Mahashivratri 2023: शिव-पार्वती से जुड़ी है रियासत काल की कहानी, तस्वीरों में देखें- उमा माहेश्वरी की प्राचीन प्रतिमाएं और मंदिर
Mahashivratri 2023: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर (Bastar) आदिकाल के कई परंपराओं को समेटे हुए हैं. रियासत काल से ही बस्तर का काफी महत्व रहा है. वनवासियों की भगवान के प्रति श्रद्धा और अटूट आस्था की वजह से ही आज भी लोग दशहरा और शिवरात्रि के मौके पर इसे उत्सव की तरह मनाते हैं. कहा जाता है कि बस्तर के आदिवासी शिव के उपासक हैं और भगवान शिव (Lord Shiva) को बस्तर में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, जिसमें उन्हें बूढ़ादेव, भैरव बाबा, मावली और भोल बाबा के नाम से भी यहां के आदिवासी पुकारते हैं.
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View In Appवहीं सबसे खास बात यह है कि पूरे छत्तीसगढ़ में केवल बस्तर में ही उमा-महेश्वर की एक साथ प्राचीन प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं. पूरे बस्तर संभाग में उमा महेश्वर की सैकड़ों की संख्या में पुराने शिला (पत्थर) से बनी प्रतिमाएं मौजूद हैं. बताया जाता है कि इन प्रतिमाओं को बस्तर में 6वीं शताब्दी में बनाया गया था. छठवीं शताब्दी से लेकर 1300 ई तक बस्तर के कई स्थानों में अनेकों प्रतिमाएं बनाई गईं, साथ ही मंदिरों का निर्माण किया गया. इसमें सबसे ज्यादा मंदिर उमा माहेश्वर के हैं और उसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमाए और मंदिर बस्तर में सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं.
इतिहासकार हेमंत कश्यप ने बताया कि, बस्तर को आदिम संस्कृति का क्षेत्र माना जाता है, लेकिन बस्तर की सबसे बड़ी विशेषता है कि प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस जगह को शिव का धाम कहा जाता है. संभाग के सातों जिलों में भगवान उमा माहेश्वर की सबसे ज्यादा मंदिरे और प्रतिमाएं हैं. पुरातत्व विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक पूरे बस्तर संभाग में उमा माहेश्वर की सैकड़ों प्रतिमाएं जगह-जगह बिखरी पड़ी हैं. खास बात यह है कि इनके नाम से कुछ गांवों का नामकरण भी कर दिया गया है. यहां मावली भाटा, मावली पदर, भैरव बाबा, बुढ़ा देव बोल बाबा के नाम से भगवान शिव पार्वती को जाना जाता है और उसी नाम से यहां के लोगों के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है.
हेमंत कश्यप ने बताया कि बस्तर के संग्रहालय में उमा महेश्वर की 9 अद्भुत प्रतिमाएं रखी हुई हैं. बस्तर में छिन्दक नागवंशी राजाओं का शासन था और छठवी शताब्दी से लेकर 1300 ई. तक छिंदक नागवंशी के राजाओं ने बस्तर के कई स्थानों में अनेकों उमा माहेश्वर की प्रतिमाएं बनवाईं और मंदिरों का निर्माण कराया. छिंदक नागवंशी के राजा शिव के उपासक थे और उपासक होने के कारण शिव पार्वती, गणेश जी, स्कंदमाता कार्तिक और अलग-अलग प्रकार के शिवलिंग की स्थापना कराई, इसलिए इसकी संख्या ज्यादा मानी गई है.
बस्तरवासी अपने उमा माहेश्वर इष्ट देवताओं को अलग-अलग नाम से पुकार कर पूजा करते हैं. खास बात यह है कि महाशिवरात्रि के मौके पर बस्तर संभाग के 200 से अधिक जगहों पर मेला लगता है और शिवरात्रि के 3 दिनों तक यहां मेला चलता है. हजारों की संख्या में आदिवासी ग्रामीण शिवालयों में पूजा करने पहुंचते हैं और 3 दिनों तक आयोजन चलता ही रहता है. बस्तर में ऐसे बहुत से स्थान हैं जहां उमा माहेश्वर के आस्था में आदिवासी समर्पित हैं.
दंतेवाड़ा, बारसूर, भैरमगढ़, जगदलपुर, मधोता , चपका, नागफनी, कुरुसपाल, नारायणपाल, नेतानार जैसे 100 से भी अधिक गांव हैं जहां आज भी उमा माहेश्वर की प्रतिमाएं विराजमान हैं और जहां इसकी आदिवासियों के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. यह प्रतिमाएं सैकड़ों साल पुरानी हैं. ग्रामीण इनकी पूजा-पाठ करते हैं, इसलिए इन प्रतिमाओं को संग्रहालय में नहीं रखा जा रहा है.
वहीं उमा माहेश्वर की उपासना करने वाले राजाराम तोड़ेम ने बताया कि, छत्तीसगढ़ में केवल बस्तर में सबसे ज्यादा उमा महेश्वर की प्रतिमाएं विराजमान हैं. ग्रामीण अंचलों के देवगुड़ियों में शिवलिंग के साथ-साथ उमा माहेश्वर की सैकड़ों साल पुरानी प्रतिमाएं मिलती हैं. यहां की आदिवासी महिलाएं और पुरुष दोनों ही सदियों से शिव और पार्वती की आराधना करते आ रहे हैं.
यही वजह है कि महाशिवरात्रि के मौके पर पूरे बस्तर संभाग में अलग ही उत्सव देखने को मिलता है और यह उत्सव एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे 3 दिनों तक चलता है, जहां हजारों आदिवासी उमा माहेश्वर की पूजा पाठ करने आते हैं. बस्तर के आदिवासी अपने इष्ट देवता भगवान शिव को बुढ़ादेव के नाम से पुकारते हैं और उनकी पूजा करते हैं.
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