छोटे बच्चों की मौत के बाद हो रही उनके शवों की दुर्गति, गांव के लोगों ने सरकार से लगाई ये गुहार
ऐसी तस्वीरें न केवल दिल्ली के यमुना किनारे या अन्य क्रिया-कर्म स्थलों के आसपास देखने को मिलती हैं बल्कि गंगा किनारे बसे शहरों समेत अन्य जगहों पर भी यह आम बात है.
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View In Appतिगीपुर गांव के एक बुजुर्ग निवासी नम्बरदार ने बताया कि, वर्षों से गांव के लोग यमुना किनारे बच्चों के शव को 3-4 फीट गहरा खोदकर दफनाते आ रहे हैं, लेकिन उनको दफनाने के बाद जगह की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है, नतीजन चंद घंटों के भीतर ही आवारा कुत्ते, जंगली-जानवर उस जगह को खोद कर शव को बाहर निकाल लेते हैं और फिर उसे नोच-खसोट कर खा कर उसकी बुरी तरह से दुर्गति कर देते हैं.
उन्होंने बताया कि, यमुना किनारे शमशान घाट भी बना हुआ है, लेकिन शमशान घाट में रहने वाले लोगों ने मृत बच्चों के शवों को वहां पर दफन करने से रोक लगा रखी है. यही वजह है कि लोगों को यमुना किनारे उनके शव को दफन करना पड़ता है.
वहीं गांव के ही रहने वाले सुधीर ने बताया कि, यमुना किनारे छोटे बच्चों के शव को दफनाए जाने के कारण जंगली-जानवर और आवारा कुत्ते यहां घूमते रहते हैं और मौका मिलते ही उनकी कब्र को खोदकर लाश को बाहर निकाल कर खा लेते हैं. उनका कहना है कि, बच्चों को दफनाने के लिए भी एक निश्चित जगह बनानी चाहिए जो घिरी हो और बाकायदा उसमें दरवाजे भी लगे हो ताकि मौत के बाद मासूमों की इस तरह से दुर्गति न हो पाए
एक अन्य निवासी ने कहा कि बीते वर्षों में उनके गांव में प्रवासी मजदूरों की संख्या काफी बढ़ी है, जिन्हें न तो इलाके के बारे में पूरी जानकारी है और न ही इन जंगली-जानवरों के बारे में. जिस कारण वे कम घर गड्ढा खोद कर ही बच्चों के शव को दफना देते हैं, जो शव के जानवरों का खाना और मासूमों के शवों की दुर्गति का कारण बन जाता है.
इस समस्या को देखते हुए अब स्थानीय ग्रामीणों की मांग उठने लगी है कि दिल्ली सरकार या केंद्र सरकार यमुना घाट किनारे किसी ऐसी स्थाई जगह की व्यवस्था करें जहां पर मासूम बच्चों को दफनाया जा सके. उस स्थान की निगरानी करवाई जाए या फिर उस जगह को चारों तरफ से घेर कर गेट लगा दिया जाए.
जिससे कि मौत के बाद उन मासूम बच्चों के शव की दुर्गति ना हो पाये. बच्चों की मौत के बाद उन्हें इधर-उधर दफनाना एक गंभीर चिंता का विषय है. जिस पर समाज के साथ-साथ सरकार को भी ध्यान देने की जरूरत है.
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