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In Photos: 11 महीने से लगातार खड़े हैं सूरजपुर के सन्यासी बाबा, जानें क्यों त्याग दिया मोहमाया? देखें कठोर प्रतिज्ञा की ये तस्वीरें

छत्तीसगढ़ के एक साधु की कठोर प्रतिज्ञा ने सबको हैरान कर दिया है. बाबा पिछले 11 महीने से खड़े हैं. मां की मौत होने के बाद वे काफी आहत हो गए थे.

छत्तीसगढ़ के एक साधु की कठोर प्रतिज्ञा ने सबको हैरान कर दिया है. बाबा पिछले 11 महीने से खड़े हैं. मां की मौत होने के बाद वे काफी आहत हो गए थे.

11 महीने से लगातार खड़े हैं सूरजपुर के सन्यासी बाबा

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देशभर में बड़े-बड़े साधु संत विश्व कल्याण के लिए यज्ञ, हवन और पूजा पाठ कर रहे हैं, जीवन में सुख शांति और समृद्धि के लिए लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए जागरूक कर रहे हैं,छत्तीसगढ़ के एक साधु की विश्व शांति के लिए कठोर प्रतिज्ञा ने सबको हैरान कर दिया है. दरअसल, सूरजपुर जिले में एक सन्यासी बाबा ने सनातन धर्म की जागृति और विश्व शांति के लिए बिस्तर त्याग दिया है और हमेशा खड़े रहते हैं. बाबा के इस कठोर प्रतिज्ञा से सब हैरान हैं, अब बाबा को खड़े हुए एक साल पूरे होने को है. ऐसे में इनके दर्शन और आशीर्वाद के लोग दूर दूर से उनके पास पहुंच रहे हैं.
देशभर में बड़े-बड़े साधु संत विश्व कल्याण के लिए यज्ञ, हवन और पूजा पाठ कर रहे हैं, जीवन में सुख शांति और समृद्धि के लिए लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए जागरूक कर रहे हैं,छत्तीसगढ़ के एक साधु की विश्व शांति के लिए कठोर प्रतिज्ञा ने सबको हैरान कर दिया है. दरअसल, सूरजपुर जिले में एक सन्यासी बाबा ने सनातन धर्म की जागृति और विश्व शांति के लिए बिस्तर त्याग दिया है और हमेशा खड़े रहते हैं. बाबा के इस कठोर प्रतिज्ञा से सब हैरान हैं, अब बाबा को खड़े हुए एक साल पूरे होने को है. ऐसे में इनके दर्शन और आशीर्वाद के लोग दूर दूर से उनके पास पहुंच रहे हैं.
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दरअसल, सूरजपुर जिला मुख्यालय के पास रुनियाडीह गांव है. इस गांव के बगल से सरगुजा की जीवनदायनी रेणुका नदी बहती है, इस नदी के किनारे में श्री नर्मदेश्वर महादेव मंदिर हैं. इस परिसर ने एक बाबा रहते हैं, जिनकी महंत दौलत गिरी के नाम से पहचान हैं. उन्होंने 2 अप्रैल 2022 से पांच साल तक के लिए नहीं सोने और नहीं बैठने की प्रतिज्ञा ली है.
दरअसल, सूरजपुर जिला मुख्यालय के पास रुनियाडीह गांव है. इस गांव के बगल से सरगुजा की जीवनदायनी रेणुका नदी बहती है, इस नदी के किनारे में श्री नर्मदेश्वर महादेव मंदिर हैं. इस परिसर ने एक बाबा रहते हैं, जिनकी महंत दौलत गिरी के नाम से पहचान हैं. उन्होंने 2 अप्रैल 2022 से पांच साल तक के लिए नहीं सोने और नहीं बैठने की प्रतिज्ञा ली है.
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ऐसे में सबके मन में सवाल उठता है, कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में कठोर तपस्या कर रहे बाबा को एक वर्ष पूरे होने को है, वे अब तक बिस्तर पर नहीं सोए हैं, और एक झूले के सहारे पैरों पर ही खड़े रहते हैं.
ऐसे में सबके मन में सवाल उठता है, कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में कठोर तपस्या कर रहे बाबा को एक वर्ष पूरे होने को है, वे अब तक बिस्तर पर नहीं सोए हैं, और एक झूले के सहारे पैरों पर ही खड़े रहते हैं.
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पिछले 11 महीने से सिर्फ पैरों पर खड़े महंत दौलत गिरी का पैर सूझ चुका है. उनके पैर में घाव लग गए है, पैर सूजन की वजह से मोटा हो चुका है, लेकिन वे अपने प्रण पर अडिग हैं, और इस हठयोग को तोड़ने के लिए तैयार नहीं है. इन दिनों इस बाबा की चर्चा दूर-दूर तक फैल रही है, लोग इन्हें देखने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच रहे हैं. बता दें कि रेण नदी के किनारे स्थित श्री महादेव नर्मदेश्वर मंदिर प्रांगण में महंत दौलत गिरी के लिए कुटिया बनाया गया है, जिसमें एक झूला लगाया हुआ है, जिसके सहारे बाबा हमेशा खड़े रहते हैं.
पिछले 11 महीने से सिर्फ पैरों पर खड़े महंत दौलत गिरी का पैर सूझ चुका है. उनके पैर में घाव लग गए है, पैर सूजन की वजह से मोटा हो चुका है, लेकिन वे अपने प्रण पर अडिग हैं, और इस हठयोग को तोड़ने के लिए तैयार नहीं है. इन दिनों इस बाबा की चर्चा दूर-दूर तक फैल रही है, लोग इन्हें देखने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच रहे हैं. बता दें कि रेण नदी के किनारे स्थित श्री महादेव नर्मदेश्वर मंदिर प्रांगण में महंत दौलत गिरी के लिए कुटिया बनाया गया है, जिसमें एक झूला लगाया हुआ है, जिसके सहारे बाबा हमेशा खड़े रहते हैं.
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महंत दौलत गिरी जब बीकॉम सेकंड ईयर के छात्र थे, तभी अचानक बीमारी की वजह से इनकी मां की मौत हो गई. अपनी मां की मौत से वह इतना आहत हुए कि उन्होंने संसार के मोह माया को त्याग कर साधू बन गए. प्रयागराज में कई नागा बाबाओं की संगत में रहने के कई साल बाद वह वापस सूरजपुर आए, अब उनका उद्देश्य विश्व शांति है, जिसके लिए वे यह तपस्या कर रहे हैं.
महंत दौलत गिरी जब बीकॉम सेकंड ईयर के छात्र थे, तभी अचानक बीमारी की वजह से इनकी मां की मौत हो गई. अपनी मां की मौत से वह इतना आहत हुए कि उन्होंने संसार के मोह माया को त्याग कर साधू बन गए. प्रयागराज में कई नागा बाबाओं की संगत में रहने के कई साल बाद वह वापस सूरजपुर आए, अब उनका उद्देश्य विश्व शांति है, जिसके लिए वे यह तपस्या कर रहे हैं.
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इनके दोनों पैरों में सूजन आ गया है बावजूद इसके वे अपनी तपस्या में लीन हैं. नागा बाबा की तपस्या से इलाके के श्रद्धालु भी काफी प्रभावित हैं, लगातार खड़े रहने वाले इस बाबा को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आ रहे हैं और वे सब बाबा के विश्व शांति के लिए इस प्रयास की सराहना कर रहे हैं. रुनियाडीह गांव का यह शिव मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है.
इनके दोनों पैरों में सूजन आ गया है बावजूद इसके वे अपनी तपस्या में लीन हैं. नागा बाबा की तपस्या से इलाके के श्रद्धालु भी काफी प्रभावित हैं, लगातार खड़े रहने वाले इस बाबा को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आ रहे हैं और वे सब बाबा के विश्व शांति के लिए इस प्रयास की सराहना कर रहे हैं. रुनियाडीह गांव का यह शिव मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है.

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