In Pics: बस्तर के हाट बाजारों में चापड़ा चींटी की भारी डिमांड, इसके लिए क्यों मुंह मांगी कीमत भी देते हैं पर्यटक, देखें तस्वीरें
देश के कोने -कोने से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक इन बाजारों में चापड़ा चींटी की काफी डिमांड करते हैं. दरअसल चापड़ा चींटी से चटनी तैयार की जाती है और इस चटनी की खासियत और स्वाद की तारीफ सुन बस्तर पहुंचने वाले हर एक पर्यटक इस चापड़ा चींटी की स्वाद चखने के लिए आतुर रहते हैं, यही वजह है कि इन दिनों हाट बाजारों में चापड़ा चींटी की डिमांड बढ़ गई है.
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View In Appदरअसल बस्तर में इस चींटी की चटनी बनाई जाती है और इसके टेस्ट के लोग काफी दीवाने होते हैं. बस्तर में माना जाता है कि इस चापड़ा चींटी की चटनी को चखने से तेज बुखार भी उतर जाती है, खासकर शहर के मुख्य बाजारों और हाट बाजारों में चापड़ा चींटी आसानी से मिल जाती है.
दरअसल चापड़ा चींटी ज्यादातर आम के पेड़ों में, साल वनों में, काजू के पेड़ों पाया जाता है, बस्तर के स्थानीय ग्रामीण इस चापड़ा चींटी को जिंदा पकड़ते हैं, जिसके बाद इसे पत्ते की बनी दोनी (कटोरी )में रखकर हाट बाजारों और शहर के मुख्य बाजारों में बेचने पहुंचते हैं.
दरअसल चापड़ा चींटी की चटनी बनाई जाती है, बकायदा बस्तरिया स्टाइल में इसे सिल पत्थर में टमाटर, हरी धनिया कच्ची मिर्ची और नमक, मिर्ची डालकर पीसा जाता है और इसे रोटी, चावल या फिर सल्फी ड्रिंक के साथ परोसा जाता है, बस्तर घूमने आने वाले पर्यटकों का मानना है कि बस्तर आने के बाद उनकी पहली पसंद चापड़ा चींटी की चटनी होती है, हर कोई पर्यटक इस चींटी के चटनी को का स्वाद चखना चाहता है.
यही वजह है कि हाट बाजारों में बड़ी मात्रा में चापड़ा चींटी की बिक्री ग्रामीणों के द्वारा की जाती है, और पर्यटक भी मुंह बोली रकम में चापड़ा चींटी को खरीदते हैं और फिर आदिवासी ग्रामीणों द्वारा ही इसे चटनी के रूप में तैयार किया जाता है.
बस्तर के जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि चापड़ा चटनी बहुत फायदेमंद भी होती है जो कि आदिवासियों को कई बीमारियों से बचाने में मदद करती है. आदिवासियों का मानना है कि इससे कई बीमारियों में आराम मिलता है और बीमारियों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.
चापड़ा चटनी के खाने से मलेरिया जैसी बीमारियां भी ठीक हो जाती है. आदिवासियों के लिए यह प्रोटीन का सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला साधन होता है, साथ ही यह भी कहा जाता है कि अगर किसी को अत्यधिक तेज बुखार है और ऐसे में साल वनों में मौजूद जिंदा चापड़ा चींटी से उन्हें कटाया जाता है जिसके बाद उनका बुखार भी उतरने लगता है.
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