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Chhattisgarh: छतीसगंढ़ के इस गांव में दो घूंट साफ पानी के लिए तरस रहे लोग, वजह कर देगी हैरान

छतीसगढ़

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Chhattisgarh – हमारे देश में आज भी बहुत से ऐसे गांव है जहां रहने वाले लोगों को आजादी के बाद से ही मूलभूत सुविधाएं नहीं है. लेकिन आज हम बात कर रहे हैं छतीसगढ़ के छोटे से गांव बांसा टोला की. जहां रहने वाले लोगों के पास ना ही पक्के मकान है औऱ ना ही पीने के लिए पानी. राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले आदिवासी बैगा समुदाय आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं.
Chhattisgarh – हमारे देश में आज भी बहुत से ऐसे गांव है जहां रहने वाले लोगों को आजादी के बाद से ही मूलभूत सुविधाएं नहीं है. लेकिन आज हम बात कर रहे हैं छतीसगढ़ के छोटे से गांव बांसा टोला की. जहां रहने वाले लोगों के पास ना ही पक्के मकान है औऱ ना ही पीने के लिए पानी. राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले आदिवासी बैगा समुदाय आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं.
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ये बांसाटोला गांव कवर्धा जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र कुकदूर में स्थित है. गांव में आजादी के बाद से अब तक मूलभूत सुविधा नही पहुंच पाई है. बैगा आदिवासी आज भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे है. गांव के हालात ये है कि गर्मी के दिनों में तो यहां मेहमान तक आना पसंद नही करते.
ये बांसाटोला गांव कवर्धा जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र कुकदूर में स्थित है. गांव में आजादी के बाद से अब तक मूलभूत सुविधा नही पहुंच पाई है. बैगा आदिवासी आज भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे है. गांव के हालात ये है कि गर्मी के दिनों में तो यहां मेहमान तक आना पसंद नही करते.
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क्योंकि गांव में पानी ना होने की वजह से यहां के लोगों को गांव से लगभग 500 मीटर दूर पहाड़ से नीचे उतरकर पहाड़ों से निकलने वाले पानी से प्यास बुझाना पड़ती है. हालांकि की जिला प्रशासन द्वारा बार बार बोरिंग भी खुदवाया गया लेकिन बोर सफल नहीं हुआ है. हालात ये है कि महिलाएं छोटे-  छोटे बच्चों को कमर से बांधकर पानी लाने को मजबूर है.
क्योंकि गांव में पानी ना होने की वजह से यहां के लोगों को गांव से लगभग 500 मीटर दूर पहाड़ से नीचे उतरकर पहाड़ों से निकलने वाले पानी से प्यास बुझाना पड़ती है. हालांकि की जिला प्रशासन द्वारा बार बार बोरिंग भी खुदवाया गया लेकिन बोर सफल नहीं हुआ है. हालात ये है कि महिलाएं छोटे- छोटे बच्चों को कमर से बांधकर पानी लाने को मजबूर है.
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वहीं स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बात करें तो क्षेत्र की दूसरी बड़ी समस्या है. यहां महीने में एकाध बार ही स्वास्थ्य कर्मचारी पहुचते है. ऐसे में बैगा आदिवासी परिवार इलाज के लिए 10 से 15 किमी तक कच्ची सड़क कि दूरी तय करते है. छोटी- छोटी बीमारी के लिए इन्हें दवाइयों तक नसीब नहीं होती.
वहीं स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बात करें तो क्षेत्र की दूसरी बड़ी समस्या है. यहां महीने में एकाध बार ही स्वास्थ्य कर्मचारी पहुचते है. ऐसे में बैगा आदिवासी परिवार इलाज के लिए 10 से 15 किमी तक कच्ची सड़क कि दूरी तय करते है. छोटी- छोटी बीमारी के लिए इन्हें दवाइयों तक नसीब नहीं होती.
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जनप्रतिनिधियों की बात करें तो सिर्फ चुनाव के समय यहां वोट मांगने पहुंचते हैं. उसके बाद दोबारा पलटकर इस गांव में नहीं जाते है. हालांकि जिला प्रशासन द्वारा जिले के ऐसे पिछड़े इलाकों के लिए अलग से राशि स्वीकृत कर मूलभूत सुविधा बढ़ाने का दावा कर रहा है. अब देखने वाली बात ये होगी कि सरकार या प्रशासन इन आदिवासियों को कब तक इस परेशानियों से निजात दिला पाती है.
जनप्रतिनिधियों की बात करें तो सिर्फ चुनाव के समय यहां वोट मांगने पहुंचते हैं. उसके बाद दोबारा पलटकर इस गांव में नहीं जाते है. हालांकि जिला प्रशासन द्वारा जिले के ऐसे पिछड़े इलाकों के लिए अलग से राशि स्वीकृत कर मूलभूत सुविधा बढ़ाने का दावा कर रहा है. अब देखने वाली बात ये होगी कि सरकार या प्रशासन इन आदिवासियों को कब तक इस परेशानियों से निजात दिला पाती है.

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