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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
In Photos: छत्तीसगढ़ में बन रही कपड़ों की राखी की पूरे देश में है डिमांड, देखें तस्वीरें
भाई बहनों के अद्भुत रिश्तों का प्रतीक माने जाने वाले त्यौहार रक्षाबंधन बहुत करीब है. ऐसे में बाजारों में कई तरह की राखियां दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन हम आज छत्तीसगढ़ में बन रही एक ऐसी राखी के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मांग दिल्ली, असम, साउथ जैसे अन्य राज्यों में हो रही है. साथ ही ऑनलाइन के जरिये इन राखियों की डिलीवरी की जा रही है.
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View In Appछत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम हथौद जहां पर ज्यादातर लोग बुनकर का काम करते हैं. यहां पर हथकरघा के माध्यम से लोग अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. जिला प्रशासन ने इन्हें आधुनिकता से जोड़ने के लिए प्रयास किया और यहां पर महिलाओं को प्रशिक्षित करना भी शुरू किया. जिसके बाद इन प्रशिक्षित महिलाओं और लड़कियों ने अपने कदम आगे बढ़ाए और आज राखी के इस पवित्र पर्व में इन महिलाओं ने कपड़े की ऐसी राखियां बनाई जो बनते ही हाथों हाथ बिक गई. दरअसल इनकी राखियों को ऑनलाइन माध्यम से पोर्टल में अपलोड किया गया. जिसके बाद असम, न्यू दिल्ली और साउथ जैसे कई राज्यों से डिमांड आए और हाथों-हाथ यह राखियां बिक गई.
लड़कियों और महिलाओं ने यहां पर इको फ्रेंडली राखी का मास्टर प्लान तैयार किया. सब्जियों और विभिन्न तरह के माध्यमों से प्राकृतिक रंग तैयार की और स्थानीय बुनकरों से कपड़े मंगाए गए. उन्हें राखियां बनाकर उसमें गोदना कसीदा इत्यादि लगाकर ऑनलाइन माध्यम से सेल भी कर दिया गया. कलेक्टर ने इन महिलाओं के कार्यों की सराहना की और कहा कि निश्चित ही यह गर्व का विषय है.
डिजाइनर सुरभि गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि यहां पर कुल 60 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही है और 20 महिलाएं इस कार्य में हिस्सेदारी है. इस तरह कुल 80 महिलाएं इस कार्य में शामिल है. उन्होंने कहा कि महिलाएं काफी रूचि लेकर यह कार्य कर रही है और आगे भी यह बेहतर कार्य करेंगे.
एक तरफ बाजार में रंग-बिरंगी राखियां मौजूद रहती है पर कपड़ों की राखियों को देखकर ऐसा लगता है मानो वह बेहद ही सामान्य हो परंतु इन लड़कियों और महिलाओं द्वारा जो राखियां तैयार की गई है वह बेहद ही रंग-बिरंगे हैं और वहां पर प्रिंटिंग भी काफी खूबसूरत है. उसमें गोदना कला सहित कसीदा कला भी राखियों में उतारा गया है.
यहां पर महिलाओं और लड़कियों ने इस तरह की राखियां बनाई है वह पूरी तरह इको फ्रेंडली है. यहां पर अनार के छिलके, गेंदे के फूल, हर्रा लोहे, गुड़ का मिश्रण, आलम गोंद चायपत्ती हीना कथा यह सभी रंग होते हैं जो सप्तरंगी छटा बिखेरते हैं.
इन्हें कुछ ऐसा लगाया जाता है कि यह पक्का रंग में तब्दील हो जाए. गेंदे के फूल से पीले रंग प्राप्त किए जाते हैं. गुड़ और लोहे को मिलाकर काले रन बनाए जाते हैं. मेहंदी से हरे रंग का उपयोग किया जाता है. इस तरह हर प्राकृतिक चीजें कुछ न कुछ रंगे भी है. जिसे इन लड़कियों ने अपने राखियों में उपयोग किया है.
इस छोटे से गांव के लिए सबसे बड़ी गर्व की बात तो यह है कि इस गांव में पोस्ट ऑफिस नहीं है परंतु योजनाओं से ऑनलाइन सामग्रियां पार्सल के माध्यम से नई दिल्ली, असम और साउथ के कई राज्यों में भेजा जा रहा है. दरअसल पहली बार में जितने राखियां तैयार किए गए थे. उसे पोर्टल में अपलोड करने के मिनटों बाद ही खरीदारों ने खरीद लिया. सैकड़ों राखियां हाथों हाथ बिक गई. अभी भी कुछ राखियां बिक्री के लिए बची है. परंतु उन्हें उम्मीद है कि जितनी बुकिंग है उतनी राखियां यह उन तक पहुंचा पाएंगे.
कलेक्टर गौरव सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि ऐसी परियोजनाओं के माध्यम से शासन और प्रशासन की मंशा होती है कि महिलाएं जो कि घरों के चूल्हे तक सिमट कर रहती है. घरों से बाहर निकले और अपने अंदर छिपी प्रतिभा को निखारने और उनसे आर्थिक और सामाजिक रूप से खुद के साथ अपने परिवार को भी मजबूत करें. कलेक्टर गौरव कुमार सिंह ने कहा कि यह हमारी महिलाओं की प्रतिभा के परिणाम स्वरुप यहां की इको फ्रेंडली राखियां नई दिल्ली, असम और साउथ इंडिया के कई राज्यों तक पहुंची है. यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है.
डिजाइनर सुरभि गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि पहले यहां पर कुछ स्थानी बुनकरों से कपड़े मंगाए गए और एक सैंपल बनाया गया. फिर उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित किया गया. जिसके बाद काफी डिमांड आने लगे. जिसके बाद डिमांड के अनुरूप हमने निर्माण कर उन्हें भेज दिया है. क्योंकि राखी का पर्व अभी काफी नजदीक है तो जितनी सामान में बनाए थे सारे के सारे बिक चुके हैं और हमारी महिलाएं भी प्रॉफिट में हैं.
गांव में तैयार की जा रही राखियां पूर्णता प्राकृतिक रूप से निर्मित किए जा रहे हैं और शुद्ध कपड़ों का इसमें उपयोग किया गया है. इसलिए इसका वैल्यू काफी बढ़ा हुआ है. एक राखी प्रति 90 रूपए की दर से भी बिकी है और उसमें भी किसी तरह की कोई बारगेनिंग नहीं हुई है. हाथों-हाथ खरीदारों ने इन राखियों को खरीदा है. पूरी कहानी में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यहां पर गोठान के माध्यम से राखियां तैयार की जा रही है.
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