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In Pics: छत्तीसगढ़ के गौठानों में बकरी पालन को दिया जा रहा बढ़ावा, जानिए इन गुर्जरी बकरियों की खासियत

छत्तीसगढ़ के गौठानों में गिर और साहीवाल नस्ल के गौवंशों के साथ अब उच्च नस्ल की बकरियां भी वितरित की जा रही हैं.

छत्तीसगढ़ के गौठानों में गिर और साहीवाल नस्ल के गौवंशों के साथ अब उच्च नस्ल की बकरियां भी वितरित की जा रही हैं.

गुर्जरी बकरियों की खासियत

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छत्तीसगढ़ के दुर्ग में अजमेर से सिरोही, कोटा और गुर्जरी नस्ल के बकरे-बकरी लाये गये. 36 घंटे का सफर तय कर बोरी पहुंचे इन मवेशियों को कुछ समय सुस्ताने के बाद इनके गौठानों में पहुंचा दिया गया.
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में अजमेर से सिरोही, कोटा और गुर्जरी नस्ल के बकरे-बकरी लाये गये. 36 घंटे का सफर तय कर बोरी पहुंचे इन मवेशियों को कुछ समय सुस्ताने के बाद इनके गौठानों में पहुंचा दिया गया.
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इस संबंध में जानकारी देते हुए जिला पंचायत सीईओ अश्विनी देवांगन ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा के निर्देशानुसार गौठानों को मल्टी एक्टिविटी सेंटर बनाना है. और पशुधन के विस्तार के लिए तैयार करना है. गौवंशी मवेशियों के नस्ल सुधार पर काम हो ही रहा था अब बकरीपालन को बढ़ावा देने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है.
इस संबंध में जानकारी देते हुए जिला पंचायत सीईओ अश्विनी देवांगन ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा के निर्देशानुसार गौठानों को मल्टी एक्टिविटी सेंटर बनाना है. और पशुधन के विस्तार के लिए तैयार करना है. गौवंशी मवेशियों के नस्ल सुधार पर काम हो ही रहा था अब बकरीपालन को बढ़ावा देने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है.
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इस संबंध में जानकारी देते हुए जनपद पंचायत के एडीईओ  राघवेंद्र सिंह ने बताया कि गुर्जरी प्रजाति की बकरियों की खासियत मीट को लेकर है. 16 महीनों में बकरों का वजन 80 किलो तक हो जाता है. प्रेग्नेंसी के बाद साढ़े पांच महीने में एक बेबी (मेमना) का जन्म होता है.
इस संबंध में जानकारी देते हुए जनपद पंचायत के एडीईओ राघवेंद्र सिंह ने बताया कि गुर्जरी प्रजाति की बकरियों की खासियत मीट को लेकर है. 16 महीनों में बकरों का वजन 80 किलो तक हो जाता है. प्रेग्नेंसी के बाद साढ़े पांच महीने में एक बेबी (मेमना) का जन्म होता है.
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फिर उतने ही अंतराल के बाद दो बेबी (मेमने) का जन्म होता है. इन बकरियों के आने के बाद स्थानीय बकरियों के नस्ल सुधार की अच्छी संभावनाएं बनेंगी. साथ ही गौठानों में आजीविकामूलक गतिविधि बढ़ने से आय का भी विस्तार होगा.
फिर उतने ही अंतराल के बाद दो बेबी (मेमने) का जन्म होता है. इन बकरियों के आने के बाद स्थानीय बकरियों के नस्ल सुधार की अच्छी संभावनाएं बनेंगी. साथ ही गौठानों में आजीविकामूलक गतिविधि बढ़ने से आय का भी विस्तार होगा.
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उल्लेखनीय है कि आज धमधा ब्लॉक के पथरिया, डोमा, कोडिया, बोरी, नंदिनीखुंदिनी, बिरेभाठ, कपसदा, गोढ़ी, मातारा में इन बकरियों के सेट भेजे गये.
उल्लेखनीय है कि आज धमधा ब्लॉक के पथरिया, डोमा, कोडिया, बोरी, नंदिनीखुंदिनी, बिरेभाठ, कपसदा, गोढ़ी, मातारा में इन बकरियों के सेट भेजे गये.
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उल्लेखनीय है कि इसके साथ ही इन गौठानों में बायोफ्लाक के माध्यम से मत्स्य उत्पादन का कार्य भी आरंभ किया जा रहा है. इस तरह से पशुपालन के समग्र विकास का लाभ गौठान की स्वसहायता समूह की दीदियां उठा सकेंगी. जब ये बकरियां आईं तो इन्हें देखने का उत्साह था और गौठानों में ग्रामीण देखने आये कि सिरोही और गुर्जरी प्रजाति की बकरियां हमारी स्थानीय बकरियों से किस तरह से अलग दिखती हैं.
उल्लेखनीय है कि इसके साथ ही इन गौठानों में बायोफ्लाक के माध्यम से मत्स्य उत्पादन का कार्य भी आरंभ किया जा रहा है. इस तरह से पशुपालन के समग्र विकास का लाभ गौठान की स्वसहायता समूह की दीदियां उठा सकेंगी. जब ये बकरियां आईं तो इन्हें देखने का उत्साह था और गौठानों में ग्रामीण देखने आये कि सिरोही और गुर्जरी प्रजाति की बकरियां हमारी स्थानीय बकरियों से किस तरह से अलग दिखती हैं.

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