Save Hasdeo forest: छत्तीसगढ़ में पेड़ों को बचाने के लिए जंगल में टेंट लगाकर रह रहे हैं ग्रामीण, देखें तस्वीरें
छत्तीसगढ़ के सरगुजा में परसा ईस्ट केते बासेन कोल परियोजना स्थित है. इस खदान से कोयला निकाल लिया गया है. हैरत में डालने वाली बात है कि कंपनी के लोग कहते हैं कि इस खदान से कोयला निकालने के बाद इसे ढक दिया गया है और उसमें पेड़ पौधे लगा दिए गए हैं. लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नजर नहीं आता.
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View In Appसेव हसदेव का नारा छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर, रायपुर से होते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक पहुंच चुकी है. लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि सेव हसदेव का यह नारा उन जिम्मेदारों के कान तक नहीं पहुंचा है जिसको लेकर वर्तमान में ग्रामीण विरोध में डटे हुए हैं. परसा ईस्ट केते बासेन कोल परियोजना से प्रभावित गांव के लोग पिछले तीन महीने से इस परियोजना का विरोध इसलिए कर रहे हैं. क्योंकि वो जिन हरे-भरे जंगलों में रहते हैं.
खदान के दूसरे फेज के लिए उस जंगल को काटा जाएगा. उनके आशियाने उजाड़ दिए जाएंगे. जिसके बाद यहां के ग्रामीणों के पास खानाबदोश जिंदगी के अलावा कुछ नहीं रह जाएगा. यही वजह है कि इन दिनों खदान प्रभावित गांव के लोग अपने ज़मीन और जंगल को बचाने के लिए जंगल में डेरा डाले हुए हैं और जंगल में ही खाना बनाकर खाते और रहते हैं.
कोल खदान का दूसरा फेज शुरू करने के लिए कुछ दिन पहले वन विभाग द्वारा जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई थी और लगभग 200 से ज्यादा पेड़ काट भी दिए गए. जब पेड़ काटने की जानकारी कोल खदान प्रभावित गांव घाटबर्रा के लोगों को हुई. तो सभी पेड़ों को बचाने के लिए जंगल को और रुख कर गए और अब तक पेड़ और जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
खदान की वजह से इनके पेड़ ना कटे, बस्तियां ना उजड़े इसलिए ग्रामीण जंगल में ही टेंट पंडाल बनाकर रह रहे हैं. गांव से काफी ज्यादा मात्रा में अनाज लाकर जंगल में रखे हुए हैं और सुबह शाम इसे पकाकर, खाकर अपने पेड़ों की रक्षा करने में लगे हैं. खदान के लिए पेड़ कटाई के विरोध में जंगल में रह रही महिला सुखमनिया के मुताबिक जब से पेड़ की कटाई शुरू हुई तब से वे जंगल में धरने पर बैठे हैं.
हसदेव अरण्य का जंगल काफी विशाल भू-भाग में फैला हुआ है. हसदेव अरण्य का जंगल जैव विविधताओं से भरा-पूरा है. यहां 21 प्रकार के जैव विविधा की चीजे उपलब्ध है. जो कि 30 हजार रूपए क्विंटल तक शासन इसकी खरीदी करती है. इसमें आंवला, सटावर, चरौटा, शहद, माहुल पत्ता, गिलोय, इमली, महुआ, झाड़ू फूल, चिरौंजी, साल, नीम, जामुन शामिल हैं.
ग्रामीणों का आरोप है कि 2018 में फर्जी ग्राम सभा के प्रस्ताव से उस खदान को स्वीकृति प्राप्त की गई थी. इसके बाद अभी 13 जून को एक जनसुनवाई होनी है. केते एक्सटेंशन के लिए 1741 हेक्टेयर जंगल कटना है. कुल मिलाकर खदान के दूसरे फेज के लिए 17 किलोमीटर का लाखों पेड़ एक सिरे से काट जायेंगे.
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