Mahashivratri 2023: छत्तीसगढ़ के इस गांव में भूगर्भ से उत्पन्न हुआ था शिवलिंग, देखिये मंदिर की अद्भूत कारीगरी
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में देवबलोदा गांव में 14वीं शताब्दी के समय का एक प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है. महाशिवरात्रि पर यहां दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के मंदिर आते हैं. महाशिवरात्रि के दिन यहां 2 दिनों का एक विशाल मेला भी लगता है. इस मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर को कलचुरी काल के राजाओं ने बनाया था और इस मंदिर का शिवलिंग भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है. इतना ही नहीं इस मंदिर का निर्माण एक ही पत्थर पर 6 मासी रात में किया गया था.
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View In Appइस प्राचीन शिव मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर का शिवलिंग स्वयं ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही व्यक्ति ने छमासी रात में की थी. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह पूरा मंदिर एक ही पत्थर से बना हुआ है और इस मंदिर का गुंबत आधा है. लोगों की मान्यता के अनुसार बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण छमासी की रात में एक व्यक्ति द्वारा किया गया था. इसके पीछे की कहानी यह है कि वह व्यक्ति हर रात मंदिर का निर्माण करने से पहले पास के कुंड में नहाता था. उसके बाद नग्न अवस्था में ही इस मंदिर के निर्माण में जुट जाता था.
उस कारीगर व्यक्ति की पत्नी भी उसके काम में सहयोग करती थी. जब उसका पति मंदिर निर्माण में काम करता था तो वह रोज उसके लिए खाना बना कर लाती थी. एक दिन जब वह मंदिर का निर्माण कर रहा था तब उसकी पत्नी की जगह उसकी बहन खाना लेकर आ रही थी. जब व्यक्ति ने देखा कि उसकी पत्नी की जगह उसकी बहन खाना लेकर आ रही है, चूंकि वह नग्न अवस्था में था, लज्जा की वजह से उसने मंदिर प्रांगण में बने कुंड में छलांग लगा दी. उसके बाद से आज तक वो व्यक्ति कहां गया पता नहीं चला पाया. बताया जाता है कि इसी वजह से इस मंदिर का गुंबत पूरा नहीं हो पाया था.
इसलिए यह प्राचीन मंदिरों में एकलौता ऐसा मंदिर है, जिसकी गुंबद आधी बनी हुई है. इस मंदिर के चारों तरफ मंदिर के बाहर अद्भुत कारीगरी की गई है. मंदिर के चारों तरफ देवी-देवताओं के प्रतिबिंब बनाए गए हैं, जिसे देख कर ऐसा लगता है की 14वीं शताब्दी के बीच लोग कैसे रहते थे. भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल लेकर नाचते हुए, दो बैलों को लड़ते हुए, नृत्य करते हुए न जाने कई ऐसी कलाकृतियां की गई है. इसे देखकर लगता है कि उस समय जब लोग यहां रहते थे, यह सब यहां होता होगा.
मंदिर प्रांगण के अंदर एक कुंड बना हुआ है. बताया जाता है कि इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता और पानी कहां से आता है इसका स्रोत भी किसी को नहीं पता. लोगों की मान्यता है कि कुंड के अंदर एक सुरंग है जो कि छत्तीसगढ़ के आरंग जिले में कहीं पर निकलता है. हालांकि यह सिर्फ मान्यता है, इसका अब तक वैज्ञानिक पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिले हैं. कुंड के अंदर कई सालों से बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां, कछुआ देखे जा सकते हैं. बताया जाता है कि कुंड के अंदर एक ऐसी मछली है, जो सोने की नथनी पहनी हुई है. यह मछली कई सालों में कभी कभार ही दिखाई पड़ती है.
बताया जाता है कि इस मंदिर प्रांगण में एक नाग नागिन का जोड़ा भी है जोकि कई सालों में दिखाई पड़ता है. कई बार तो लोग इन्हें भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग में लपेटे हुए भी देखा गया लोगों का मानना है कि आज भी है नाग नागिन का जोड़ा इस मंदिर में विचरण करते हैं. हालांकि अब तक यह नाग नागिन का जोड़ा कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.
हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेला भी लगता है. इस मेले को देवबलोदा का मेला भी कहा जाता है. दरअसल उस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और रात से ही भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग की पूजा करने के लिए कतार में खड़े होते हैं. यह मेला 2 दिनों तक चलता है, पूरे गांव में मेला लगने से गांव की रौनक बनी रहती है.
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