In Pics: दीपावली के त्योहार से गायब होने लगे दीप, जानें- पर्यावरण विशेषज्ञ ने क्या कहा?
दिवाली के दीपों की जगह एलईडी लाईटों और सजावटी बल्बों ने ले ली. यही वजह है कि, आज दीपावली का त्योहार है और दीयों को बनाने वाले प्रजापति समाज के कलाकार मिट्टी के दीयों-बर्तनों के लिए ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उम्मीद के विपरीत कुछ-एक खरीदार ही दीपों को खरीदने के लिए उनके पास पहुंच रहे हैं.
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View In Appआज पारंपरिक दिवाली के दीपों की जगह एलईडी लाईटों और सजावटी बल्बों ने ले ली. यही वजह है कि, आज दीपावली का त्योहार है और दीयों को बनाने वाले प्रजापति समाज के कलाकार मिट्टी के दीयों-बर्तनों के लिए ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उम्मीद के विपरीत कुछ-एक खरीदार ही दीपों को खरीदने के लिए उनके पास पहुंच रहे हैं.
मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने वाले एक दुकानदार से एबीपी न्यूज से बातचीत में बताया कि, वह अब सिर्फ दीपावली के उत्सव पर दीपों को इसलिए बनाकर बेच रहे हैं, ताकि जो भारतीय संस्कृति और परंपरा है वह बची रहे. इस काम से उनका गुजारा अब मुश्किल हो चुका है और वह घर चलाने के लिए चाय बेचने या फिर अन्य छोटे-मोटे कामों को करते हैं.
एक दुकानदार मुकेश कुमार ने बताया कि, वह प्रजापति समाज के हैं और उनका काम मिट्टी के बर्तनों को बनाना है, लेकिन उन्हें इस काम के लिए अब जगह तक नहीं मिल पाती है. फिर भी वे दीपावली पर मिट्टी के दीये और बर्तनों के बिकने की उम्मीद से समय से पहले बर्तन, दीप और मिट्टी की मूर्तियां बनकर तैयार कर लेते हैं. लेकिन अब उनकी बिक्री और मांग पहले जैसी नहीं रही.
पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर फैयाज खुदसर बताते हैं कि, पहले के समय में लोग दीपावली के उत्सव पर पारंपरिक तरीके से सरसों के तेल और घी के दीपक जलाया करते थे. जिससे घरों में नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े मकोड़े नष्ट होते थे. साथ ही वातावरण भी शुद्ध होता था और लगातार एक साथ कई दीप जलने से वायुमंडल में ऑक्सीजन लेवल भी बढ़ता था, लेकिन धीरे-धीरे जमाना बदलता गया और लोग आधुनिक तरीके से दीपावली मनाने लगे.
दीपावली पर लोग अब ज्यादातर बड़े बल्ब और एलईडी लाइटों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे न सिर्फ बिजली की खपत ज्यादा होती है बल्कि बल्ब की रोशन से हीट भी बहुत ज्यादा रिलीज होती है. वहीं दीपावली के त्योहार में नष्ट हो जाने वाले कीड़े-मकोड़े दीपावली के कई दिनों बाद तक बने रहते हैं. वहीं दीपावली के दिन पटाखों की आतिशबाजी से प्रदूषण स्तर भी काफी बढ़ जाता है, जिससे लोगों को काफी नुकसान भी होता है.
फैयाज खुदसर ने कहा, अगर लोग पहले की तरह मिट्टी के दीपों को जला कर दीपावली मनाने लगें तो इससे न केवल पर्यावरण का बचाव होगा बल्कि मिट्टी के दीये-बर्तन बनाने वाले कलाकारों के लिए भी हितकारी होगा और वे दीपों को जोश और उत्साह के साथ बनाएंगे. नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब ये कलाकार अपनी कलाकारी को छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे और मिट्टी के बर्तन, डीप और मूर्तियां पूरी तरह से बनने बंद हो जाएंगे.
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