ढर्रे पर चल रहा बैंक लोगों को स्वावलम्बन की सीख देता है. बैंक में अब तक तीन हजार दो सौ लोगों ने खाता खोल रखा है.
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बैंक के अध्यक्ष अब्दुल रऊफ कुरैशी बताते हैं कि बैंक फुटपाथ कारोबारियों को दस्तावेज नहीं होने के कारण लोन नहीं देते. वर्ष 1998 में मैं जिला अल्पकल्याण समिति का सदस्य था. शासन ने गरीबों को लोन देने की स्कीम लाई थी. लेकिन बैंकों ने रुचि नहीं दिखाई. उन्होंने ने बताया कि एक दिन सब्जी कारोबारी बड़े बैंक से लोन लेने गया. लेकिन उस बैंक से लोन नहीं मिला. उसे कारोबार के लिए साहूकारों से पैसे उधार लेने पड़ते थे.
बैंक के अध्यक्ष अब्दुल रऊफ कुरैशी बताते हैं कि बैंक फुटपाथ कारोबारियों को दस्तावेज नहीं होने के कारण लोन नहीं देते. वर्ष 1998 में मैं जिला अल्पकल्याण समिति का सदस्य था. शासन ने गरीबों को लोन देने की स्कीम लाई थी. लेकिन बैंकों ने रुचि नहीं दिखाई. उन्होंने ने बताया कि एक दिन सब्जी कारोबारी बड़े बैंक से लोन लेने गया. लेकिन उस बैंक से लोन नहीं मिला. उसे कारोबार के लिए साहूकारों से पैसे उधार लेने पड़ते थे.
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साहूकार हर दिन 10-15 फीसदी ब्याज के साथ पैसा वसूलता था. कभी-कभी पैसे नहीं देने पर अपशब्द भी सुनाता और मारपीट भी करता. रऊफ का कहना है कि लोगों की परेशानियां देखकर ही सस्ती दर पर गरीबों को लोन उपलब्ध करानेवाला बैंक खोलने का विचार आया. उसी साल बैकिंग क्रेडिट सोसायटी की शुरुआत की.
साहूकार हर दिन 10-15 फीसदी ब्याज के साथ पैसा वसूलता था. कभी-कभी पैसे नहीं देने पर अपशब्द भी सुनाता और मारपीट भी करता. रऊफ का कहना है कि लोगों की परेशानियां देखकर ही सस्ती दर पर गरीबों को लोन उपलब्ध करानेवाला बैंक खोलने का विचार आया. उसी साल बैकिंग क्रेडिट सोसायटी की शुरुआत की.
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एड्रेस प्रूफ और तीन गारंटर के आधार पर ही लोन देना शुरू किया. लोन देने का सिलसिला आज भी जारी है. बैंक की मदद से कई बड़े कारोबारी बन गए हैं. रऊफ बताते हैं कि अल्पसंख्यक बैंक सालाना 15 प्रतिशत ब्याज की दर से लोन देता है. बैंक खुद लोने लेने वाले के पास जाकर हर दिन या महीने के हिसाब से पैसे कलेक्ट करता है. पैसे कलेक्ट करने के बाद लोन का ब्याज बड़े से छोटे व्यापारियों के काम आता है.
एड्रेस प्रूफ और तीन गारंटर के आधार पर ही लोन देना शुरू किया. लोन देने का सिलसिला आज भी जारी है. बैंक की मदद से कई बड़े कारोबारी बन गए हैं. रऊफ बताते हैं कि अल्पसंख्यक बैंक सालाना 15 प्रतिशत ब्याज की दर से लोन देता है. बैंक खुद लोने लेने वाले के पास जाकर हर दिन या महीने के हिसाब से पैसे कलेक्ट करता है. पैसे कलेक्ट करने के बाद लोन का ब्याज बड़े से छोटे व्यापारियों के काम आता है.

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