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In Photos: छत्तीसगढ़ के ये Waterfalls हैं बेहद खास, कहीं नहाने मात्र से धूल जाते सारे पाप, कहीं दूर हो जाते हैं चर्म रोग

छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थलों की प्रसिद्धि देश-विदेश तक है. बलरामपुर जिले में तातापानी नाम की जगह है, यहां अलग-अलग कुंडों से गर्म पानी निकलता है और इसके पानी से नहाने पर चर्म रोग खत्म हो जाता है.

छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थलों की प्रसिद्धि देश-विदेश तक है. बलरामपुर जिले में तातापानी नाम की जगह है, यहां अलग-अलग कुंडों से गर्म पानी निकलता है और इसके पानी से नहाने पर चर्म रोग खत्म हो जाता है.

(छत्तीसगढ़ के Waterfalls, फोटो क्रेडिट-अमितेष पांडे)

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तातापानी की मान्यता रामायण काल से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि वनवासकाल के दौरान सीता माता ने हाथ में कटोरा में तेल रखा हुआ था, उसी दौरान श्रीराम ने पत्थर मारा जो सीधे सीता माता के हाथ में रखे तेल के कटोरे से टकराया, इसके बाद तेल की बूंदे जहां जहां जमीन पर गिरी, वहां गर्म स्त्रोत निकलने लगा. स्थानीय भाषा में ताता का मतलब गर्म होता है, इसलिए इस जगह का नाम तातापानी पड़ा है.  इसी तरह कोरबा जिले में एक ऐसा वाटरफॉल है जिसके पानी से नहाने मात्र से सारे पाप धुल जाने की मान्यता है. नरसिंह गंगा के नाम से इस अनूठे वाटरफॉल को गंगा नदी की तरह पवित्र माना जाता है.
तातापानी की मान्यता रामायण काल से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि वनवासकाल के दौरान सीता माता ने हाथ में कटोरा में तेल रखा हुआ था, उसी दौरान श्रीराम ने पत्थर मारा जो सीधे सीता माता के हाथ में रखे तेल के कटोरे से टकराया, इसके बाद तेल की बूंदे जहां जहां जमीन पर गिरी, वहां गर्म स्त्रोत निकलने लगा. स्थानीय भाषा में ताता का मतलब गर्म होता है, इसलिए इस जगह का नाम तातापानी पड़ा है. इसी तरह कोरबा जिले में एक ऐसा वाटरफॉल है जिसके पानी से नहाने मात्र से सारे पाप धुल जाने की मान्यता है. नरसिंह गंगा के नाम से इस अनूठे वाटरफॉल को गंगा नदी की तरह पवित्र माना जाता है.
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इसी पानी से वहां मौजूद प्राचीन शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है.  कोरबा जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर और पाली ब्लॉक के चैतमा से करीब 11 किलोमीटर दूर 500 फीट ऊंचाई से गिरने वाले इस वाटरफॉल की एक और खासियत है कि इसका पानी कभी सूखता नहीं है. कोरबा जिले में स्थित नरसिंह गंगा वाटरफॉल के पहाड़ के आसपास कोई नदी नहीं है, इसलिए इस झरने में पानी कहां से आता है, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है.  पहाड़ के सबसे ऊपर लगभग 100 एकड़ समतल मैदान है. हालांकि, वहां तक पहुंचना कठिन है, इसलिए अब तक बहुत कम लोग ही उस जगह तक पहुंच सके हैं.  बता दें कि महाशिवरात्रि में भगवान नरसिंह की विशेष पूजा की जाती है.  आसपास के भक्त बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं और झरने के पानी से नरसिंह भगवान का जलाभिषेक करते हैं.
इसी पानी से वहां मौजूद प्राचीन शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. कोरबा जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर और पाली ब्लॉक के चैतमा से करीब 11 किलोमीटर दूर 500 फीट ऊंचाई से गिरने वाले इस वाटरफॉल की एक और खासियत है कि इसका पानी कभी सूखता नहीं है. कोरबा जिले में स्थित नरसिंह गंगा वाटरफॉल के पहाड़ के आसपास कोई नदी नहीं है, इसलिए इस झरने में पानी कहां से आता है, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है. पहाड़ के सबसे ऊपर लगभग 100 एकड़ समतल मैदान है. हालांकि, वहां तक पहुंचना कठिन है, इसलिए अब तक बहुत कम लोग ही उस जगह तक पहुंच सके हैं. बता दें कि महाशिवरात्रि में भगवान नरसिंह की विशेष पूजा की जाती है. आसपास के भक्त बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं और झरने के पानी से नरसिंह भगवान का जलाभिषेक करते हैं.
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कार्तिक पूर्णिमा, माघी पूर्णिमा और दोनों ही नवरात्र में यहां मेला लगता है. इसके आसपास प्राचीन गुफाएं हैं.  पहाड़ के ऊपर पलमाई देवी और नरसिंह भगवान का मंदिर है.  सावन में यहां बड़ी तादाद में भक्त कांवड़ ले कर पहुंचते हैं.
कार्तिक पूर्णिमा, माघी पूर्णिमा और दोनों ही नवरात्र में यहां मेला लगता है. इसके आसपास प्राचीन गुफाएं हैं. पहाड़ के ऊपर पलमाई देवी और नरसिंह भगवान का मंदिर है. सावन में यहां बड़ी तादाद में भक्त कांवड़ ले कर पहुंचते हैं.
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नरसिंह गंगा के 65 वर्षीय पुजारी कुमार साय ने बताया कि नरसिंह गंगा वाटरफॉल का पानी काफी पवित्र माना जाता है.  इसके जल से स्नान और मन में विश्वास रख भगवान नरसिंह से मांगी गई मन्नत पूरी होती है.  जनहितैषी कार्य सफल होते हैं. वहीं, स्वार्थ सिद्ध के लिए आने वाले लोगों के ऊपर वाटरफॉल का जल ही नहीं पड़ता.  श्रद्धालु नहाने से पहले नरसिंह भगवान की स्तुति करते हैं.  थोड़ा चावल व रुपये धारा में अर्पण करने के बाद नहाते हैं.  इस तरह उनके पाप इस झरने में धुल जाता है.  इस जगह को मंदिर के पुजारी के दादा इतवार सिंह ने सबसे पहले देखा था. जिसके बाद उन्होंने इसकी सूचना लाफा और छुरी के जमींदार को दी थी. उस दौर के बाद से जमीदारों ने ही यहां पूजा-पाठ शुरू करवाया था.
नरसिंह गंगा के 65 वर्षीय पुजारी कुमार साय ने बताया कि नरसिंह गंगा वाटरफॉल का पानी काफी पवित्र माना जाता है. इसके जल से स्नान और मन में विश्वास रख भगवान नरसिंह से मांगी गई मन्नत पूरी होती है. जनहितैषी कार्य सफल होते हैं. वहीं, स्वार्थ सिद्ध के लिए आने वाले लोगों के ऊपर वाटरफॉल का जल ही नहीं पड़ता. श्रद्धालु नहाने से पहले नरसिंह भगवान की स्तुति करते हैं. थोड़ा चावल व रुपये धारा में अर्पण करने के बाद नहाते हैं. इस तरह उनके पाप इस झरने में धुल जाता है. इस जगह को मंदिर के पुजारी के दादा इतवार सिंह ने सबसे पहले देखा था. जिसके बाद उन्होंने इसकी सूचना लाफा और छुरी के जमींदार को दी थी. उस दौर के बाद से जमीदारों ने ही यहां पूजा-पाठ शुरू करवाया था.
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गौरतलब है कि हरे-भरे जंगल व पहाड़ियों के बीच स्थित मनोरम पर्यटन स्थल नरसिंह गंगा अभी भी पर्यटन के लिहाज से विकसित नहीं हो पाया है. पलामू पहाड़ की एक विशाल चट्टान की गुफा में भगवान नरसिंह का वास है.  यह स्थल धार्मिक व पथरीली पहाड़ी के बीच गिरता झरना दार्शनिक रूप से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. बावजूद इसके, यहां तक पहुंचने के उपलब्ध मार्ग की दुर्गमता इसकी लोकप्रियता कम करने की वजह बन रहा है.  जिला प्रशासन ने भी इस पर्यटन स्थल को विकसित करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.
गौरतलब है कि हरे-भरे जंगल व पहाड़ियों के बीच स्थित मनोरम पर्यटन स्थल नरसिंह गंगा अभी भी पर्यटन के लिहाज से विकसित नहीं हो पाया है. पलामू पहाड़ की एक विशाल चट्टान की गुफा में भगवान नरसिंह का वास है. यह स्थल धार्मिक व पथरीली पहाड़ी के बीच गिरता झरना दार्शनिक रूप से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. बावजूद इसके, यहां तक पहुंचने के उपलब्ध मार्ग की दुर्गमता इसकी लोकप्रियता कम करने की वजह बन रहा है. जिला प्रशासन ने भी इस पर्यटन स्थल को विकसित करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.
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कोरबा जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर नरसिंह गंगा झरना तक दोपहिया या चारपहिया वाहन से पहुंचा जा सकता है. कोरबा से चैतमा तक बस की भी सुविधा है.  चैतमा बस स्टैंड से थोड़ा आगे दाहिने तरफ वाटरफॉल पहुंचने का रास्ता है. यहां से 12 किलोमीटर दूर जाने के लिए दोपहिया या फिर चारपहिया वाहन की व्यवस्था करनी होगी.
कोरबा जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर नरसिंह गंगा झरना तक दोपहिया या चारपहिया वाहन से पहुंचा जा सकता है. कोरबा से चैतमा तक बस की भी सुविधा है. चैतमा बस स्टैंड से थोड़ा आगे दाहिने तरफ वाटरफॉल पहुंचने का रास्ता है. यहां से 12 किलोमीटर दूर जाने के लिए दोपहिया या फिर चारपहिया वाहन की व्यवस्था करनी होगी.

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