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बस्तर के इस मंदिर में खास अंदाज में मनाया जाता है रक्षाबंधन, निभाई जाती है 800 साल पुरानी ये अनोखी परंपरा

पूरे भारत में रक्षाबंधन त्योहार की धूम मची हुई है और सभी भाई-बहन मुहूर्त देखकर यह पर्व मना रहे हैं. वहीं, बस्तर में एक ऐसा प्रसिद्ध मंदिर है जहां रक्षाबंधन का त्योहार कुछ खास अंदाज में मनाया जाता है.

पूरे भारत में रक्षाबंधन त्योहार की धूम मची हुई है और सभी भाई-बहन मुहूर्त देखकर यह पर्व मना रहे हैं. वहीं, बस्तर में एक ऐसा प्रसिद्ध मंदिर है जहां रक्षाबंधन का त्योहार कुछ खास अंदाज में मनाया जाता है.

बस्तर के देवी मंदिर में मनाई जाती है राखी की अनोखी परंपरा

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वहीं, मंदिर के सेवादार ये राखी मंदिर परिसर में ही बनाते हैं और इसे बनाने में 4 से 5 दिन लगते हैं. इसके बाद पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद बाकायदा दंतेश्वरी माता के कलाई में विशेष तौर पर तैयार कच्चे सूत की राखी बांधी जाती है और मंदिर परिसर में मौजूद अन्य देवी देवताओं के प्रतिमा में राखी बांधने के बाद ही जिले में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है.
वहीं, मंदिर के सेवादार ये राखी मंदिर परिसर में ही बनाते हैं और इसे बनाने में 4 से 5 दिन लगते हैं. इसके बाद पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद बाकायदा दंतेश्वरी माता के कलाई में विशेष तौर पर तैयार कच्चे सूत की राखी बांधी जाती है और मंदिर परिसर में मौजूद अन्य देवी देवताओं के प्रतिमा में राखी बांधने के बाद ही जिले में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है.
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खास बात यह है कि पूरे प्रदेश में इस तरह की अनोखी परंपरा केवल दंतेवाड़ा के इस प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर में निभाई जाती है और यह परंपरा 800 सालों से अनवरत चली आ रही है. दंतेवाड़ा जिले के दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों ने बताया कि दंतेवाड़ा के कतियारास गांव के मादरी परिवार के सदस्य माता के सेवादार हैं.
खास बात यह है कि पूरे प्रदेश में इस तरह की अनोखी परंपरा केवल दंतेवाड़ा के इस प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर में निभाई जाती है और यह परंपरा 800 सालों से अनवरत चली आ रही है. दंतेवाड़ा जिले के दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों ने बताया कि दंतेवाड़ा के कतियारास गांव के मादरी परिवार के सदस्य माता के सेवादार हैं.
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यह परिवार पिछले कई पीढ़ियों से रक्षाबंधन पर्व के समय माता के लिए कच्चे सूत से राखी बनाने का काम करते आ रहा है. इसके लिए सेवादार रक्षाबंधन पर्व के करीब 5 दिन पहले ही मंदिर परिसर में रहकर कच्चे सूत से राखी बनाते हैं. इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ दंतेश्वर मंदिर परिसर में ही मौजूद शंकनी डंकनी नदी के जल से  सूत की राखी को धोया जाता है फिर बांस की बनी टोकनी में राखी रखकर उसमें लाल रंग चढ़ाया जाता है.
यह परिवार पिछले कई पीढ़ियों से रक्षाबंधन पर्व के समय माता के लिए कच्चे सूत से राखी बनाने का काम करते आ रहा है. इसके लिए सेवादार रक्षाबंधन पर्व के करीब 5 दिन पहले ही मंदिर परिसर में रहकर कच्चे सूत से राखी बनाते हैं. इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ दंतेश्वर मंदिर परिसर में ही मौजूद शंकनी डंकनी नदी के जल से सूत की राखी को धोया जाता है फिर बांस की बनी टोकनी में राखी रखकर उसमें लाल रंग चढ़ाया जाता है.
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इसके बाद पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद मंदिर के पुजारी इसे मां दंतेश्वरी देवी के प्रतिमा में अर्पित करते हैं और उसके बाद परिसर में ही मौजूद अन्य देवी-देवताओं के मंदिरों में भी सूत की राखी चढ़ाई जाती है. मंदिर में रक्षाबंधन का त्योहार मनाने के बाद ही दंतेवाड़ा जिले में गांव से लेकर शहर तक के लोग इस पर्व को मानते हैं.
इसके बाद पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद मंदिर के पुजारी इसे मां दंतेश्वरी देवी के प्रतिमा में अर्पित करते हैं और उसके बाद परिसर में ही मौजूद अन्य देवी-देवताओं के मंदिरों में भी सूत की राखी चढ़ाई जाती है. मंदिर में रक्षाबंधन का त्योहार मनाने के बाद ही दंतेवाड़ा जिले में गांव से लेकर शहर तक के लोग इस पर्व को मानते हैं.
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माता को कच्चे सूत से बनी राखी चढ़ा कर राखी मनाने की यह परंपरा पिछले 800 साल से चली आ रही है. खास बात यह है कि इस तरह की अनोखी परंपरा छत्तीसगढ़ में केवल दंतेवाड़ा जिले के इस प्रसिद्ध मंदिर में निभाई जाती है. दंतेश्वरी देवी के लिए बस्तरवासियों की सच्ची श्रद्धा होने की वजह से  रक्षाबंधन पर्व के दौरान इस रस्म को निभाते वक्त बड़ी संख्या में लोग मंदिर में मौजूद रहते हैं और महाआरती भी की जाती है.
माता को कच्चे सूत से बनी राखी चढ़ा कर राखी मनाने की यह परंपरा पिछले 800 साल से चली आ रही है. खास बात यह है कि इस तरह की अनोखी परंपरा छत्तीसगढ़ में केवल दंतेवाड़ा जिले के इस प्रसिद्ध मंदिर में निभाई जाती है. दंतेश्वरी देवी के लिए बस्तरवासियों की सच्ची श्रद्धा होने की वजह से रक्षाबंधन पर्व के दौरान इस रस्म को निभाते वक्त बड़ी संख्या में लोग मंदिर में मौजूद रहते हैं और महाआरती भी की जाती है.
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मान्यता है कि दंतेश्वरी माई बस्तर की आराध्य देवी है और यहां सभी त्योहार को पहले मंदिर में मनाया जाता है. राखी के साथ-साथ होली के त्योहार में भी राख से होली खेलने की परंपरा है. इसके अलावा, दिवाली भी खास अंदाज में मनाई जाती है.
मान्यता है कि दंतेश्वरी माई बस्तर की आराध्य देवी है और यहां सभी त्योहार को पहले मंदिर में मनाया जाता है. राखी के साथ-साथ होली के त्योहार में भी राख से होली खेलने की परंपरा है. इसके अलावा, दिवाली भी खास अंदाज में मनाई जाती है.
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वहीं, विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व पर दंतेवाड़ा में लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां दंतेश्वरी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. दरअसल, बस्तरवासियों की मां दंतेश्वरी के प्रति काफी गहरी आस्था है. यही वजह है कि हर तीज त्योहार को पहले इस मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है.
वहीं, विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व पर दंतेवाड़ा में लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां दंतेश्वरी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. दरअसल, बस्तरवासियों की मां दंतेश्वरी के प्रति काफी गहरी आस्था है. यही वजह है कि हर तीज त्योहार को पहले इस मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है.

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